
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि केन्द्रीय मदद के लिए बिहार अपनी पात्रता साबित करने को तैयार है। केन्द्र चाहे जो भी शर्त लगा दे, बिहार उस पर खड़ा उतरेगा। मुख्यमंत्री ‘ग्लोबल समिट ऑन चेंजिंग बिहार’ के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने केन्द्र सरकार से बिहार के विकास के लिए आगे आने की अपील की और कहा कि बगैर बिहार के राष्ट्र के समावेशी विकास की बात अधूरी रह जाएगी। समावेशी विकास का मतलब हर हिस्से-वर्ग का विकास होना चाहिए। अगर बिहार की इसमें हिस्सेदारी नहीं हुई तो फिर इसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
बिहार-पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने कहा कि बिहार में अद्भुत बदलाव आया है। इसने विकास के रास्ते पर कदम बढ़ा दिया है और बेहतर कल उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। आज यह योग्य हाथों में है। निश्चित रूप से वह और आगे जाएगा। हालांकि उन्होंने राजनीति के वर्तमान स्वरूप पर जमकर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि इसका स्वरूप विकृत हो गया है। ‘नेतागिरी’ शब्द हास्य का प्रतीक बन गया है। आज के नेताओं की विश्वसनीयता लगातार कम होती जा रही है। नेता वस्तुत: प्रबंधक हो गए हैं। यह गहन मंथन का विषय है।
नीतीश कुमार ने कहा कि आजादी के समय से ही बिहार के साथ नाइंसाफी हुई है पर अब यह सूरत बदलनी चाहिए। हमारी पात्रता की परख होनी चाहिए। हमारी ताकत और क्षमता की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। समय-समय पर केन्द्र ने ऐसे नियम बनाए जिसने हमें नुकसान पहुंचाया। कभी देश का 25 फीसदी चीनी पैदा करने वाला बिहार केन्द्रीय नीतियों के कारण ही आज दो फीसदी के न्यूनतम स्तर तक पहुंच गया है। इसी तरह भाड़ा समानीकरण के कारण उद्योग-निवेश हमसे दूर हुए। जब झारखंड हमसे अलग हुआ तो हमारे यहां मातम था। सम्पन्नता झारखंड चली गई। हमने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियां झेलकर भी यहां तक का सफर पूरा किया है। आज किसी को राज्य का बंटना याद नहीं। हम अब आगे की सोच रहे हैं। बुनियादी ढांचे और मानव विकास पर हमारा ध्यान है। कृषि हमारी प्राथमिकता में है। हमने दस वर्षो का कृषि रोड मैप बनाया है। केन्द्र सरकार और योजना आयोग मानते हैं कि दूसरी हरित क्रांति पूर्वी भारत में होगी और बिहार भी इसी हिस्से में है। पर, हम तो इससे भी आगे इन्द्रधनुषी क्रांति की बात कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे विकास का असली मकसद अंतिम आदमी का विकास है। हम यह देखते हैं कि जिस विकास की बात हो रही है उससे अंतिम इंसान की आमदनी कितनी बढ़ी? लोग कहते हैं कि हमारे रोड ठीक हैं, पर प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ी? यही सवाल तो हम अर्थशास्त्रियों के समक्ष रखना चाहते हैं? हम भी इसका जवाब चाहते हैं, ऐसा क्यों है? यह समस्या सिर्फ बिहार की नहीं, देश और अन्य देशों की भी है।
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