मानवी व्यवहार और जीवनदर्शन का सबसे बड़ा पहलू यह है कि हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में ढेर सारे लोगों से हमारा संपर्क होता है, परिचय मिलता है। भी-कभी यह मित्राता के धरातल पर स्थापित हो जाता है वहीं कभी कभार प्रेम की सरजमीं पर इन संबंधों के बीज तत्व अंकुरित और पल्लवित होकर अपने विस्तार को पा जाते हैं। कभी ये संबंध वटवृक्ष हो जाते हैं और कभी बौनसाई ही होकर रह जाते हैं। यह सब निर्भर करता है पारस्परिक मानसिकता और मनोवृत्तियों पर। संबंधों में निष्काम होने का बहुत बड़ा प्रभाव रहता है और जहाँ कहीं शुद्ध चित्त से भरे निष्काम संबंध होते हैं वे लम्बे समय तक टिकते हैं। कई संबंधों की उम्र तात्कालिक और नितांत अस्थायी होती है और एक-दूसरे के कामों के लिए अनायास संबंध स्थापित हो जाने के बाद कार्य पूर्णता के साथ ही यह विराम ले लेते हैं, इसके बाद बनी रहती हैं उनकी चिरस्थायी स्मृतियाँ। लेकिन इस प्रकार के संबंधों में कहीं कोई विघटन या ह्रास जैसी स्थितियां सामने नहीं आती। जब फिर कभी मुलाकात होती है चाहे दूरभाष से अथवा प्रत्यक्ष-परोक्ष या और किसी माध्यम से, ये फिर उसी ताजगी और गहनता के साथ महसूस किए जाते हैं।
दूसरे प्रकार के संबंधों में अपना किसी न किसी से अक्सर काम पड़ता रहता है और ऐसे में सायास संबंधों के बन जाने पर इनके स्थायित्व के लिए चिंतित रहने की जरूरत पड़ती है लेकिन वह तब जबकि किसी भी एक पक्ष के भीतर कोई न कोई स्वार्थ हो अथवा स्वार्थ की भूमिका रची जा रही हो। बहुधा हम लोक जीवन में संबंधों को जब परिभाषित करने लगते हैं तब हमारे सामने कई सारे लोगों के चेहरे रील की तरह घूमने लगते हैं। इनमें ढेरों लोग ऐसे होते हैं जिनमें शालीनता और गांभीर्य या विनम्रता का अभाव रहता है और ऐसे में इन लोगों का व्यवहार दूसरों के प्रति जैसा रहता है उस बारे में सब जानते हैं। आम जिन्दगी में ऐसे खूब सारे लोग हैं जिनमें शालीनता कहीं नहीं दिखती बल्कि ऐसे लोग हमेशा अपने क्रूर और असहिष्णु स्वभाव का परिचय देते हुए और लोगों को दुःखी तथा प्रताडि़त करते रहते हैं। ऐसे लोग साठ साला बाड़ों से लेकर सभी प्रकार के प्रतिष्ठानों और धंधों में रमे हुए हैं वहीं उन गलियारों और मार्गों पर भी हैं जो राज पथों और वैभव मार्गो पर जाते हैं। मानवीय व्यवहार के लिए वे लोग ही पात्रा होते हैं जिनमें नैतिक मूल्य और मानवता शेष है। मानवीय मूल्यों का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाना वर्जित है जो अपने आप में गैर मानवीय गतिविधियों में जुटे हुए हैंे अथवा जिनका स्वभाव ही मानवता के विपरीत है।
ऐसे लोगों के बारे में हमें हमेशा यह सोचने को विवश होना पड़ता है कि भगवान ने आखिर ऐसे लोगों को मनुष्य क्यों बनाया होगा? आम तौर पर अच्छे लोगों के साथ अच्छा और बुरे लोगों के साथ उपेक्षा का बर्ताव किया जाना चाहिए, यही मनुष्यता का सबसे बड़ा फर्ज है। अच्छों के साथ बुरा तथा बुरों के साथ अच्छा व्यवहार व्यक्ति, घर-परिवार और समुदाय के साथ ही देश के लिए भी अच्छा नहीं होता। आजकल हमारे अपने इलाकों