जेल बन रहा अपराधियों का निर्माण फैक्टरी.. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 1 जुलाई 2012

जेल बन रहा अपराधियों का निर्माण फैक्टरी..


अमेरिकी अदालत ने पिछले दिनो एक ऐतिहासिक (और मानवीय नजरीय से सराहनीय) फैसला दिया है. सभी देशो की सरकारो को इसका अनुकरण करके अपनी संवेदनशीलता का परिचय देकर जेलो मे बंद बच्चो ,किशोरो और युवा के प्रति अपनी जागरूकता दिखाते हुये उनको सभ्य और जिम्मेदार नागरिक बनाने के दायित्व का निर्वाह करना चाहिये. यह बात भारत जैसे देश के लिये तो अति आवश्यक ही है क्युंकी इसकी वर्तमान बाल और किशोर आबादी का लगभग 2,34 प्रतिशत यांनी कोई 43 लाख बच्चे और किशोर जेलो मे बंद है जिनमे कोई 29 लाख बच्चे मामुली अपराधों मे साजायाफ्ता हैं. जेल वस्तुतः सुधार और पुनर्वासगृह होते हैं मगर संसाधनो की कमी और पकडे गये लोगो के प्रति व्यावहारिक रूप मे अकुशल रक्षक ( जिन पर जेलो मे व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी है) जेल के सुधार गृह होने के लक्ष्य को पूरा नही करते. 

मैंने कोई एक सप्ताह मुंबई की एक जेल मे गुजार कर देखा है कि सिद्धांत और व्यवहार मे वहां के जीवन मे कितना फर्क है. प्रशासनिक और प्रबंधन के नजरिये से भारतीय जेलो की व्यवस्था पर उंगली उठाना शायद उपयुक्त न भी हो मगर उसके कार्य - प्रतिफल अवश्य ही चिंताजनक है. इस बात को एक कैदी के उदाहरण से समझा जा सकता हे जो अपने किशोर - काल मे मामूली चोरी के आरोप मे पकडा गया था. हमारी न्याय- प्रणाली ने न्यायिक हिरासत मे ले उसको जेल भेजा कि वो सुधरकर एक सभ्य नागरिक बनने की दिशा मे अपने कदम उठायेगा लेकिन जेल मे रहकर वह असहिष्णू और अधिक उग्र अपराधी बनकर निकाला. वह बाहर आकर चोरी ,हत्या के प्रयास और हत्या जैसे मामलो मे शामिल हुआ और उसकी नालायकी देखिये कि उसने एक न्यायाधीश को भरी अदालत मे चप्पल फेंक कर मारा और गर्व से सबको यह बात बताता है कि उसने ऐसा किया.अलग -अलग अपराध के लिये कोई 8-9 साल का जेल जीवन एक किशोर से युवा बने को इतना उदंड क्यूँ और कैसे बना देता है ?

सिद्धांत रूप मे हमारी जेले सुधारगृह हैं मगर वहां का माहौल बिलकुल ही बिगाड-गृह जैसा होता है.न्यायिक हिरासत में रखे गये लोगो को अप्राकृतिक जीवन -शैली मे ढलना पडता है. एक नजर वहां के जीवन पर डालें तो बात अधिक स्पष्ट होगी. सुबह छः बजे उस हाल का दरवाजा खुलता है जहां एक साथ 150 -225 की संख्या मे बिना शिक्षा, उम्र और मानसिक स्तर का विभेद किये सबको रखा जाता है. सुबह छः से दस बजे तक वे अपने बैरीकेट से बाहर आके नित्य कर्म कर दोपहर का खाना हासिल करते हैं. सभी को एक ही नलके से नहाना पडता है और वहीं से पानी लेकर शौच आदि क्रियायें भी करनी पडती हैं. एक बैरीकेट मे अमूमन 6 हौल होते हैं और वहां 800 -1200 विचाराधीन तथा सजायाफ्ता कैदी एक साथ रहते हैं . इन तीन-चार घंटे के दर्मियान ही ये 800-1200 लोग आपस मे मिल सकते हैं पर चुकी जेल मे आते ही उनको सलाह दी जाती है कि किसी से मेल - जोल न बढाये तो अक्सर उनका बौद्धिक या मैत्री संबंध खास चार -पांच लोगो के बीच ही बन पाता है. एकल अपराधी ( अगर वो है तो ) यही से अपना समूह बनाता है और बाहर आके संगठित रूप से अपराध करता है. 

मेरी मुलाकात वहां लगभग 10 किशोरों से हुई जो घर से भागे या प्रेम के फिल्मी स्वरूप से प्रभावित हो बहक कर किये दुस्सहास के कारण पहली बार जेल मे आये थे और वहां से निकलने के बाद रेल या बस में मोबाईल फोन चुराने या चेन छीनने जैसे आरोपों मे आज जेल मे बंद हैं. वे अपने किये पर शर्मिन्दा नही थे और बाहर निकलने के बाद बडा हाथ मारने की योजनायें बना रहे थे . ऐसा इसलिये हुआ कि उनके सामने सहज और श्रम को महिमामंडित करनेवाले जीवन का कोई स्पष्ट संदेश नही था और न ही उनकी उर्जा को सही दिशा देने की कोई ठोस पहल वहां होती है. न तो उनको किसी उत्पादक कार्य मे लगाया जाता है और न ही उनकी शिक्षा की कोई ठोस व्यवस्था होती है.

मैने देखा कि साधू - संत के बैनर वहा हैं और वो सत्यनिष्ठ जीवन की बाते प्रचारित करते हैं मगर वास्तव मे किसी भी संत या साधू ने जेलो मे जीवन बिता रहे बच्चो - किशोरो -युवा और वृद्धो के लिये कोई कार्यक्रम नही चलाया जबकी मानसिक शांति और आध्यात्मिक शुद्धि के लिये ऐसे कार्यक्रमो को लगातार चलाये जाने की सख्त जरूरत है. जेलो मे जीवन बिता रहे बच्चो - किशोरो -युवा और वृद्धो के 24 घंटों मे लगभग 18 घंटे नितांत एकाकी होते हैं और करने को कुछ नही होने से मानसिक बेचैनी चरम पे होती है.

यह निठल्ला जीवन और अशिक्षा का माहौल किशोरो और युवा के मन - मस्तिष्क पर क्या असर डालता है ये बात गुजरात के एक युवक के उदाहरण से समझा जा सकता है जो लगभग 2 करोड रुपैये के हीरों की चोरी के गुनाह मे शामिल है और खुले तौर पर कहता है की अगली बार वो दस- बारह करोड का दांव मारेगा जिससे उसका परिवार आर्थिक दृष्टि से पूरी तरह सुरक्षित हो जाये. मैं एक खाते -पीते परिवार का हूँ और मेरे पैत्रिक स्थान मे मेरा परिवार संपन्न माना जाता है मगर जेल मे रहते हुये मुझे एहसास हुआ कि मैं सबसे गरीब हूँ और मेरे सपने भी सबसे गरीब हैं - वहाँ कोई किशोर या युवक नही मिला जिसके पास 5 करोड से कम की खुद की अर्जित की हुई संपत्ति हो या जो अपने जीवन मे 100 करोड से कम रुपैये अर्जित करना चाहता हो . मुझे अचरज हुआ कि पापा नामक 22 साल का चोर अंधेरी ( पश्चिम ) मे दो दुकान चालावाता है और रोजाना 50-60 हजार रुपैये का कारोबार उसका है. उसने कहा कि 30 -35 कि उम्र तक उसके पास मुंबई मे एक माल और पांच बियर बार होना ही चाहिये. अपने इस सपने को पूरा करने के लिये वो अंडरवर्ल्ड के लोगो से संपर्क साधना चाहता है और इसलिये जेल आया है . 

उसी ने मुझे जानकारी दी कि मुंबई का एक दक्षिणी भारतीय फिल्मकार अंडरवर्ल्ड के पैसो से फिल्म बनाता है इसलिये अपराधो को माहिमा मंडीत करनेवाली उसकी फिल्मे सुपरफ्लॉप होने पर भी उसको पैसो कि कमी नही होती और उसकी फिल्म - फैकट्री लगातार फिल्मे बनाती रहती है. इस काम मे एक पूर्व महिला पत्रकार उसकी मददगार है. मुश्ताक एक फिल्मस्टार के घर का नौकर हुआ करता था ,आज जेल मे है. उसके पास महिला पत्रकारो के बारे मे कहानिया है कि अमुक रिपोटर आई तो साहब ने पहिले उसको सुलाया फिर बाद मे इंटरवियु दिया... आदि आदि इत्यादि  ,

जेलो मे सबके पास काफी खाली समय होता है और ऐसी कहानिया मनोरंजन और प्रोत्साहन दोनो उद्देश्यो से वहां फैलायी जाती हैं और धन को बहुत महिमा मंडित किया जाता हे जिससे किशोर मन बहक और भटक जाता है. पापा और मुश्ताक कि बातें सच हो या न हो ,जेल मे रह रहे किशोरो तथा युवा मे ऐसी कहानियों का प्रसार - प्रचार रोकने का तंत्र हमारे पास होना चाहिये जो कि दुर्भाग्य से हमारे पास नही है. अगर जेलो मे भी विद्यालय कि व्यवस्था हो और शिक्षा को अनिवार्य कर दिया जाये तो किशोरो और युवा को अपराध कि अंधी गली के सफर पर जाने से रोका जा सकता है और उनकी उर्जा को उत्पादक कार्यो मे लगाया जा सकता है. 

यह कोई मुश्किल काम भी नही है. मैं जिस बैराक मे था वहां मुझ सहित 17 स्नातक थे  और तीन तो भारत सरकार मे शीर्ष पदो पर काम कर चुके अधिकारी थे . अगर जेल प्रबंधन चाहे तो ये पढे -लिखे लोग वहां रह रहे किशोरो और युवा को पढा सकते हैं इससे जहा किशोरो और युवा मे शिक्षा का प्रचार -प्रसार होगा वही पढे -लिखे लोग भी पूर्णकालिक  काम पाकर अपनी कुंठा से मुक्त होंगे और स्वस्थ समाज के निर्माण तथा विकास मे योगदान दे सकेंगे.  


राजेश झा 
rajeshjhawriterdirector@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं: