यह गिद्धनी गांव का दुर्भाग्य ही है कि पंचायत के मुखिया और अन्य गण प्रतिनिधि भी वोट की राजनीति करने नहीं आये। कारण कि इनकी पहचान भारतीय नागरिकता के तौर पर किसी तरह के प्रमाण-पत्र नहीं है। इस ओर सामाजिक कार्यकर्ता भी पीछे ही रह गये। जो मुंडा आदिवासियों की समस्याओं को मुद्धा के तौर पर उभार नहीं सके। जब वाटर एड इंडिया ने प्रगति ग्रामीण विकास समिति को कार्य करने के लिए मार्च 2012 में सहयोग देना षुरू किया। तब जाकर कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं का प्रवेष गुरपा आदिवासी क्षेत्र में हो सका।
आजादी के 65 साल के बाद मुंडा आदिवासियों के 300 बच्चों को पहली बार पोलियो की खुराक पिलायी गयी। यह इस लिये संभव हो सका कि एक गैर सरकारी संस्था प्रगति गा्रमीण विकास समिति के कार्यकर्ता षत्रुध्न कुमार ने अपने प्रयास से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र,फतेहपुर के चिकित्सा प्रभारी अषोक कुमार से मिलकर बच्चों को पोलियो उन्मुलन अभियान से जोड़ने का आग्रह किये। उनका प्रयास रंग दिखाया और 20 जनवरी 2013 को स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम जाकर बच्चों को पोलियो की खुराक दिये। खैर, अब सरकारी नौकरषाहों का कर्तव्य बनता है कि देर आये दुरूस्त आये कहावत को पूर्ण करे। यहां पर नियमित ढंग से स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाये। फिर भी कल्याणकारी सरकार और स्वास्थ्य विभाग के ऊपर सवाल खड़ा करना लाजिमी है। आखिर क्यों गोरों को खदेरने के बाद लोकतंत्र की सरकार सोती रही और अपने नागरिकों से अनजान होती रही। माना कि गुरपा जंगल में नक्सलियों और माओवादियों का वर्चस्व है फिर क्यों उन लोगों को उनके सहारे छोड़ दिया गया है जबकि आदिवासियों का उन लोगों से दूर-दूर का संबंध नहीं है। भोले-भाले आदिवासी खुद ही अपनी तकदीर और तस्वीर संवारने पर लगे हैं।
गया जिले के फतेहपुर प्रखंड के कठौतिया केवाल पंचायत के गिद्धनी गांव में 9 आदिवासी टोला है। जहां पर 990 परिवार रहते हैं। झारखंड और बिहार राज्य के सीमा पर गरीब मंुडा आदिवासियों ने गुरपासीनी पहाड़ की तलहट्टी में प्रसारित घनघोर जंगल में ठौर जमा रखे हैं। आदिवासी गुरपासीनी जंगल को ही अपना जीवन-मरण का स्त्रोत बना रखा है। आदिवासियों ने प्राकृतिक प्रदत जल,जंगल,जमीन के साथ गहरा संबंध बना लिये हैं। एक व्यक्ति ने अपने कद के अनुसार 300 एकड़ वनभूमि पर हक जता लिय हैं। इस तरह यहां पर कुल आदिवासियों ने मिलकर ढाई लाख एकड़ वनभूमि पर कब्जा कर लिये हैं। अपने श्रम बूते आदिवासियों ने पहाड़ी मिट्टी को जोतखोड़ कर आबाद करने पर उतारू हैं। पुरूश और महिलाएं मिलकर खेती करते हैं। खेत में मक्का,टमाटर, सब्जी आदि ऊपजाने लगे हैं। ऊपजे आहारों को स्चयं इस्तेमाल करते हैं। अधिक होने पर ही बाजार की ओर रूख करते हैं।
सूबे में कई सरकार आयी और चली गयी। मगर किसी ने गुरपा जंगल में रहने वाले आदिवासियों की सुधि नहीं ली। नतीजा सामने है कि आज भी मुंडा आदिवासियों को किसी तरह की भारतीय नागरिक होने का अधिकारिक प्रमाण पत्र नहीं है। ऐसा लगता है कि सरकार ने राश्ट्रपिता महात्मा गांधी के तीन बंदरों की तरह व्यवहार कर रही है। सरकार की ओर आंख बंद होने से उन्हें किसी तरह प्रमाण-पत्र निर्गत नहीं किया गया है। अभी तक किसी के पास जाति प्रमाण-पत्र,आय प्रमाण-पत्र,परिचय -पत्र आदि नहीं है। इसके कारण सरकारी योजनाओं से महरूम हैं। 15 दिसंबर 2005 से आगे से ही वनभूमि पर रहने वालों को वनाधिकार 2005 के अधिकार से वंचित कर रखा गया है। इंदिरा आवास योजना से मकान नहीं बन पा रहा है। आंगनबाड़ी और स्कूल भी नहीं है।
