तो यह रहा दवा कम्पनियों के लूट का सबूत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

तो यह रहा दवा कम्पनियों के लूट का सबूत

दवा कंपनियां देश को लूट रही हैं बल्कि सच पूछिए तो बड़े दवा कम्पनियों की मनमानी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. कोरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा दवाओं के सम्बन्ध में कराए गए शोध में यह पाया गया कि देश-विदेश की जानी-मानी दवा कंपनियां भारतीय बाज़ार में  203% से 1123%  तक मुनाफा कमा रही है. इसमें सिप्ला, रैनबैक्सी ग्लोबल, डॉ रेड्डी लैब, ग्लाक्सो स्मिथकिल्ने, फाईजर, जाईडस जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं.

यही नहीं, इस संबंध में प्रतिभा जननी सेवा संस्थान द्वारा चलाए जा रहे कंट्रोल एम.एम.आर.पी. कैंपेन के माध्यम से भी दवा कंपनियों की लूट की पोल लगातार खोली जा रही है. इस परिप्रेक्ष्य में इस संस्थान के नेशनल को-आर्डिनेटर आशुतोष कुमार सिंह लगातार शोध-कार्य में जुटे हुए हैं. उनकी खोजपरक रिपोर्टिंग का नतीजा है कि आज देश दवाइयों में ब्याप्त भ्रष्टाचार की कहानियों को समझ पा रहा है. इसके साथ ही इसी संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट, लखनऊ बेंच में दवा कम्पनियों की भारी मुनाफा रोके जाने के लिए जनहित याचिका (संख्या 7596/2012) दायर किया गया था. जिसकी सुनवाई 03 अक्टूबर 2012 को चीफ जस्टिस अमिताव लाला एवं जस्टिस अनिल कुमार की बेंच के सामने हुई.

ठाकुर ने फोन पर बातचीत में बताया कि कोर्ट ने उन्हें उन दवा कंपनियों के नाम भी बताने को कहा है जो यह मुनाफाखोरी का काम कर रहे हैं. ताकि उन्हें भी नोटिस भेजा सके. गौरतलब रहे कि हाल के दिनों में देश में दवाओं की कीमतें निर्धारित करने के लिए बनाई गई नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन देकर पूछा था कि अभी तक कितनी कंपनियों पर ओवरचार्जिंग के केस हैं. और वे कौन-कौन हैं? कम्पनियों के नामों की सूची उपलब्ध कराएं. इसके जवाब में  यह जानकारी मिली कि सितम्बर 2012 तक एन.पी.पी.ए. ने दवा कंपनियों के खिलाफ 871 बार आर्थिक दंड लगाया है.
इस आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक कुल दंडात्मक राशि 2574 करोड़ 95 लाख 84 हजार है. एन.पी.पी.ए. इस कुल दंड राशि में महज 234 करोड़ 72 लाख 61 हजार रूपये वसूल कर पाया है.
लगभग आठ सौ से ज्यादा कंपनियों पर लगाए गए इस आर्थिक दंड में सबसे ज्यादा दंड देश की सबसे बड़ी दवा कंपनी सिपला (Cipla) पर है, जिस पर 1604 करोड़ 87 लाख 92 हजार का जुर्माना लगाया गया है. लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि देश की सबसे बड़ी दवा कम्पनी होने का दावा करने वाली सिपला (Cipla) अभी तक अपने उपर लगाए गए आर्थिक दंड का एक रूपये भी एनपीपीए को नहीं दिया है. इतना ही नहीं, एनपीपीए द्वारा लगातार चेतावनी दिए जाने के बाबजूद दवाओं की एमआरपी सरकारी मानकों से कई गुणा ज़्यादा तय कर रही है.
इसी तरह रैनबैक्सी (Ranbaxy) पर 127 करोड़ 84 लाख 22 हजार रूपये का जुर्माना (जिसमें से उसने 26 करोड़ 88 लाख 29 हजार रूपये चुकता कर दिया है) और डॉ. रेड्डी लैब (Dr. Reddy Lab) पर 34 करोड़ 10 लाख 45 हजार का जुर्माना (जिसमें वह 11 करोड़ 80 हजार रूपये चुकता कर दिया है) लगाया गया है। 

---अफरोज आलम साहिल ---
साभार : बियॉंडहेडलाइन्स.कॉम 

कोई टिप्पणी नहीं: