रियायतो के बंगलों पर सियासत का कब्जा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

रियायतो के बंगलों पर सियासत का कब्जा


सरकारी बंगला उनसे लगी भूमि होने के बाद जिला प्रशासन नही कर पा रहा आज तक कार्यावाही 

बुन्देलखण्ड की राजधानी कहे जाने बाला कस्बा नौगॉव अंग्रेजी ष्षासन के समय से ही सुन्दर व स्वच्छ वाताबरण केलिए प्रसिध्द रहा यहॉ की जलवायु से अंग्रेज प्रभावित रहे हैं इसलिए अंग्रेजी ष्षासन में नोगॉव में आर्मी केन्ट (छावनी) रही । आर्मी छावनी में अंग्रेजों की सेना के साथ साथ यहां प्रषिक्षण देने की भी उत्तम व्यवस्था रही है । नौगॉव में आर्मी कालेज रहा साथ ही 36 रियासतों के राजा महाराजाओं का पोल्टीकल ऐजेन्ट रहा करता था जो हर माह नौगॉव छायवी में रियासतों के राजा महाराजाओं की  ्रपषासनिक बैठकें तथा सरकार चलाने की रणनीति हुआ करती थी इसलिए नौगाूव में प्रत्येक राजाओं के अपने अपने बंगले हुआ करते थें । जो रियासतों के नाम से जाने जाते थें ।  भारत देष आजाद हुआ तो अंग्रेज जाने लगें , अंग्रेजों ने जाते जाते कुछ बंगलों के अधिकार राजाओं को लिखित देकर उन्हे बंगलों एवं उनसे लगी भूमि का मालिक बना दिया था अनेक बंगला किसी के नाम न करने पर कुछ समय राजा महाराजाओं के सचिव व उनके कामदार देख रेख करते रहे । देष आजाद होने के समय भूमि की कोई कीमत नही थी , राजा महाराजा के सचिव जमीनों पर लगान बसूली करते थें जिससे हजारों किसानों ने अपने हक की भूमि लगान अदा न करने पर सरकार को ही सौप दी थी जो सरकारी हो गई थी । 

नौगॉव नगर में नगर पालिका की स्थापना भी सन् 1939 में हो चुकी थी , नगर पालिका के पास कोई ऐसा नक्षा नही था जिससे यह साबित हो सकें कि बंगलों के मालिक कौन कौन है, मध्य प्रदेष सरकार की स्थापना 1 नवम्बर 1956 को हुई उस समय जो राजनैतिक पहॅुच बाले नेता थें उन्होने कुछ बंगलों पर अपना आधिपत्य व कब्जा कर लिया तथा उसके मालिक बन बैठे , मध्य प्रदेष की स्थापना के बाद भी मध्य प्रदेष सरकार ने अपने स्वामित्व की भूमि की सुरक्षा नही की जिससे सरकारी भूमि पर जगह जगह कब्जा व पट्टाधारी बन गये राजस्व अभिलेख व रिाकार्ड  में भारी फेर बदल किया गया । मध्य प्रदेष सरकार ने सन् 1959 में मध्य प्रदेष भू-राजस्व संहिता का गठन किया तथा उसे प्रदेष में प्रभावषी बनाया जिसका लाभ कुछ होषियार राजस्व अधिकारियों ने अपने चहेतों के नाम भूमि दर्ज कराकर भूमि स्वामी घोषित किया । 

महाराज गोरिहार बंगला नं. 25 का बिक्रय पत्र डा0 ईष्वर दयाल गुप्ता ने जब महाराज गौरिहार के बंषंज के नाम किया , उस समय नौगॉव तहसील में तहसीलदार के पद पर श्री बी0एल0 मिश्रा पदस्थ थें जिसकी जानकारी नगर के जागरूक पत्रकारों ने दी तो उन्होने नौगॉव के सरकारी भूमि संे संबधित कागजाते राजस्व अभिलेख से कुछ खोजकर छतरपुर जिला कलेक्टर को जानकारी दी , छतरपुर जिला कलेक्टर ने तहसीलदार नौगॉव केा नौगॉव की सरकारी भूमि की सम्पूर्ण जानकारी एकत्रित करने हेतू अध्यषासकीय पत्र लिखा ,जिस पर नौगॉव नगर के 21 बंगलों सरकारी पाये गये जिसकी सूची तैयार कर नजूल विभाग छतरपुर को दी गई , नजूल विभाग ने अपनी सम्पूर्ण रिपोर्ट बनाकर जिला कलैक्टर के समय पैष की । नजूल विभाग के प्रभारी जिला कलेक्टर ही थें उन्होने अपने आदेष पत्र क्रमॉक 325/नजूल/86 दिनांक 13-11-1986 के अनुसार नौगॉव की भूमि को सरकारी संपत्ति घोषित करते हुये नगर पालिका परिषद नौगॉव, सब रजिस्ट्रार नौगॉव , तहसीलदार नोगॉव को आदेष दिया कि नौगॉव मे स्थित सूची अनुसार बंगलों एवं उनसे लगी भूमि पर कोई अतिक्रमण न करें तथा उक्त संपत्ति का क्रय-बिक्रय पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया । 

जिला कलेक्टर के आदेष आने के बाद नौगॉव के प्रतिबंधित बंगलों में बंगला नं. 3,5,8,9 13, 14, से  बंगला नम्बर 21,23,24,26,27,28 28 तक सरकारी घोषित किये गये । इन बंगलों की भूमि की सुरक्षा की जुम्मेदारी भी राजस्व विभाग व नजूल की रखी गई लेकिन राजनेतिक दवाव के चलते इन बंगलों पर 10 व 50 के स्टाम्पों पर खरीद फरोस होती गई तथा आम जनता ने हल्का पटवारी व तहसीलदारो से मिलकर सरकारी भूमि पर कब्जा कर लिया , इसी बीच नौगॉव हल्का पटवारी की मिली भगत से अनेक बंगला नौगॉव अनुविभागीय अधिकारी राजस्व ने मध्य प्रदेष भू-राजस्व संहित की धारा 57(2) के अधिकार के बाद भूमि स्वामी घोषित कर मोटी रकम बटोरी नौगॉव पटवारी ने इन भू-माफियों से मोटी रकम ली या अपने निकटतम रिष्तेदारों व परिचतों के नाम प्लाटों पर कब्जा करायें नौगॉव नगर में जो बंगलों है वह पिपरी से लेकर आर्मी कालेज के पास तक है तथा प्रत्येक बंगलों में 5-5 एकड़ भूमि लगी थी सभी बंगलों पर कब्जा कर लिये कुछ व्यक्तियों ने कलेेक्टर छतरपुर के आदेष के बिरूध्द संभागीय आयुक्त के पास अपील कर अपने नाम भूमि स्वामी दर्ज कराई बंगला नं. 8 के मालिक श्री राजेन्द्र सिंह राठौर वगैरह ने न्यायालय अपर आयुक्त सागर के प्रकरण क्रमॉक 540/बी-121 बर्ष 92-93 आदेष दिनांक 2 अगस्त 1999 के अनुसार भूमि स्वामी घोषित किया गया इसके बाद  श्री राजेन्द्र सिंह राठौर ने माननीय राजस्व मण्डल में अपील दायर की थी जिसका निराकरण भी 12-2-1997 को गुण दोष मानकार अपील स्वीकार कर  किया है । छतरपुर जिला कलेक्टर ने अपने आदेष पत्र क्रमॉक 651/षिकायत-2/2002 छतरपुर दिनांक 11 जून 2002 को बंगला नं0 8 की भूमि सर्वे नम्बर 497 को भूमि स्वामी माना तथा बिक्रय एवं नामान्तरण पर लगी रोक हटाई गई ।  इसी प्रकार नौगॉव के श्री मेहरोत्रा परिवार ने बंगला नं0 14 , 23, के मालिक इस आदेष के बिरूध्द सिविल न्यायालय गये वहां से उन्होने अपने स्वामित्व प्रमाण पत्र देकर न्यायालय से प्रकरण जीत कर भूमि स्वामी दर्ज कराई ।  पन्ना हाउस पर लगा प्रतिबधं इसलिए हटाया गया  िकइस ंबंगला में ग्वालियर संभागीय आयुक्त श्री अखिलेन्दु अरजरिया  ने एक आवासीय प्लाट विभागीय तौर पर क्रय किया था जिस कारण छतरपुर कलेक्टर ने इस पन्ना हाउस को प्रतिबंध से मुक्त कर भूमि स्वामी घोषित कर दिया । भले ही यह प्लाट सेवानिबृति के बाद श्री अखिलेन्दु अरजरिया जी ने नौगॉव के एक रावत परिवार को बिक्रय किया गया है । मध्य प्रदेष सरकार के अलावा इन बंगलों पर आर्मी कालेज के सीओ ने भी आपत्ति दर्ज करते हुये अनेक बंगलों पर भारत सरकार की संपत्ति के बोर्ड लगा रखे है यदि यह भूमि आर्मी सेना की है तो आर्मी सेना के अधिकारी अभी तक इन बंगलों पर कब्जा क्यो नही कर सके ? जबकि राजस्व अभिलेख में आर्मी की भूमि में मात्र नौगॉव की कुछ भूमि और नगर का बंद पड़ा हवाई अड्डा ही सेना का बताया गया है , आर्मी कालेज नं चर्च के सामने  रक्षा मंत्रालय का बोर्ड लगाकर यह साबित किया है कि यह चर्च भी अंग्रेजों के समय की है जो आर्मी की रही है आज भी आर्मी की हैं ।  इसी प्रकार बंगला नं0 26, जिसमें बर्तमान में महर्षि विद्यालय संचालित हो रहा है , बंगला नं. 27 जिसमें लेडी बर्ड है तथा बंगला नं0 28 जिसमें बर्तमान नगर पालिका अध्यक्ष का निवास है यह सभी बंगला आर्मी के बोड लगाकर रक्षा मंत्रालय की भूमि बताई जा रही है लेकिन आज तक न तो आर्मी की सेना के अधिकारियों ने इस पर अपना कब्जा प्राप्त किया न ही राजस्व विभाग ने ।  इस बिषम परिस्थितिओं में जनता का बिष्वास किस पर जाये । सरकार को चाहिये  िकवह इन बंगलो का सही रूप  से निराकरण करें । 

