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गुरुवार, 14 मार्च 2013

काम के बोझ का रोना न रोयें...


ईमानदारी से काम निपटाएं !!!


आजकल तमाम गलियारों में एक बात सबसे ज्यादा चर्चित है और वह है काम का बोझ। आदमी जब अपने विराट क्तित्व और आदमी में निहित शक्तियों को भुला कर अपनी फ्रेम को जब छोटा मान लेता है और अपने भीतर आत्महीनता जैसी स्थितियों को आमंत्रित कर लेता है तब बहुधा यही स्थिति सामने आती है कि आदमी को अपने सामने आने वाला हर काम बड़ा बोझ लगता है। जो एक बार किसी भी काम को शुरूआती दौर में ही बोझ मान लेता है उसके लिए जीवन के तमाम कार्य बोझ लगने लगते हैं और आदमी हो जाता है बोझिल। किसी भी काम को बोझ मान लेने की मनोवृत्ति से घिरे हुए लोगों की पूरी जिन्दगी ही एक बोझा हो जाती है जिसे जब तक जिन्दा हैं, तब तक किसी न किसी प्रकार से ढोये जाने और समय काटने की विवशता ही बची रहती है। 

कई बार आदमी किसी प्रलोभन या दबाव से ही काम करने में उद्यत होता है और उसी काम को पसंदीदा मानकर करता है। आजकल दो-तीन तरह के लोग हैं। एक वे हैं जो अपनी ड्यूटी या कत्र्तव्यों को ईमानदारी के साथ पूर्ण करते हैं और आत्मसंतुष्टि प्राप्त करते हैं। दूसरी तरह के लोग उनमें शुमार हैं जो किसी न किसी बाहरी दबाव से काम करने को विवश होते हैं और कुढ़ते हुए जैसे-तैसे काम पूरे कर पिण्ड छुड़ाते हैं। इन दोनों ही किस्मों के मुकाबले एक तीसरी किस्म है जिसकी हर कहीं भरमार है। इस किस्म के लोग बिना कुछ लिये-दिये तनिक भी हरकत करने से परहेज करते हैं अथवा यों कहें कि किसी न किसी प्रकार का लोभ या लाभ सामने न दिखे तो इनके पास हजारों बहाने होते हैं, कोई न कोई बहाना ऎसे लोगों के पास हमेशा तैयार रहता है। और जहाँ कुछ जलेबी, शहद या चाशनी-मलाई दिख जाए, ये लोग भागते हुए काम करने दौड़ने लगते हैं। यानि की कुछ मिलने की उम्मीद या गुंजाईश हो तभी ये काम में हाथ डालते हैं। ऎसे लोगों में बहुसंख्य ऎसे हैं जो बहानेबाजी के बादशाह हैं और इनके पास जाने कैसे-कैसे बहानों का अखूट भण्डार हमेशा तैयार रहता है।

खासकर मार्च का महीना ऎसे बहानेबाजों का वार्षिक पर्व ही हो गया है। इस माह में भले इनके पास कोई काम न हो, निठल्ले बैठे रहें, दिन भर गप्पे हाँकते रहें। लेकिन थोड़ा सा काम बताने पर सौ बातें सुना देेंगे। मार्च के नाम पर काम का खूब सारा बोझ होने की रट लगाये रहते हैं पूरे मार्च भर। मार्च का हौव्वा इन पर इतना हावी रहता है कि कोई सा काम हो, मार्च का बहाना ऎसा कि कोई क्या कहे। सामने वालों केे पास सिवाय चुपचाप सुनने और ऎसे लोगों के निकम्मेपन पर आँसू बहाने के और कोई चारा नहीं रहता। आजकल हर गलियारों और बाड़ों में मार्च का मार्च नज़र आ रहा है। हर कोई ‘मार्च है, मार्च है’ की रट लगा रहा है। कई गलियारे ऎसे हैं जिनमें सहयोग के लिए बाहर से लगाये गए लोग काम कर रहे हैं और मूल जिम्मेदार लोग कामचोरी करते हुए मजे मार रहे हैं। आदमी को अपने निर्धारित कामों के बारे में मानसिकता इस प्रकार बनानी चाहिए कि उसे कोई सा काम कभी बोझ न लगे। इसके लिए यह जरूरी है कि सिर्फ और सिर्फ अपने लिए निर्धारित कार्यों में ही रुचि लें, इसके अलावा के कामों से दूर रहें तथा ये काम औरों को स्वतंत्रतापूर्वक करने दें।

आजकल आदमी की मनःस्थिति कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा कामों में हाथ डालकर कुछ न कुछ प्राप्ति करना ही रह गया है और वस्तुतः यही उसके दुःख का मूल कारण है। आदमी अपेक्षा से मुक्त होकर केवल अपने ही कामों से संबंध रखे तो उसके लिए कोई काम बोझ नहीं हो सकता। जो लोग हमेशा काम का बोझ होने या काम के बोझ से दबे रहने की मानसिकता से त्रस्त हैं उनका पूरा जीवन अनावश्यक तनावों और भ्रमों से जकड़ा होता है और ऎसे लोग ताजिन्दगी इस समस्या से ऊबर नहीं पाते हैंं। अपने कामों को सुस्पष्ट ढंग से मर्यादा रेखाओं में बांधें और हमेशा सहज तथा आनंद से भरे रहें। कामों को बोझ न समझें। यह हम पर है कि काम को किस प्रकार निपटाना है। किसी भी काम को सामने आने पर बोझ न मानें तथा यह प्रयास करें कि कम से कम शक्ति और समय में इसे कैसे पूर्ण किया जा सकता है और वह भी पूरी गुणवत्ता के साथ। खूब सारे लोग ऎसे हैं जो हर काम को अपने आप विराट तथा व्यापक मान लेते हैं और फिर उलझते चले जाते हैं। आदमी के लिए कोई काम असंभव नहीं है इस बात को अच्छी तरह समझना होगा। हालात ये हो जाते हैं कि अच्छे-अच्छे दक्ष लोग भी काम सामने आने पर बोझ मान लेते हैं। इसलिए उनके कामों की शुरूआत भी विलंब से होती है और पूर्णता के लिए भी ये काफी समय लेते हैं।

किसी भी प्रकार के काम को बड़ा न मानें तथा इसकी शुरूआत करने में देरी नहीं करें। जिस काम को जितना देर से आरंभ किया जाता है उतना वह अधिक भारी लगने लगता है। काम को बड़ा न मानकर समय पर आरंभ कर देने मात्र से हमारे मस्तिष्क का बोझ और काम के भारी होने का संशय अपने आप नष्ट हो जाता है। काम के बोझ का रोना वे लोग रोते हैं जिनकी नीयत ठीक नहीं होती है वरना जिन लोगों के जीवन में ईमानदारी और कार्य के प्रति समर्पण होता है उनके लिए कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता। हर अच्छा काम उनके लिए करणीय होता है। एक बार काम को बोझ होने की मानसिकता यदि घर कर जाए तो ऎसे लोगों के लिए अपना घर-परिवार और गृहस्थी भी बोझ लगने लगती है। इसलिए जो काम हमें सौंपा जाता है उसे पूरी ईमानदारी और अच्छी नीयत के साथ देखें तो अपने आप काम पूरे होते चले जाएंगे। काम के बोझ का रोना कभी नहीं रोयें वरना जिन्दगी भर के लिए मुस्कान खो देंगे।



---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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