रेल बजट में बिहार परियोजना की चर्चा तक नहीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

रेल बजट में बिहार परियोजना की चर्चा तक नहीं


देश के रेलमंत्री पवन बंसल ने वर्ष 2013-14 के लिए रेल बजट संसद में पेश तो कर दिया लेकिन बिहार की उपेक्षा किसी से छिपी नहीं रह पाई। पेश रेल बजट में रेलवे के फाइलों में गुम सी हो चुकी बिहार की पुरानी रेल परियोजनाओं की चर्चा तक नहीं की गई। बिहार को हालांकि पांच एक्सप्रेस रेलगाड़ियों की सौगात अवश्य दी गई है। देश को सर्वाधिक आठ रेल मंत्री देने वाले बिहार को रेल बजट में एक बार फिर से उपेक्षित किया गया है। बिहार के लोगों का आरोप है कि यात्रिओं को सुविधा देने के नाम पर पांच नई एक्सप्रेस रेलगाड़ियां और चार पैसेंजर रेलगाड़ियां जरूर दे दी गईं परंतु पूर्वघोषित रेल परियोजनाओं की कोई चर्चा तक नहीं की गई।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सोमवार को रेल बजट में पुरानी रेल परियोजनाओं को अधिक से अधिक धन देकर उसे पूरा करने की उम्मीद जताई थी। बिहार के लोग खुद को इस बजट से ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि पटना से बंगलुरू, पटना से सासाराम इंटरसिटी एक्सप्रेस और राजेंद्र नगर से न्यू तिनसुकिया एक्सप्रेस जैसी रेलगाड़ियों की घोषणा तो की गई परंतु पटना से दिल्ली तक के लिए कोई नई रेलगाड़ी नहीं दी गई। 

मुख्यमंत्री नीतीश भी कहते हैं कि रेल बजट में नई परियोजनाओं का तो प्रस्ताव अवश्य दिया गया है परंतु पुरानी परियोजनाएं की कोई बात नहीं की गई है। वे कहते हैं कि केंद्र ने एक बार फिर बिहार के साथ सौतेलेपन का व्यवहार किया है। 'बिहार टाइम्स' के संपादक अजय कुमार कहते हैं कि पुरानी परियोजनाओं को पूरा करने से जहां बिहार जैसे पिछड़े राज्य के बेरोजगारों को रोजगार मिलता वहीं विकास के नए दरवाजे भी खुलते। उनका मानना है कि आज के बजट में जो नई परियोजनाओं की घोषणा की गई है वह वर्तमान रेल मंत्री के बदलते ही ठप्प हो जाए तो फिर ऐसी घोषणाओं का क्या लाभ। 

रेलवे विभाग के आंकड़ों के मुताबिक बिहार की 33 परियोजनाएं सरकारी फाइलों में गुम हैं, जिसमें 27 रेल लाइन परियोजनाएं भी शामिल हैं। इनमें 1,938 किलोमीटर रेल लाइन का निर्माण होना था जबकि 499 किलोमीटर की चार परियोजनाएं दोहरीकरण से संबंधित हैं। उल्लेखनीय है कि पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद ने मधेपुरा विद्युत इंजन कारखाने की घोषण की थी। नौ वर्षो के बाद भी कारखाना प्रारंभ होने की बात तो दूर, अभी तक जमीन अधिग्रहण का काम भी पूरा नहीं हो सका है। रेल अधिकारियों के मुताबिक 1,100 एकड़ जमीन की जगह मात्र अब तक 250 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है। जब इस कारखाने की आधारशिला रखी गई थी तब इस कारखाने के निर्माण की लागत 1,000 करोड़ रुपये बताया गया था। 

लालू के रेलमंत्री काल में वर्ष 2006 में छपरा के रेल पहिया संयंत्र को मंजूरी मिली थी परंतु अब तक इस कारखाने से रेल का पहिया नहीं निकल सका है। 31 जुलाई 2010 की समयावधि तक बनकर तैयार हो जाने वाले इस कारखाने में प्रतिवर्ष एक लाख पहिया बनाने का लक्ष्य था। निर्माण कार्य में होने वाली अनुमानित राशि 1,417 करोड़ से बढ़कर 1,600 करोड़ रुपये के करीब पहुंच गई है।

इसी तरह हरनौत रेल कारखाना आज तक सरजमीन पर नहीं उतर सका है तो खगड़िया-कुशेश्वर रेलखंड का निर्माण पिछले 14 वर्षो में 14 किलोमीटर भी नहीं हो सका है। रेल अधिकारियों के मुताबिक 42 किलोमीटर लंबे इस रेल मार्ग में 67 पुल-पुलियों का निर्माण होना है। इस निर्माण कार्य का शिलान्यास तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान ने की थी। इसके अलावा नीतीश कुमार के कार्यकाल में स्वीकृत पटना और मुंगेर में गंगा और भपटियाही में कोसी पर रेल पुल का निर्माण अभी तक नहीं हो सका है। बहरहाल, बिहार के लोगों को एक बार फिर रेल बजट से निराशा हाथ लगी। बिहारवासियों को इस रेल बजट से पुरानी परियोजनाओं के पूरा होने की उम्मीद थी।

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