नौगॉव नगर के जागरूक पत्रकार संतोष गंगेले ने एमपी समाधान पर दिनांक 20 जनवरी 2011 को जीपी/134715/2011/99 पर प्रदेष की आम जनता की षिकायत दर्ज कराई थी कि प्रदेष सरकार ने इंटरनेट पर राजस्व रिकार्ड जो डाला गया है उसमें आधे से अधिक रिकार्ड सही नही है , प्रदेष सरकार ने उदाहरण के तौर पर नौगॉव तहसीलदार को इस प्रकरण की जॉच सौपी गई  तो नौगॉव ने झूठ का पुलिन्दा तैयार कर सरकार को दिनांक 10 फरवरी 2011 को पत्र क्रमॉक 33 पर जो जॉच कराई जिसका जबाब दिनंाक 17 फरवरी 2011 को जबाब दिया कि नौगॉव तहसील क्षेत्र में किसानो काष्तकारों को खसरा खतौनी की नकले दी जा रही है साथ ही कम्प्यूटर रिकार्ड सही कराया जा रहा है ।  जबकि असल बात इस प्रकार है कि नौगॉव कम्प्यूटर ष्षाखा में कोई आपरेटर ही नही है , कम्प्यूटर चलाने का ज्ञान किसी को नही है , पूर्व आपरेटर श्री बी0के0 देहलवार के साथ सहायत के रूप में नकलषाखा के ष्षेक्षन राईटर गोपाल मिश्र को एक महत्वपूर्ण व गोपनीय सरकार का रिकार्ड तहसीलदार ने  मौखिख आदेष पर सौप दिया है जो कानूनी रूप से गलत ही नही है बल्कि खुले रूप से सरकारी रिकार्ड के साथ खिलवाड़ हो रहा है । आज दिनांक तक रिकार्ड सही नही है । एक दिवसीय समाधान पर जनता को लिया जा रहा पैसा भी जनता के साथ धोका है । इसकी जानकारी प्रदेष के मुख्य सचिव को मिलने पर उन्होने पूरे प्रदेष में 31 जुलाई 2011 तक सम्पूर्ण रिकार्ड पटवारी हल्का के रिकार्ड से मिलान करने के आदेष देकर जनता का समस्त रिकार्ड इंटरनेट पर राजस्व मण्डल की जुम्मेदारी सौपी है लेकिन यह आदेष भी असंभव लग रहा है । 

