मुंबई आतंकी हमले के संबंध में पाकिस्तान से आया न्यायिक आयोग अपनी सीमा लांघने लगा। उस पर कोर्ट से रोक लगवानी पड़ी। आयोग को सिर्फ बयान दर्ज करने की इजाजत मिली थी। वह गवाहों से पूछताछ करने लगा। सरकारी वकील उज्ज्वल निकम की इस मामले पर आयोग के सदस्यों से बहस भी हुई।
पाकिस्तानी आयोग ने शुक्रवार को गवाहों से पूछताछ की इजाजत के लिए चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एसएस शिंदे की अदालत में याचिका दायर की। शिंदे ने अनुमति देने से इनकार कर दिया। कोर्ट का कहना है कि इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। क्योंकि उसे केवल बयान दर्ज करने की इजाजत दी गई थी।
कोर्ट ने आयोग को फिलहाल दो गवाहों के बयान रिकॉर्ड करने की इजाजत दी है। इनमें जीवित बचे एकमात्र आतंकी कसाब का बयान दर्ज करने वाले मजिस्ट्रेट आरवी सावंत वाघले और हमले की जांच कर रहे क्राइम ब्रांच अधिकारी रमेश महाले शामिल हैं। आयोग ने अपनी याचिका में कहा कि वह पूछताछ को 26/११ के संबंध में पाकिस्तान में चल रहे मामले में आरोपियों के खिलाफ सबूत के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं। विशेष सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा, 'नवंबर २०१० में पाकिस्तानी सरकार इस बात पर सहमत थी कि भारत आने वाला आयोग केवल गवाहों के बयान दर्ज करेगा। अब आयोग गवाहों से पूछताछ करने की मांग क्यों कर रहा है।'
भारत ने पहले ही आयोग को गवाहों से पूछताछ करने की इजाजत देने से मना कर दिया था। उन्हें कसाब से मिलने की इजाजत भी नहीं दी गई। जांच अधिकारी रमेश महाले, जेजे अस्पताल के डा. गणेश नितुकर और नायर अस्पताल के डा. शैलेश मोहित के बयान शनिवार को रिकॉर्ड किए जा सकते हैं। इन दोनों डॉक्टरों ने इस हमले में मारे गए आतंकियों का पोस्टमॉर्टम किया था।
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