रूस की एक अदालत ने बुधवार को हिंदुओं के पवित्र धार्मिक ग्रंथ भगवद् गीता पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत की इस पहल से रूस के हिंदू समुदाय ने जीत का अहसास करते हुए राहत की सांस ली है। साइबेरिया की तामस्क शहर की अदालत ने बुधवार सुबह मामले में अंतिम सुनवाई पूरी की और न्यायाधीश ने सरकारी अभियोजकों की ओर से दायर याचिका एवं हिंदुओं की दलीलों की समीक्षा करने के बाद याचिका खारिज कर दी।
तामस्क शहर के लेनिन्सकी जिला अदालत के संघीय न्यायाधीश जी.ई. बुतेनाको ने मामले की अंतिम सुनवाई के दौरान सरकारी अभियोजकों की याचिका खारिज कर दी। न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि वह अभियोजकों की भगवद् गीता को प्रतिबंधित करने और इसे 'चरमपंथी साहित्य' बताने की दलीलों से 'संतुष्ट' नहीं हैं। "आज की सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकारी अभियोजकों के मामले को खारिज कर दिया।" मामले में अदालत का विस्तृत फैसला एक सप्ताह बाद हिंदू पक्ष को मिलेगा।
अदालत ने सरकारी अभियोजकों की याचिका, भगवद् गीता पर विशेषज्ञ समूह की रिपोर्ट और मामले में हिंदुओं के दलीलों की समीक्षा की और इसके बाद उसने अपना फैसला सुनाया। इस फैसले से विश्व और रूस में रहने वाले हिंदू समुदाय को राहत मिली। इस्कॉन के संस्थापक ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा रूसी भाषा में अनूदित भगवद् गीता पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाले मामले की सुनवाई गत जून में शुरू हुई थी। इस मामले को लेकर भारत में राजनीतिक सरगर्मी शुरू हो गई और यह मामला दो दिनों तक संसद में गूंजा।
लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों द्वारा मामला उठाए जाने पर विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने संसद में बयान दिया। उन्होंने अपने बयान में कहा कि रूस में हिंदुओं के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारत सरकार हर सम्भव प्रयास कर रही है। रूस के हिंदू समुदाय और भगवान कृष्ण के अनुयायी जो करीब 50 हजार हैं, उन्होंने भारत सरकार और मास्को स्थित भारतीय दूतावास से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी। इसके अलावा हिंदुओं ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भी पत्र लिखा था। इसके पहले, कृष्णा ने मामले की गम्भीरता को देखते हुए मंगलवार को रूसी राजदूत अलेक्जेंडर कदाकिन से मुलाकात की थी।
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