राक्षसों का हमारे धार्मिक पुस्तकों में जिक्र है उसी आधार पर सिनेमा, पुस्तकों में भी राक्षसों को सींग दिखाया जाता है जिसका खाका हमारे मन में बना हुआ है उसी को आधार मान हम राक्षस के मूर्त रूप की कल्पना कर लेते हैं. एफडीआई (FDI) शब्द सुनकर भी ऐसा ही प्रतीत होने लगा है, मानो वह भी हमारे धर्म ग्रंथो की तरह एक बड़ा राक्षस हो जिसे यदि अपनी सीमा में घुसने दे दिया गया तो एक एक कर सभी को निगल जाएगा और समूचे देश पर उसका राज्य हो जाएगा।
आज चीन की उन्नति में एफडीआई और निर्यात की प्रमुख भूमिका है परन्तु नेताओं ने एफडीआई को एक खलनायक की तरह पेशकर लोगों के मन में भय पैदा कर दिया है। लोगों को लगता है एफडीआई हमारे यहाँ आया तो छोटे छोटे व्यापारियों का कारोबार ठप्प हो जाएगा, लोग बेरोजगार हो जायेंगे। इतना ही नहीं लोगों के मन में धारणा पैदा की जा रही है यदि एफडीआई आया तो हम फिर से गुलाम हो जाएँगे। आज इक्कीसवीं सदी में भी हम कहाँ जा रहे हैं ? कहने को हम विकासशील देश कहलाते हैं लेकिन आज भी हमारी सोच नहीं बदल पाती है।
फल और सब्जियां उगाने में भारत का दूसरा स्थान है लेकिन बुनियादी सुविधा के आभाव में एक बड़ा हिस्सा सड़ गल जाता है. यदि उसे ही किसान बचा लें तो उनकी आमदनी में बढ़ोत्तरी हो जाएगी. खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के आने से किसानो को सहूलियत होगी, उनकी आमदनी बढ़ेगी, रोजगार बढेगा, बिचौलियों के झंझट से मुक्त हो किसानो को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिलेगा।
आज के युवा पीढ़ी के पास इतना समय नहीं है कि वे घूम घूमकर सर्वेक्षण कर सामन लें। उन्हें तो एक छत के नीचे सारी वस्तुएं मिल जाएँ वह भी उचित मूल्य पर वे उसे ही पसंद करते हैं।
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