घी के कई औषधीय महत्व. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

घी के कई औषधीय महत्व.


भारतीय व्यंजनों,आयुर्वेदिक औषधियों का पुरातन काल से ही एक घटक रहा है घी। आयुर्वेद के ग्रंथों में तो घी के कई औषधीय महत्व को बताया गया है।  कहते हैं  घी को अन्य औषधि से सिद्धित करने पर यह अपने गुणों को न छोडते हुए उस औषधि के गुणों को भी अपने अन्दर समाहित कर लेता है- है न कमाल की बात ,ये तो अनुकरणीय भी  है। 

भारत में  गृहणियां इसे घरों में भी बना लेती हैं। गाय या भैंस के दूध से मलाई निकलकर उसे मथकर मक्खन प्राप्त किया जाता है । फिर मक्खन को धीरे-धीरे तबतक उबाला जाता है, जब तक मक्खन में स्थित दूध के ठोस कण तले में न बैठ जाए। ठंडा होने पर उसे पतले साफ़ कपडे से छानकर साफ  बर्तन में  रख दिया जाता है। ठंडा होने पर बर्तन का ढक्कन अच्छी तरह से बंद कर दिया जाता है,बस  ध्यान रहे घी को कभी भी फ्रिज में न रखें। आयुर्वेद की कई दवाओं में 'घी ' का प्रयोग होता है तथा गाय के घी को श्रेष्ठ माना गया है।

आयुर्वेद के इन औषधियों को औषधिसिद्धित घृत के नाम से जाना जाता है जो निम्न हैं : फलघृत : खून को बढाने वाला,बंध्या स्त्री को संतान्योग्य बनानेवाला।त्रिफलादीघृत :सभी प्रकार के उदर एवं कृमी रोगों को दूर करने वाला।वृहतकल्याणकघृत :गर्भ न ठहरने वाली स्त्री के लिए अत्यंत उपयोगी औषधि। अशोकघृत : लूकोरीया,कमर दर्द आदि में लाभकारी औषधि।

नवीनघृत :रुचिकारक,तृप्तिकारक,दुर्बलता दूर करने वाला,पुराणघृत या पुराना घी:10 वर्ष पुराना घी जुखाम ,खांसी ,मूर्छा,त्वक विकार ,उन्माद (पागलपन ) और अपस्मार (मिर्गी ) आदि रोगों में फयदेमंद ,पञ्चतिक्तघृत :त्वचा रोगों में प्रभावी होता है। आयुर्वेद मत से गाय का घी अन्य सभी घी की अपेक्षा स्वादिष्ट,बुद्धि ,कान्ति,स्मरणशक्ति को बढाने वाला,वीर्यवर्धक ,अग्निदीपक,पाचक ,यौवन को स्थिर रखने वाले गुणों से युक्त होता है, तो यूँ ही नहीं खाया जाता रहा है घी सदियों से ,बस आवश्यकता है शुद्ध एवं संयमित मात्रा में सेवन की।

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