छतरपुर जिला कलेक्टर के आदेष का पालन नौगॉव तहसील के तहसीलदार, एवं हल्का पटवारी के न करने के कारण भी करोड़ों रू0 की भूमि पर अनाधिकृत रूप से कब्जा हो चुका है तथा इन बंगलों की भूमि पर आज भी मध्य प्रदेष सरकार दर्ज होने के बाद भी नगर पालिका परिषद नौगॉव की मिली भगत से आवादी बस चुके हैं तथा अनेक भूमि माफिओं के व्दारा बहूमूल्य भूमि पर राजनैतिक पहुॅच बाले व्यक्तियों ने अपने नाम भूमि स्वामी दर्ज कराकर करोड़ों रू0 की अवैद्यानिक कालौनियों मे तव्दील कर दी गई है ।  पंजीयन विभाग के रिकार्ड के अनुसार नौगॉव में आये दिन बंगलों की भूमि के बैनामा हो रहे हैं चूॅकि पंजीयन विभाग तो भू-अधिकार पुस्तिका होने पर ही बैनामा पंजीयन कर रहे है ।  इस संबंध में नौगॉव नगर के जागरूक पत्रकार संतोष गंगेले  ने एमपी समाधान पर दिनांक 7 मार्च 2011 पीजी/137533/2011/99-को इन बंगलों की निराकरण हेतू सरकार को लिखा था , मुख्य सचिव महेादय ने इस प्रकरण की जॉच भी नौगॉव तहसील के राजस्व अधिकारियों से कराई तो उन्होने अपने पक्ष मे ही जबाब बनाकर सरकार को दिनांक  9 मई 2011 को जबाब दिया गया है । इस जबाब में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व श्री संतोष श्रीवास्तव ने अपने पत्र क्रमॉक 469 दिनांक 3-5-2011 तहसीलदार नौगॉव ने अपने पत्र क्रमॉक 108/रीडर/11 दिनांक 2-5-011 केा एवं नौगॉव नगर पालिका अधिकारी ने अपिने पत्र क्रमॉक 739 दिनांक 3-5-2011 को  प्रतिबेदन लिये गये तथा उप पंजीयक नौगॉव ने भी 5 5.2011 को जबाब दिया है ।  यह सभी प्रतिबेदन सरकार को भेजे गये है जिनकी बिन्दुबार जॉच कराये जाने हेतू पुनः एमपी समाधान पीजी/141266/2011/99 दिनांक 11-5-2011 को सरकार को लिखा गया कि छतरपुर जिला कलेक्टर ने किसी आधार पर नजूल विभाग छतरपुर ने अपने कार्यालय के पत्र कमॉक 325/नजूल/86 दिनांक 13-11-1986 को जारी किया गया है यदि नौगॉव के बंगले सरकार भूमि है तो उन पर अतिक्रमण के प्रकरण क्यो नही चलाये गये साथ ही सरकार की ओर से उन्हे कब्जा हटाने की क्या कार्यावाही की गई ? प्रतिंबंधित बंगलों की भूमि करोड़ों रू0 की बाजारू कीमत रखती है उस पर स्थानीय प्रषासन ने क्या कार्यावाही की गई यह जानकारी सही नही दी गई हैं इस संबंध में नौगॉव तहसीलदार ने प्रकरण के तथ्यों को घुमा फिरा कर दिनांक 15 जून 2011 को जो जबाब सरकार को दिया है वह न तो सरकार के हित में है न ही जनता के हितों में है इस संबंध में अनेकों बार मुख्यमंत्री जी को भी लिखा गया है  । एसडीएम ने लिखा है कि इसके पूर्व श्री के पी महेष्वरी तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी व्दारा नोगॉव के 36 बंगलों के स्वामित्व एवं आधिपत्य पर पत्र कमॉक 806/प्रबा.-1/09 दिनांक 10-6-2011 को निम्न बिन्दुओं पर प्रतिबेदन रीडर ष्षाखा को भेजा गया था ष्षासन के स्वामित्व एवं आधितत्य बाले बंगलों की संख्या 23 निजी स्वामित्व के आधिपत्य एवं आधिपत्य ालें कीसंख्या 6 है उपरोक्त सभी 36 बंगले का नाम खसरा नम्बर रकवा स्वामित्व का विवरण  व स्वामित्व के अर्जन का स्त्रोत का पत्रंक संलग्न है  तहसीलदार ने लिखा है कि नौगॉव के प्रतिबंधित ंबंगलों पर अतिक्रमण नही है इसलिए उन्हे बेखदी नही किया जा सकता है । जब सरकार के राजस्व अधिकारी ने बंगलों को या उनसे लगी भूमि सरकारी नही है तो पंजीयन एवं मुदंॉक विभाग की होने बाली राजस्व आय पर लगा छतरपुर जिला कलेक्टर का आदेष क्यो निरस्त नही किया जाता है जबकि बंगला नं0 8 राजेन्द्र सिंह राठोर बगैरह केलिए छतरपुर जिला कलेक्टर ने अपने आदेष के तहत व्यक्तिगत एक बंगला की संपत्ति को बिक्रय की अनुमति प्रदान की गई हैं । 

