ह्यूमन राइट्स वॉच ने कड़ी आलोचना की. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 23 जनवरी 2012

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कड़ी आलोचना की.


अंतरराष्ट्रीय संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने मानवाधिकारों की स्थिति के लिए भारत की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि 2011 में सरकार मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में असफल रही है.

संगठन ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत कमज़ोर लोगों के मानवाधिकारों की सुरक्षा के पक्ष में सामने नहीं आया और इस तरह उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार परिषद में नेतृत्व के एक मौक़े को खो दिया है.

संस्था का कहना है कि भारत पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्वकारी भूमिका निभाने वाले देश के तौर पर गहरी निगाह रखी जाती है. लेकिन भारत ने बर्मा और श्रीलंका में मानवाधिकारों के उल्लंघन की स्वतंत्र जाँच के मुद्दे पर कुछ नहीं किया. मानवाधिकारों के मुद्दे पर ह्यूमन राइट्स वॉच ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संकल्प को भी असरहीन बताया है.

संस्था के एशिया निदेशक ब्रैड एडम्स ने कहा, "सशस्त्र बलों के जवानों की ओर से होने वाले मानवाधिकार उल्लंघनों को क़तई स्वीकार न किए जाने के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का आह्वान इसलिए बेअसर हो गया क्योंकि ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई." ब्रैड एडम्स ने कहा, "मानवाधिकार हनन करने वाले फ़ौजियों के ख़िलाफ़ भारत सरकार ने कार्रवाई नहीं की, पुलिस सुधार लागू नहीं किए और न ही यातनाओं को बंद करने के लिए कुछ किया." उन्होंने कहा है कि सरकार को अब ऐसे बहानों की आड़ लेना बंद करना चाहिए कि मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले फ़ौजियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से सेना का मनोबल गिरेगा.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में तीस मुल्कों में मानवाधिकारों की स्थिति का लेखा जोखा दिया है. संस्था ने कहा है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून के ख़िलाफ़ राजनीतिक लोगों और सलाहकारों की बात को नज़रअंदाज़ करते हुए भारत सरकार ने इसे ख़त्म नहीं किया है. अपनी वार्षिक रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने ये माना है कि जम्मू कश्मीर में 2011 में हिंसा में काफ़ी कमी आई है. संस्था ने कहा है कि राज्य मानवाधिकार आयोग ने अज्ञात लोगों की 2,730 क़ब्रों की शिनाख़्त की जिससे अन्याय का शिकार लोगों को न्याय दिलाने की दिशा में पहल हुई है.

संस्था ने पिछले कई सालों से भारत बांग्लादेश सीमा पर लगातार मारे जा रहे लोगों के मुद्दे पर भी भारत सरकार की आलोचना की है. ब्रैड एडम्स ने कहा है कि पिछले दस बरसों में भारत-बांग्लादेश सीमा पर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से 900 से ज़्यादा भारतीय और बांग्लादेशी मारे गए हैं. लेकिन इसके लिए भारत सरकार ने सीमा सुरक्षा बल के किसी भी सिपाही के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की है. संस्था ने ये माना है कि सीमा पर भारत सरकार ने देर से ही सही सुरक्षा बलों को रबड़ की गोलियाँ मुहैया करवाई हैं ताकि मारे जाने वाले लोगों की संख्या में कमी आए. मगर संस्था ने कहा है कि सीमी सुरक्षा बल के जवानों की ओर से लोगों को यंत्रणाएँ देने के मामले अब भी लगातार सामने आ रहे हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने माओवादियों के प्रभाव वाले इलाक़ों में रहने वाले लोगों की स्थिति पर भी टिप्पणी की है और कहा है कि वहाँ के लोग सुरक्षा बलों और माओवादियों की लड़ाई के बीच फँस गए हैं. सरकारी बल उन्हें माओवादी विचारधारा का मानकर उनको परेशान करते हैं, गिरफ़्तार करते हैं और यातनाएँ देते हैं जबकि माओवादियों ने कई कार्यकर्ताओं को सरकारी मुख़बिर होने के शक में मारा है. 

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