अल्पकालिक नक़दी की कमी से निपटने के लिए भारत और जापान के बीच जल्द ही एक नया मुद्रा-संबंधी क़रार किया जाएगा जिसके तहत दोनों देश अपनी मुद्रा को अमरीकी डॉलर से मानांकित कर उसकी अदला-बदली करेंगें. इस क़रार का मकसद है दोनों देशों में नकद की कमी से लड़ना और एक-दूसरे के विदेशी विनयम को टैप करना.
भारत और जापान की मुद्रा की बढ़ती अस्थिरता को देखते हुए दोनों देशों ने कुछ पुख़्ता क़दम उठाने का फ़ैसला लिया है. जापान के वित्त मंत्री ज़ुन अज़ुमी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि इस बाबत दोनों देशों के बीच बातचीत आख़िरी चरण में पहुंच गई है. उम्मीद की जा रही है कि जापान के प्रधानमंत्री योशिहिको नोडा की भारत यात्रा के दौरान इस क़रार पर हस्ताक्षर किए जाएंगें.
योशिहिको नोडा मंगलवार को भारत पहुंचे थे और यहां आने के बाद उन्होंने कहा कि जापान भारत के साथ कई क्षेत्रों में सहयोग का हाथ बढ़ाने के लिए उत्सुक है. विश्लेषकों का कहना है कि भारत और जापान के बीच मुद्रा-संबंधी संधि होने से मौजूदा वैश्विक मंदी के दौर में दोनों देशों को फ़ायदा पहुंचेगा.
एनएलआई रिसर्च इंस्टिट्यूट के वरिष्ट अर्थशास्त्री सुयोशी ऊनो ने कहा, “उभरती अर्थव्यवस्थाएं भी यूरोज़ोन के वित्तीय संकट से कांप उठी हैं. ऐसे में जब यूरोपीय बैंक अपनी मुद्रा को वैश्विक अर्थव्यवस्था से वापस खींचेंगें, तो उसका सीधा असर उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्रा पर पड़ेगा. इस क़रार से ये सुनिश्चित हो पाएगा कि संकट के समय में दोनों देशों को डॉलर की सप्लाई मिल पाए.” 2008 में दोनों देशों के बीच एक ऐसी ही संधि की गई थी, जिसकी अवधि अब समाप्त हो चुकी है.
अर्थशास्त्री सुयोशी ऊनो का कहना है कि भारत जापान के लिए एक अहम बाज़ार है और मुद्रा-संबंधी संधि करने से जापान को आर्थिक स्थिरता पाने में मदद मिलेगी. जापान के पूर्व प्रधानमंत्री नाओतो कान की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पिछले साल मुलाक़ात हुई थी, जिसमें दोनों पक्षों ने एशिया की सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच संबंध सुधारने की बात कही थी. उस वक्त जापान और चीन के बीच कूटनीतिक मतभेद चल रहा था क्योंकि जापान ने चीन के एक नाव के कप्तान को पूर्वी चीन सागर में ग़िरफ़्तार कर लिया था.
1 टिप्पणी:
जापान पिछले कुछ वर्षों में भारत का सबसे बडा व्यापारिक भागीदार बनके उभरा है ये बहुत ही सकारात्मक बात है
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