मानसिक रोगी ही करते हैं गुस्सा..... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 1 अक्टूबर 2012

मानसिक रोगी ही करते हैं गुस्सा.....


फिर हो जाते हैं उन्मादी और असाध्य रोगी !!!


शरीर के भीतर से अतिरिक्त ऊर्जाओं का उत्सर्जन सामान्य अवस्था में नहीं हुआ करता बल्कि जब व्यक्ति नियमित और सामान्य जीवन जीता है उस समय उसका मन, मस्तिष्क और शरीर पूरी तरह संतुलित होता है और उसके शरीर के प्रत्येक अवयव भी सुचारू रूप से क्रियाशील रहते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति के सभी कर्म अपनी स्वतः उत्पन्न रफ्तार से अच्छे फल देते हुए चलते रहते हैं और उसे अपने कर्म का आनंद भी प्राप्त होता है। लेकिन जैसे ही कोई अनचाहा हो जाए, अथवा मनचाहा न हो, तब मन और मस्तिष्क फिजूल की कितनी ही बाताें को सोचकर प्रतिक्रियावादी हो उठते हैं और ऎसे में सभी ज्ञानेन्दि्रयां और कर्मेन्दि्रयां एक ही दिशा में नकारात्मक ऊर्जाओं का संचरण देखती रहती हैं। ऎसे में शरीरस्थ चक्रों की नकारात्मक ऊर्जा घनीभूत होकर उष्णता पाने लगती है वहीं हारमोंस भी अपने पूरे वेग से संचरण करने लगते हैं। इन सारी स्थितियों में शरीर में जो उबाल आ जाता है वह जल्द से जल्द बाहर की ओर उत्सर्जित होना चाहता है और इसे ही क्रोध कहा गया है। जब भी मनुष्य को भीतर से क्रोध आएगा तब वह पूर्णता के साथ प्रतिकार करने की स्थिति में आ जाता है। इसी तरह की स्थितियां जिन लोगों के साथ बार-बार होती रहती हैं उन्हें हमेशा किसी न किसी बात या वहम पर गुस्सा आने लगता है। कभी ये गुस्सा पी जाते हैं पर बहुत सी बार गुस्सा पीने की बजाय ये लोग बाहर की ओर बरसाने लगते हैं और वह भी पूरे वेग से। गुस्सा आना मनुष्य का स्वाभाविक लक्षण है और गुस्से का प्राकट्य करना कई बार सभी लोगों के हित में भी होता है लेकिन प्रायःतर छोटी-छोटी बातों या घटनाओं पर विचलन, उद्वेग और गुस्से होना इस बात का लक्षण है कि जो गुस्सा कर रहा है वह मानसिक रोगी की श्रेणी में आ चुका है और यह उसके उन्मादी जीवन का वह आरंभिक चरण है जिसे समय पर नहीं संभाला गया तो हो सकता है कि आने वाले समय में यह मानसिक के साथ-साथ शारीरिक रोग का जनक हो जाए और कोई ऎसा रोग घेर ले जिसे असाध्य माना जाता है।

जिस व्यक्ति के जीवन में वैचारिक धरातल मजबूत होता है और भारीपन होता है वह हर विचार, बात या घटना को बहुधा सहजता से ग्रहण करता है  और ऎसे में किसी भी प्रकार की विषम परिस्थिति सामने आने पर ऎसे लोग  धीर-गंभीर होकर सोच-विचार करते हैं और इसके बाद ही निर्णय करते हैं। इस वजह से इन लोगों में जल्द गुस्सा आने की संभावना नहीं रहती है और ऎसे में इन लोगों को कई समस्याओं से अपने आप मुक्ति मिल जाती है। दूसरी ओर बहुसंख्य लोग ऎसे हुआ करते हैं जिन्हें बात-बात में गुस्सा आ जाता है और उसकी तीव्रता का स्तर भी खतरे के निशान से अक्सर ऊपर ही होता चला जाता है। इन लोगों को गुस्सा आने के कई कारण होते हैं। इनमें एक तो इन लोगों को यह भ्रम हो जाता है कि वे पूर्ण और अद्वितीय हैं और जमाने में वे ही हैं जिनकी वजह से दुनिया चल रही है। ऎसे में ये लोग जो सोचते और करते हैं या जो अपेक्षाएं और आशाएं रखते हैं उन्हें ही दुनिया का सर्वोपरि सत्य मानते हैं। इस अहंकार के मारे इन लोगों को परिवेश में जरा सी भी इनकी अनुकूलता से परे कुछ हलचल होने लगती है तब इनका पारा अचानक उछलने लगता है और तब सारा आभामण्डल डाँवाडोल होने लगता है। इन हालातों में इनका गुस्सा कभी तीव्रतर और कभी न्यून होता रहता है। कभी छोटी बात पर बड़ा गुस्सा आने लगता है तो कभी बड़ी बात पर और भी बड़ा गुस्सा।