अभी वाटर एड इंडिया के द्वारा प्रगति ग्रामीण विकास समिति को सहायता दी गयी है। सहायता पाने के बाद गया जिले के फतेहपुर प्रखंड के पांच पंचायतों में षुद्ध पेयजल और पानी संग्रह आदि करने पर कार्य किया जा रहा है। फतेहपुर,पहाड़पुर,निम्मी,मतासो और कठौतिया केवाल है। कठौतिया केवाल पंचायत के गिद्धनी गांव के आदिवासी टोला में गृहणी आदिवासी टोला कमेटी बनायी है। इसके अध्यक्ष सिरका मरांडी हैं। इनका कहना है कि वाटर एड के प्रोजेक्ट मैनेजर बृजेन्द्र कुमार गत साल के मई माह में आये थे। आदिवासी टोला का सर्वे किये। सर्वे के बाद बैठक कर गृहणी आदिवासी टोला कमेटी बनाये। मुझे ही इसके अध्यक्ष का भार सौंप दिये। इस जंगल में रहने वालों के पास किसी तरह की भारतीय नागरिकता प्रमाण-पत्र नहीं है। अपने कूल देवता सरना और सिंगबोंगा से निवेदन करते हैं कि हम आदिवासियों की माली हालत में सुधार करें और राश्ट्र के मुख्यधारा में जोड़ दें। हम लोगों में काफी संख्या में षाकाहारी हैं। जो विपति आने पर मौथा घास भी खाने को विवष होते हैं। इधर आसपास के दिकूओं ने वन विभाग के नौकरषाहों से मिलकर धनाधन पेड़ काटने पर अमादा होे गये थे। परम्परागत अस्त्र-षस्त्र तीर-धनुश के बल पर भी अंधाधुन पेड़ की कटाई करने वालों को रोकने का प्रयास किया गया। जो असफल रहा। इसके बाद जंगल में आने वाली गाड़ी के पथ को ही श्रमदान करके 10 किलोमीटर गाड़ी दौड़ने लायक सड़क निर्माण कर पाये। इसके बावजूद भी सरकार और उनके नौकरषाह गुरपा जंगल की ओर नहीं आ सके। श्री मंराडी ने कहा कि गत वर्श दिसंबर माह में हम लोगों की सुधि लेने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनूसूचित जनताति आयोग के उपाध्यक्ष ललित भगत जंगल में आये थे। खूब स्वागत किया गया और मालार्पण किया गया ताकि हम लोगों की समस्याओं का समाधान कर सके। अन्य नेताओं की तरह ही सजातीय अध्यक्ष ने किसी तरह की कार्रवाई फिलवक्त नहीं कर पाये हैं। अब देखना है कि कितने देर के बाद सबेर हो पाता है।
वाटर एड इंडिया के प्रोजेक्ट मैनेजर बृजेन्द्र कुमार ने कहा कि नेता आये और चले गये। इसके बाद हम लोगों ने प्रजातंत्र के चतुर्थ स्तंभ को जंगल में आने का न्योता दिये। पत्रकार आये और खबर लेकर चले गये। नौकरषाहों में कुछ खलबली बची। फिर मौनधारण कर षांत हो गये। इस बीच आदिवासियों को नागरिकता दिलवाने और अंधेर नगरी में रोषनी फैलाने के उद्धेष्य से फतेहपुर प्रखंड में जाकर आवेदन दिया गया। तीन माह के बाद भी किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गयी। आदिवासी टोला में चापाकल लगाने का आग्रह भी किया गया। लेकिन नहीं लगा। वाटर एड इंडिया ने कठौतिया केवाल पंचायत के कुछ पंचायतों के चापाकल का पानी का जांच करवाया। इसमें पीएचईडी के पीएच डिविजन,गया में पानी का जांच किया गया है जो पीने योग्य नहीं है कहकर प्रमाण-पत्र पेष किया है। मगर सरकार को कटघरे में लाने के बदले यह कहकर गला फंसने से बचा दिया कि यह जल नमुना का संग्रह शत्रुधन कुुमार के द्वारा स्वयं किया गया है। अतः जल शुद्धता की गारन्टी संग्रहकर्ता के ऊपर निर्भर करता है।
प्रोजेक्ट मैनेजर बृजेन्द्र कुमार ने कहा कि 6 चापाकल का पानी का संग्रह करके डिसटिक्ट लेवल वाटर क्वालिटी टेस्टिंग लाबोरेट्री में भेजा गया था। इसमें आदिवासी टोला का भी पानी है। यहां के लोग गुरपासीनी पहाड़ के उतरते पानी को एक गड्डा में जमा करने के उपरांत उसी पानी को पीने को बाध्य आदिवासी होते हैं। उसका पानी भी टेस्ट के लिए भेजा गया। इस तरह 7 जगहों का पानी टेस्ट कराया गया। गरीबी की दासता झेलने वाले अनुसूचित जनजाति समुदाय को 20 जनवरी 2013 को पहली बार 300 बच्चों को पोलियों की खुराक पिलाने के लिए स्वास्थ्यकर्मी आये। 24 फरवरी को दूसरी बार पोलियों की खुराक पिलाने नहीं आये। पोलियों उन्मुलन अभियान पांच दिनों तक चलता है। स्वास्थ्यकर्मी की राह अभिभावक और बच्चे देखते रह गये।
बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति और यूनिसेफ के संयुक्त पहल पर प्रत्येक माह जोरशोर से पोलियों उन्मूलन अभियान चलाया जाता है। कोई मइया रूठे नहीं और कोई बच्चा छूटे नहीं की तर्ज पर कार्य अभियान चलाया जाता है। शहर में एक मां के द्वारा भी पोलियों पीलाने में दिलचस्पी नहीं लेती हैं तो स्वास्थ्यकर्मी इसकी सूचना सिविल सर्जन स्तर के अधिकारियों तक कर दी जाती है। उसके बाद पोलियों पिलाने से इंकार करने वाली मां को समझाने और बुझाने के लिए चिकित्सकों के दल इंकार करने वाली मां के घर आ टपकते हैं ताकि बच्चे को के मुंह में पोलियों के दो बूंद टपका सके। इसे इंकार तुड़वाना कहा जाता है।
जी हां, यहीं शहर और गांव के बीच में अन्तर है। शहर में आसानी से आवाजाही कर सकते हैं। मगर गांव में नहीं हो सकता है। गांव में मुश्किल हालात का हवाला देकर नौकरशाह साफ बच निकलते हैं। इसी तरह से आजादी के 65 साल के बाद भी गया जिले के फतेहपुर प्रखंड में स्थित कठौतिया केवाल गा्रम पंचायत के अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ हो रहा है। झारखंड और बिहार की सीमा पर अवस्थित अलखोडहा आदिवासी गिद्धनी गांव के 9 टोले में रहने वाले भारतीय नागरिकता से वंचित हैं। शुद्ध पेयजल नहीं मिल रहा है। हक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। और तो और एक दबंग जाति के द्वारा जंगल में रहने वाले लोगों को बाहरी लोगों की हवा न लगे। इसका ख्याल रखा जाता है।
वाटर एड इंडिया के सहयोग से गैर सरकारी संस्था प्रगति ग्रामीण विकास समिति के द्वारा फतेहपुर प्रखंड के पांच पंचायतों में कार्य किया जाता है। समिमि के प्रोजेक्ट मैंनेजर वृजेन्द्र कुमार का कहना है कि यहां के आदिवासी लोग गुरपा जंगल से होकर गुरपासीनी पहाड़ से गिरने वाले पानी को गड्डा में एकत्र करते हैं। उसी पानी को पीते हैं। इसमें फ्लोराइड की मात्रा 5.45 है। इसके आलोक में फतेहपुर प्रखंड में जन सुनवाई की गयी थी। इस दौरान 250 लोगों ने अपनी समस्याओं का आवेदन प्रखंड विकास पदाधिकारी धर्मवीर कुमार को सौंपा था। समस्याओं में मुख्य तौर पर निर्मल भारत अभियान के तहत शौचालय निर्माण करवाने, शुद्ध पेयजल की व्यवस्था, राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन, इंदिरा आवास योजना के तहत बढ़ी राशि 75 हजार रू0 से मकान निर्माण,महात्मा गांधी नरेगा में सुनिश्चित रोजगार उपलब्ध कराने आदि के आवेदन थे। श्री कुमार ने कहा कि बीडीओ धर्मवीर कुमार ने तत्काल आदिवासी क्षेत्र में पांच चापाकल लगाने का आदेश निर्गत किया। वहीं 100 आदिवासियों को वोटर आई कार्ड निर्गत करने की प्रक्रिया प्रगति में है।
इस बीच हक एवं अधिकार के एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन कर आदिवासियों को जागरूक बनाने का प्रयास किया गया। इसका आयोजन प्रगति ग्रामीण विकास समिति ने किया । इसमें सहयोग वाटर एड एण्ड चैरिटी वाटर ने प्रदान किया। इस अवसर पर प्रगति ग्रामीण विकास समिति के सचिव प्रदीप प्रियदर्शी, शत्रुध्न कुमार,वृजेन्द्र आदि उपस्थित थे। इन लोगों ने नवनियुक्त जिलाधिकारी बालामुरगम डी से आग्रह किये हैं कि व्यक्तिगत रूचि लेकर आदिवासियों को विकास के शिखर पर पहुंचाने का कष्ट करें।
---अलोक कुमार---
पटना
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