से लेकर राष्ट्रीय क्षितिज पर जो भी समस्याएं सामने आ रही हैं या हमें दिख रही हैं उनका सर्वोपरि कारण यही है कि हमारे लिए आदर और सम्मान का नज़रिया बदल चुका है। जो धूत्र्त, भ्रष्ट और बेईमान हैं, समाज और देश के लिए जिनकी कोई उपयोगिता नहीं है उन लोगों को हम पूजनीय मान बैठे हैं और जिन लोगों का वाकई समाज और देश के निर्माण तथा उन्नयन में योगदान है उन लोगों की तरफ हम उपेक्षित भाव से जीवन व्यवहार अपना रहे हैं। यह उलटी स्थिति ही हमारी कई समस्याओं के लिए जिम्मेदार है। जहाँ कहीं ऐसे लोग हमारे सम्पर्क में आते हैं जिनका व्यवहार हमारे और दूसरों के प्रति शालीनता भरा नहीं होता है। इस किस्म के लोगों के साथ कभी भी शालीनता का व्यवहार न अपनाएं वरना ऐसे दुराग्रही और कमीनों के ही कारण समाज में दुराव और विषमताएं पैदा होती हैं।
शालीनता का व्यवहार उन्हीं लोगों के साथ होना चाहिए जो लोग स्वयं शालीन हैं। जो लोग अपने जीवन में शालीन नहीं होते वे न तो घर-परिवार में शालीन रह सकते हैं, न कार्यस्थलों पर, और न ही किसी सामाजिक व्यवस्थाओं से जुड़े कर्म में। ऐसे लोगों के चेहरों से भी इनकी यह मौलिकता स्पष्ट झलकती है और इनका चेहरा कालान्तर में कुरूप तथा हिंसक भावों से भरा दिखने लगता है जिसे देख कर ही पता चल जाता है कि इनके भीतर से शालीनता की कल्पना करना व्यर्थ है। शालीनता छोड़ देने वाले लोगों के भीतर से वे कई सारे गुण अपने आप बाहर निकल कर कहीं पलायन कर जाते हैं जिनसे मनुष्यता की पहचान होती है। जो आदमी जितना अधिक गुणी और शिक्षित-दीक्षित होता है वह उतना ही अधिक विनम्र, सदाशयी, सहिष्णु और उदात्त होता है तथा ऐसे लोग जमाने भर के प्रति संवेदनाओं से भरे-पूरे होते हैं फिर चाहे वह जड़ वस्तु ही क्यों न हो। इन लोगों को न मान-अपमान का तनाव होता है और न ही अपेक्षा या उपेक्षा का भाव। ये लोग जहाँ जिस किसी स्थिति में होते हैं वहाँ पूर्णतः संतुष्ट और प्रसन्नचित्त हुआ करते हैं। शालीनता जो लोग छोड़ दिया करते हैं उनके प्रति दया, ममता, स्नेह और करुणा के भावों को पूरी तरह त्याग देना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों के प्रति जितनी सहानुभूति या सहयोगी भावना दर्शायी जाती है उसे ये लोग सामने वालों की कमजोरी या कायरता समझते हैं।
फिर ऐसे लोगों के प्रति करुणा के भाव दिखाने का सीधा सा अर्थ है ऐसे लोगों की मदद करना जो मनुष्यता के ढाँचे में हैं ही नहीं। ऐसे गैर शालीनों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जिससे इन्हें सीधा किया जा सके। ऐसे नालायकों और दुष्टों के लिए अच्छा बर्ताव करना हमेशा आत्मघाती ही होता है। ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने का अर्थ समाज और देश की जड़ों को कमजोर करना ही है। इसलिए समाज और देश को ऐसे निकम्मों और हरामखोरों से बचाये रखने के लिए ऐसे शालीनताहीन लोगों को जहाँ मौका मिले, हतोत्साहित करें और दया या करुणावश छोड़ें नहीं।
---डाॅ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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