विभागों को लेकर रूठने-मनाने का खेल जारी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

विभागों को लेकर रूठने-मनाने का खेल जारी


कांग्रेस में जहां राजनीति की बिसात पर शह और मात का खेल जारी है, वहीं रूठने और मनाने का खेल भी चल रहा है। कब कौन रूठ जाए और उसको मनाने के लिए कौन सा पैंतरा चला जाए यह रूठने और मनाने वालों पर निर्भर है। बीते तीन दिन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य मंत्रिमण्डल में अपनी गरीमा के अनुरूप विभाग न मिलने से रूठ गए थे। हालांकि उन्होंने रूठने का कोई कारण सार्वजनिक तो नहीं किया, लेकिन इतना जरूर कहा कि वे अपने पारिवारिक कार्यक्रम में हरिद्वार में थे। राजनैतिक सूत्रों का कहना है कि यदि वे पारिवारिक कार्यक्रम में थे तो उन्होंने सरकारी गाड़ी क्यों लौटा दी थी और क्यों अपना मोबाईल बंद कर अज्ञातवास में चले गए थे। इसका जवाब न तो यशपाल आर्य के पास है और न ही मुख्यमंत्री के पास, लेकिन इतना जरूर है कि मुख्यमंत्री द्वारा गुलदस्ता भेंट किए जाने के बाद आर्य तब माने जब दोनों नेताओं की लगभग आधे घण्टे एक बंद कमरें में गुफ्तगू हुई इस गुफ्तगू का क्या मसौदा था, यह तो पता नहीं लग पाया, लेकिन कमरा खोलने के बाद बाहर आने पर दोनों के चेहरों पर मुस्कान जरूर दिखाई दी और वही एक वादा रहा कि हम साथ-साथ हैं। 

ठीक इसी हाईप्रोफाइल ड्रामे की तर्ज पर हल्द्वानी में भी दो मंत्री नाराज बताए जा रहे हैं, जहां डा. इंदिरा हृदयेश पाठक श्रम मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल को मंत्रिमण्डल में हल्के और कामचलाउ विभाग दिए जाने से नाराज हैं तो वहीं हरीशचंद्र दुर्गापाल इंदिरा हृदयेश को मामूली विभाग दिए जाने से नाराज हैं। उनकी भी शिकायत यह है कि दुर्गापाल ने उनके कहने पर कांग्रेस को समर्थन दिया है, लिहाजा अन्य निर्दलीय विधायकों को मंत्री बने नेताओं की तर्ज पर उनको भी अच्छे विभाग दिए जाने चाहिए थे। वहीं दूसरी ओर दुर्गापाल समर्थकों का कहना है कि डा. इंदिरा हृदयेश पाठक पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं और उनके कहने पर ही दुर्गापाल ने कांग्रेस को समर्थन दिया, लेकिन कांग्रेस ने मंत्रिमण्डल में विभाग के बंटवारें में अपने ही वरिष्ठ मंत्री को जन सरोकारों से जुड़े विभागों को देने में घोर उपेक्षा की है। इतना ही नहीं देहरादून में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिनेश अग्रवाल की भी कमोबेश यही स्थिति है, उनके समर्थकों का कहना है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दबाव डालने वाले मंत्रियों को अच्छे विभाग दिए हैं जबकि उनके नेता की उपेक्षा की गई है। ऐसे में अब यह देखना है कि रूठने-मनाने का यह दौर कब तक चलेगा।

(राजेन्द्र जोशी)  

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