कुछ लोग तो ऎसे हैं जिन्हें हर बात पर गुस्सा आता रहता है और इनकी नाक पर हमेशा गुस्सा बिराजमान रहता है। ऎसे बहुत सारे लोग हमारे अपने क्षेत्र में तथा अपने आस-पास हैं जबकि इसी किस्म के खूब सारे लोग हमारे संपर्कितों में हैं या रोजाना कहीं न कहीं टकराते रहते हैं। इन लोगों के चेहरे पर हमेशा गुस्सा और गुस्से की कालिमा छायी रहती है जिनकी वजह से इस किस्म के लोग चाहे कितने गौर वर्ण के पैदा हो जाएं मगर गुस्से की बदौलत कृष्णवर्णी और कृष्णकर्मी परंपरा में शामिल हो ही जाते हैं। इन लोगों को लगता है कि सारा जमाना वे ही चला रहे हैं और जमाने को भी उन्हीं के हिसाब से चलना ही चाहिए। लोग वाह-वाह करते हुए उनकी बातें सुनते रहें, मानते रहें तब तक ये ठीक-ठाक रहेंगे लेकिन जैसे ही कोई तनिक सी गैर जरूरी बात भी उनके मन की न हुई, तो फिर इनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है और फिर गुस्से की नाव पर सवार होकर शुरू हो जाती है प्रतिशोध की यात्रा। यों देखा जाए तो गुस्सा आना मानसिक रोगी होने की शुरूआत का पुष्ट प्रमाण है जिसे और किसी डॉक्टरी सर्टीफिकेट की आवश्यकता नहीं रहती। आम तौर पर जो लोग गुस्सा करते हैं वे मानसिक बीमार होने के साथ  ही साथ किसी न किसी प्रकार के गुप्त रोग या शारीरिक व्याधियों व अवसाद के शिकार जरूर होते हैं।

ऎसा नहीं हो सकता कि कोई आदमी मानसिक  रुग्ण हो और किसी भी प्रकार की शारीरिक व्याधि से ग्रस्त न हो। ऎसे गुस्सैल लोगों को नेत्ररोग, बाल उड़ने, समय से पहले गंजे हो जाने, अचानक मोटे या पतले हो जाने, चेहरा काला पड़ जाने व झुर्रियां आ जाने, ब्लड़ प्रेशर, सुगर, क्षय, हृदयरोग, दमा आदि बीमारियां होने लगती हैं। और ये बीमारियां न हों तब भी इन लोगों में यौन दौर्बल्य और गुप्त रोगों का प्रभाव जरूर देखा जाता है। इन गुस्सा करने वाले लोगों के परिजन भी धन्य होते हैं जो इनके क्रूर और नरपिशाचों भरे व्यवहार और गालियों को सुनते रहने के बावजूद सहिष्णु बने हुए उनके साथ ही रह रहे हैं और उन्हें किसी तरह झेल रहे हैें। अपने सम्पर्क में जो भी ऎसा आदमी आए जो गुस्सा करने का आदी हो, तो उसके प्रति भी घृणा या गुस्सा व्यक्त करने की बजाय उसकी मानसिकता को समझें और उसे मानसिक रोगी या व्याधिग्रस्त उन्मादी मानकर दया का भाव रखें और करुणाजनक व्यवहार करें क्योंकि ऎसे व्यक्ति में भी ईश्वर का वास होता है। फिर ईश्वर जितने अंश में मनुष्यों में रहता है उतने ही अंश में गधों, सूअरों, उल्लूओं और सिरफिरों तक में। इनके परिजनों को भी चाहिए कि वे अपने आत्मीयों की हरकतों को हल्के में न लें बल्कि जितना जल्द हो इस बीमारी का ईलाज करवाएं।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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