संसद के तीन दिनों के विस्तारित सत्र के पहले दिन लोकसभा में लोकपाल विधेयक पर बहस शुरु हो गई है. इस बहस की शुरुआत संसदीय कार्य राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने की है. उन्होंने कहा है कि अन्ना हज़ारे और उनके सहयोगियों की ताज़ा मांगें संविधान सम्मत नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से पेश लोकपाल विधेयक भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक मज़बूत क़ानून है.
सरकार की ओर संसद में व्हिसिल ब्लोअर विधेयक पेश किया गया. लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि अन्ना हज़ारे के आंदोलन ने लोकपाल बिल के प्रति उत्सुकता बढ़ा दी थी लेकिन जो बिल सरकार लेकर आई है उसमें बहुत ख़ामियाँ हैं. उन्होंने कहा कि सरकार के बिल ने सबकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
लोकसभा में लोकपाल विधेयक पर चर्चा चल रही है, अन्ना हज़ारे इस विधेयक को कमज़ोर ठहराते हुए मुंबई में तीन दिनों का अनशन कर रहे हैं. सुषमा स्वराज ने कहा, "ये बिल संविधान के विरुद्ध है. ये बिल संघीय ढांचे पर प्रहार करता है. साथ ही ये बिल संविधान सम्मत आरक्षण का प्रावधान नहीं करता." उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण का प्रावधान संविधान के बुनियादी ढांचे पर चोट है.
सुषमा स्वराज ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा कि आरक्षण की सीमा अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत रहे लेकिन इस बिल में आरक्षण की न्यूनतम सीमा 50 प्रतिशत बताई गई है. ये आपत्तिजनक है, क्योंकि संवैधानिक पदों के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है.” उन्होंने कहा कि संविधान धर्म पर आधारित आरक्षण की अनुमति नहीं देता. उन्होंने कहा कि धर्म आधारित आरक्षण ने ही भारत के विभाजन के बीज डाले थे.
सुषमा स्वराज ने कहा कि इस बिल में लोकपाल और लोकायुक्त दोनों की नियुक्तियों का प्रावधान है. और ऐसा करना राज्यों के अधिकारों का हनन है. सुषमा स्वराज ने कहा कि वर्तमान बिल राज्यों के अधिकारों पर भी चोट करता है. उन्होंने कहा, "ये बिल संघीय ढांचे पर आघात ही नहीं बल्कि जो राज्य भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं उनके हथियार को कुंद करने का काम करता है."
लोकसभा में कांग्रेस पार्टी की ओर से बहस की शुरूआत करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री नारायणसामी ने कहा कि सरकार ने लोकपाल का मसौदा तैयार करते समय सिविल सोसाइटी के सुझावों को जगह दी गई है. उन्होंने कहा सिविल सोसाइटी से बातचीत कर सरकार इस मुद्दे पर पारदर्शिता लाई है. लोकसभा में प्रमुख विपक्षी दल पर हमला करते हुए नारायणसामी ने प्रश्न उठाया कि भाजपा अपने कार्यकाल में लोकपाल बिल क्यों नहीं ला पाई. उन्होंने कहा कि लोकपाल में सीबीआई भ्रष्टाचार के मामलों को सीबीआई को बढ़ा सकता है.
संसद में पेश लोकपाल बिल के मसौदे में सीबीआई को लोकपाल से बाहर रखा गया है. टीम अन्ना का कहना है कि ऐसी स्थिति में लोकपाल महज़ एक डाकघर बनकर रह जाएगा क्योंकि उसके पास जांच करने का कोई तंत्र नहीं होगा. अन्ना हज़ारे चाहते हैं कि सीबीआई के भ्रष्टाचार विरोधी दस्ते को लोकपाल की अधीन किया जाना चाहिए. साथ ही सीबीआई के निदेशक की चयन प्रक्रिया में राजनीतिक हस्ताक्षेप कम किया जाना चाहिए.
आलोचकों का कहना है कि अन्ना हज़ारे और उनके समर्थक संविधान और देश की संसदीय प्रणाली की मुख़ालफ़त कर रहें हैं. सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले संसद के भीतर बहस के दौरान बेहतर तालमेल बनाए रखने के मक़सद सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने कुछ वरिष्ठ सहयोगियों से विचार विमर्श किया.

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