बिहार के गया जिले के नक्सल प्रभावित कहे जाने वाले इलाके में एक ऐसा विद्यालय चल रहा है जिसे एक पूर्व नक्सली चला रहा है। खास बात यह है कि यह नक्सली भिक्षाटन कर यह विद्यालय चला रहा है।
कभी हाथ में बंदूक थामे रहने वाला और समाज की मुख्यधारा से विमुख हुआ नक्सली 35 वर्षीय अलखनंदा सिंह यहां यह विद्यालय चला रहा है। अलखनंदा चर्चित जहानाबाद ब्रेक कांड में फरार था। अब वह भिक्षाटन कर गरीबी, बेबसी और मुफलिसी में जीवनयापन कर रहे इस नक्सली इलाके के महादलित बच्चों को एकत्रित कर उन्हें निशुल्क शिक्षा देकर सामाजिक समरसता की मिसाल पेश कर रहा है।
अलखनंदा अब नंदा भैया के नाम से जाना जाता है। उसका निजी जीवन काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड के बोफमारी गांव का रहने वाला नंदा पारिवारिक विवाद से सम्बंधित एक मुकदमे में एक बार जहानाबाद जेल गया था। जेल में उसकी मुलाकात प्रतिबंधित नक्सली संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी ) के कई बड़े नेताओं से हुई।
नंदा बदले की भावना को दिल में रखकर इस संगठन की विचारधारा से जुड़ गया। वह 23 नवम्बर 2005 को जहानाबाद जेल ब्रेक कांड में फरार हो गया था। नंदा नक्सलियों के साथ बाराचटी के जंगल में आ पहुंचा, वहां उसने नक्सलियों के साथ कई महीने गुजारे। वह हाथों में बंदूक थामे आगे बढ़ता गया। इसी दौरान वह अति नक्सल प्रभावित बाराचटी के पास अपने साथियों संग पुलिस की गिरफ्त में आ गया। इसके बाद उसे जेल जाना पड़ा।
नंदा ने बताया कि करीब चार साल जेल में रहने के दौरान उसे किताबें पढ़ने का मौका मिला और उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया। उसका कहना है कि मदर टेरेसा से उसे समाजसेवा का और महात्मा गांधी की पुस्तकों से अहिंसा का जज्बा मिला। गोरखपुर से मैट्रिक, इंटर, स्नातक और गोरखपुर विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में एम़ ए. करने वाले नंदा ने गरीब बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाने की ठान ली।
नंदा नवयुवक संघ के बैनर तले कार्य शुरू करने का जज्बा लेकर नक्सल प्रभावित डोभी प्रखंड की नीमा पंचायत के डुमरी गांव में लगभग 150 बच्चों को एक बरगद के पेड़ के नीचे एकत्र कर निशुल्क पढ़ाना शुरू किया। स्कूल चलाने के लिए वह सप्ताह में एक बार गांव-गांव में घूमकर भिक्षाटन करता है, जो सामग्री मिलती है उसे बच्चों के बीच बांट देता है। बच्चों के लिए स्लेट, पेंसिल खरीद कर वह स्वयं उन्हें देता है। बच्चों को पढ़ाई के दौरान नाश्ता भी दिया जाता है। इस स्कूल में पहली से पांचवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। सुबह छह बजे से नौ बजे तक स्कूल चलता है। इस स्कूल में डुमरी, गणेशचक, लोढ़ाविगहा, सीताचक, ब्रह्मस्थान आदि कई गांवों से छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं।
नंदा ने बताया कि इस कार्य के लिए उसे ग्रामीण तथा बच्चों के माता-पिता भी सहयोग कर रहे हैं। बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि दिनभर इधर-उधर भटकते बच्चों को अब निशुल्क शिक्षा मिल रही है। इस पाठशाला में हर जाति धर्म के गरीब बच्चे आ रहे हैं। वह डुमरी के अलाव बाराचटी प्रखंड के मनन विगहा, मखदुमपूर एवं मोहनपूर के जयप्रकाश नगर गांव में भी पेड़ की छांव तले शिक्षा एवं अहिंसा का पाठशालाएं चला रहा है जिनमें कुल करीब 400 बच्चे हैं। पढ़ाने के लिए 12 शिक्षिकाएं हैं जो कॉलेजों में अध्ययनरत लड़कियां हैं।
नंदा बताता है कि बच्चों की संख्या रोज बढ़ रही है, स्कूलों के संचालन के लिए नवयुवक संघ का गठन किया गया है जिसके सदस्य गांव-गांव जाकर नवयुवकों को उत्साहित करते हैं। इतना ही नहीं, नवयुवक संघ सरकारी और जनप्रतिनिधियों के सहयोग से कुर्सी, टेबल और चटाई की व्यवस्था भी कर रहे हैं।
दो भाई-तीन बहन में सबसे बड़े नंदा ने यह ठान लिया है कि जिस तरह पंडित मदनमोहन मालवीय ने एक-एक रुपये चंदा इकट्ठा कर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर समाज में अमिट छाप बनाई, उसी तरह वह भी अपने पुराने जीवन को भूलकर गरीब बच्चों को शिक्षित कर अफसर बनाएगा, जो समाज में हो रहे जुल्म को रोक सकेंगे। इसे कठिन तपस्या ही कही जाएगा कि परिवारजनों के मुकदमों से परेशान और दिल में नक्सलवाद बिठाए कोई व्यक्ति आज अहिंसक समाज गढ़ने में लगा है। नंदा को देखकर गांधी जी की यह बात सच साबित होती है, "हिंसा को बंदूक से नहीं, विचारों से खत्म किया जा सकता है।"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें