तभी मिलेगी भारीपन से मुक्ति !!
शरीर और मन-मस्तिष्क का गहरा सम्बंध है। मानसिक धरातल पर चित्त की जो वृत्तियाँ होती हैं वे ही मन को अच्छा-बुरा संकेत देती रहती हैं। इन मनः संकेतों के अनुसार हमारा स्थूल शरीर अपनी धारणाओं का निर्माण करता है तथा इसी के अनुरूप शारीरिक स्थितियां अपना प्रभाव छोड़ती हैैं। शरीर में होने वाली हर क्रिया-प्रतिक्रिया पहले सूक्ष्म रूप में आकार पाती है, फिर चेतन-अवचेतन की तरंगों का मिश्रण पाकर घनीभूत होती हुई स्थूल स्वरूप ग्रहण करती है। चित्त में सूक्ष्म धरातल पर प्रसन्नता के भाव होने पर यह स्थूल रूप में शरीर से भी प्रकट होता है। तब चेहरे से लेकर बॉडी लैंग्वेज तक सभी में यह प्रसन्नता व उल्लास की लहरें साफ झलकती हैं। इसके विपरीत किसी भी बात को लेकर मन में विषाद या अप्रसन्नता के भाव आने पर इसका स्थूल प्रभाव शरीर पर भी असर दिखाता है व चेहरे पर भी मलीनता भरी झाइयाँ घिर आती हैं।
मन की इन दोनों ही प्रकार की सकारात्मक व नकारात्मक स्थितियों का प्रभाव सूक्ष्म से स्थूल में रूपांतरित व उत्तरोत्तर घनीभूत होने लगता है और यही है जो शारीरिक स्थितियों को गहरे तक प्रभावित करता है। मनुष्य की सारी बीमारियों व निराशाओं का एक मात्र कारण सूक्ष्म रूप में नकारात्मकता व नैराश्य के बीजों का अंकुरण ही है जो नकारात्मक वैचारिक माहौल पाकर पल्लवित होने लगता है। यदि किसी भी प्रकार के निराशाजनक विचारों के बीजों को माहौल की नकारात्मक हवा न मिल पाए तो उस अवस्था में ये बीज स्वतः नष्ट हो जाते हैं व स्थूल आकार धारण ही नहीं कर पाते हैं। ऐसे में शरीर क्षणिक रूप से आन्दोलित मात्र होकर रह जाता है लेकिन शारीरिक स्थिति बुरे प्रभाव या रुग्णता से बच जाती है। इसलिए जीवन में हर क्षण हमारा चिंतन सकारात्मक सोच से भरा-पूरा होना चाहिये ताकि मन मस्तिष्क साफ व स्वच्छ रहे। हमारा मानसिक धरातल ठोस होने पर तथा मनः आकाश स्वच्छ होने पर हमारा शरीर भी पूर्णतः स्वस्थ रहता है। वार्धक्य तथा असंयम की वजह से शारीरिक रुग्णता आये वो अलग बात है अन्यथा मनः स्थितियाँ ही स्थूल आकार ग्रहण करती हैैं।
किन्ही भी प्रकार की शारीरिक व्याधियों और अनिष्ट का प्राकट्य एकदम नहीं हो जाता है बल्कि पहले इनका प्रादुर्भाव अपने आभामण्डल में सूक्ष्म रूप से प्रभाव दिखाता है। चित्तवृत्तियों की तरंगें पहले हमारे आभामण्डल की शुभ्रता व शुभता को भेदकर मलीनता लाती हैं। फिर जिस तरह के विचार व मनः स्थितियाँ बदलती रहती हैं उस हिसाब से आभामण्डल की चमक और रंग अपना न्यूनाधिक प्रभाव छोड़ते हैं। इन्ही के आधार पर शरीर की क्षमताएँ अपना असर दिखाती हैं। जीवन में हमेशा यह ध्यान रखना चाहिये कि उन विषयों या बातों का कतई चिंतन न करें जिनके सूक्ष्म से स्थूल होने की तनिक भी संभावना हो। अन्यथा होता यह है कि हमारा शरीर अपने भार से भारी नहीं होता बल्कि उन विचारों के भार की वजह से भारी व बोझिल रहता है जो अपने चेतन या अवचेतन में बेवजह जगह घेरे रहते हैं। तभी मन से बाहर निकल जाने पर हमारा मन व शरीर भी अवर्णनीय हल्का हो जाता है तथा सारी बोझिलता दूर हो जाती है। इसके बाद हमें जो सुकून मिलता है वह अपने आप में अन्यतम ही होता है। मन-मस्तिष्क को बेवजह के विषयों तथा वैचारिक धुँध से मुक्त रखे जाने की स्थिति में हम आत्मघाती भारीपन से मुक्ति पाते हुए जीवन के सभी आनंद सहजता से प्राप्त कर सकते हैं।
---डॉं. दीपक आचार्य---
9413306077
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