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सोमवार, 10 सितंबर 2012

जल सत्याग्रहियों की जान खतरे में.


पिछले 17 दिनों से अपने हक के लिए जल सत्याग्रह कर रहे लोगों के शरीर में गलन शुरू हो गई है, मछलियां उनके शरीर पर हमला करने लगी हैं और अब तो उनकी जिंदगी ही दांव पर लगती नजर आने लगी है। इतना कुछ होने के बाद भी जनता का हमदर्द होने का दावा करने वाली सरकारों को इनके दर्द की चिंता ही नहीं है। 

मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी की पहचान जीवनदायिनी की है। इसी नदी पर खंडवा में ओंकारेश्वर और हरदा में इंदिरा सागर बांध बनाए गए हैं। इन दोनों बांधों में ही बीते साल से ज्यादा पानी भर जाने से दर्जनों गांव डूबने की कगार पर पहुंच गए हैं। ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर बढ़ाने के विरोध में घोघलगांव तथा इंदिरासागर बांध के विरोध में हरदा में जल सत्याग्रह चल रहा है।

खंडवा के घोघलगांव में चल रहे जल सत्याग्रह का सोमवार  को 17वां दिन है। जल सत्याग्रही सिर्फ अपनी दिनचर्या या आवश्यक कार्य के लिए पानी से बाहर आते हैं और वे लगभग 20 घंटे पानी में ही रहते हैं। लगातार पानी में रहने से अधिकांश लोगों के शरीर में गलन शुरू हो गई है। यह आंदोलन नर्मदा बचाओ आंदोलन के बैनर तले चल रहा है। आंदोलन के वरिष्ठ सदस्य आलोक अग्रवाल का कहना है कि जल सत्याग्रह कर रहे अधिकांश लोगों की सेहत तेजी से बिगड़ रही है। पैरों तथा हाथ पर छाले साफ नजर आते हैं और पानी के भीतर मछलियां व अन्य जंतु भी उन पर हमला करने लगे हैं।

अग्रवाल खुले तौर पर राज्य सरकार पर आरोप लगाते हैं। उनका कहना है कि उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की खुलकर अवहेलना की जा रही है। प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन नहीं दी जा रही है और बांध में ज्यादा पानी भर जाने से पहले प्रभावितों का पुनर्वास नहीं किया गया। ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर 189 मीटर से बढ़ाकर 190.5 मीटर कर दिया गया है। नर्मदा के बीच बैठे सत्याग्रहियों का शरीर भले ही जवाब देने लगा हो मगर उनका जज्बा व जुनून अब भी पहले जैसा ही बना हुआ है। आंदोलन के 14 दिन बाद जागी राज्य सरकार के दो मंत्री कैलाश विजयवर्गीय व विजय शाह शनिवार को इन सत्याग्रहियों को मनाने पहुंचे मगर उन्हें खूब खरी-खरी सुनना पड़ी। आंदोलनकारियों ने सरकार को खूब कोसा और साफ कर दिया कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होती, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।

आंदोलनकारियों को मनाने में नाकाम रहे मंत्रियों ने कहा है कि उन्होंने दो दिन का समय मांगा है, मगर आंदोलन स्थगित नहीं किया गया। बाद में तो मंत्रियों ने आंदोलनकारियों की मंशा पर ही सवाल उठा दिया। वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय सांसद कांग्रेस के अरुण यादव ने केंद्र सरकार से दखल की मांग की हैं। केंद्र सरकार का दल भी सोमवार को घोघलगांव पहुंच रहा है। इस आंदोलन पर अब राजनीतिक रंग चढ़ने लगा है।  राज्य व केंद्र सरकार के रवैए से सत्याग्रही बेहद दुखी हैं और वे उनकी मंशा पर ही सवाल उठा रहे हैं। उनका आरोप है कि चुनाव आने पर तो यही राजनीतिक दल वोट के लिए उन तक आ जाते हैं, मगर उनकी मुसीबत के समय उनका रवैया कुछ और होता है, यह जाहिर हो गया है।

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