जब सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ अदालती कार्यवाही के मीडिया कवरेज के लिए दिशा-निर्देश बनाने सम्बंधी याचिका पर सुनवाई कर रही है, विशेषज्ञों का कहना है कि मीडिया पर आत्मनियमन होना चाहिए, न कि बाह्य नियंत्रण। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की निगरानी करने वाले और 'इंडियाज न्यूजपेपर रिवोल्यूशन' के लेखक रॉबिन जेफ्रे ने कहा, "मीडिया के लिए आचार संहिता प्रेस काउंसिल ऑम्फ इंडिया जैसी इकाई को ही तय करनी चाहिए।" इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इस सप्ताहांत में राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान के दौरान जेफ्रे ने एक सवाल के जवाब में कहा, "कोई भी अंग्रेजी भाषी देश संतोषजनक उत्तर के साथ सामने नहीं आया। लेकिन आत्मनियमन एकमात्र विकल्प जान पड़ता है।"
कनाडा के पत्रकार जेफ्रे ने भारत, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर में भी काम किया है। उनका मानना है कि भारतीय मीडिया में फिलहाल तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने की जो समस्या है, वह समय के साथ समाप्त हो जाएगी, जैसा कि दूसरे देशों में हुआ है। इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा ने कहा, "मैं यह सोचकर डर जाता हूं कि यदि सरकार इसे नियंत्रित करे तो क्या होगा। ऐसे में बाबू (क्लर्क) यह निर्णय लेंगे कि मीडिया की कवरेज किस प्रकार की हो।" न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि मीडिया को नियंत्रित करने की सरकारी कोशिश दुखद होगी, आत्म नियमन ही बेहतर होगा। उन्होंने मीडिया के लिए दिशा-निर्देश जारी करने सम्बंधी याचिका का विरोध करने वाले देश के वरिष्ठ वकीलों फली नरीमन एवं सोली सोराबजी की सराहना की। नरीमन सोराबजी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि वे जानते हैं कि 1975 में आपातकाल के दौरान क्या हुआ।
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