पंजीयन एवं मुद्रॉक विभाग की राजस्व आय रोकने केलिए आये दिन प्रदेष के जिला कलेक्टर एवं अनुविभागीय अधिकारी पंजीयन विभाग को आदेष देते रहते है जिससे सरकार की राजस्व आय पर बुरा असर हो रहा है ।  यदि हम कहे कि सन् 1986 से नौगॉव के बंगलों पर लगी रोक की संपत्ति के दस्तावेजों का पंजीयन ही बंद है यदि पंजीयन ष्षुरू होता तो प्रतिबर्ष दो सौ से अधिक दस्तावेजों की संख्या बढ़ती साथ ही 25 लाख से 50 लाख की राजस्व आय प्रति साल के अनुसार नुकसान हो रहा है । 

मध्य प्रदेष सरकार को मिलने बाली षिकायतों के आधार पर माननीय मुख्यसचिव श्री अवनि बैष्य मध्य प्रदेष ष्षासन कार्यालय मुख्य सचिव मंत्रालय बल्लभ भवन, भोपाल 462004 ने मध्य प्रदेष के समस्त संभागायुक्त, एवं जिला कलेक्टरों को अपने कार्यालय के पत्र 0 क्रमॉक /110/मु.स./2011 भोपाल दिनांक 2 जून 2011 के अनुसार दस्तावेजों के पंजीयन पर अवैघानिक प्रतिबन्ध लगाये जाने वावत्  पत्र लिख कर ऐसे प्रतिबंध को अवैधानिक  बताया है । इस प्रकार के आदेष सम्पूर्ण प्रदेष के जिला कलैक्टरों के पास पहुॅचा दिये गये है । छतरपुर जिला कलेक्टर श्री राहुल जैन व्दारा 6 जुलाई 2011 को जिला के हल्का पटवारियों की बैठक लेकर पटवारियों व्दारा जनता के साथ किस तरह से कार्य करना है सरकार की क्या नीति है इन पर गहन विचार बिमर्ष कर आदेष दिये गये लेकिन बर्तमान समय में चल रही गतिबिधियॉ कलेक्टर के आदेष का कहॉ तक पालन करती है यह कहना बर्तमान में संभव नही है  

अब सबाल उठता है कि प्रदेष सरकार की ओर से माननीय मुख्य सचिव महोदय ने प्रदेष के जिला कलैक्टरों को इस प्रकार के आदेष दिये है तो क्या छतरपुर जिला कलेक्टर श्री राहुल जैन  नौगॉव के इन विवादित बंगलों पर लगा संपत्ति क्रय-बिक्रय पर प्रतिबंध हटाने की कार्यावाही हेतू जॉच कमेटी गठित कर आदेष जारी करेगें जिससे नौगॉव की जनता को न्याय मिल सकेगा । 


(संतोष कुमार)
( छतरपुर से संतोष कुमार गंगेले की रिपोर्ट)

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