जीवन को सुन्दर बनाना चाहें तो... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


सोमवार, 18 मार्च 2013

जीवन को सुन्दर बनाना चाहें तो...


सन सेट की बजाय सन राईज देखें !!!   


आजकल दुनिया के लोगों को अजीब सी बीमारी घेरने लगी है। आधी से ऊपर आबादी की दिनचर्या का पहिया उल्टा घूमने लगा है। पहले जहाँ जल्दी सोने और जल्दी उठने की परंपरा बरकरार थी वहीं अब देर से सोने और देर से जगने की ऎसी लत पड़ गई है कि उसने आदमी, परिवार और कुटुम्ब से लेकर पूरे समाज को बरबादी की डगर दे दी है। आधी से ऊपर आबादी को पता ही नहीं है कि सूरज कब उगता है या उगते हुए सूरज की छवि कैसी होती है। एक जमाना था जब उगते हुए सूरज के दर्शन और अघ्र्य चढ़ाने की परंपरा हर प्रभात में पूर्ण यौवन पर होती थी और उसी अनुपात में जनजीवन में प्रकाश और ऊर्जाओं का भरपूर समावेश होता था। अंधकार से लोगों की स्वाभाविक दूरी हुआ करती थी। आज सब कुछ उलटा-पुलटा हो चला है। अंधेरा पसंद लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है और यही कारण है कि हम रोशनी से दूर भाग रहे हैं, सूरज से हमारी दूरी बढ़ती जा रही है और भोर के उजालों की बजाय हमें रात के अंधेरे रास आने लगे हैं। जिन रातों को निद्रा के लिए होना चाहिए था वे काम-काज की रातें हो गई हैं तथा जिस भोर को हमारे जागरण की वेला होना चाहिए वह निद्रा से भरी-पूरी रहने लगी है। हालात बिल्कुल विपरीत होते जा रहे हैं। हमारे जीवन में वे विटामिन, ऊर्जाएं और दिव्य शक्तियां दूर होती जा रही हैं जो सूरज से मिलती हैं। इसकी बजाय रातों के अंधेरों की नकारात्मकता का माहौल पसरता जा रहा है।

ऎसे में आदमी  की पूरी जिन्दगी ही अंधेरों से जुड़े कारकों से प्रभावित होती जा रही है और यही कारण है कि व्यक्तिगत जीवन से लेकर सामाजिक जीवन तक में अंधेरों का प्रभुत्व और अधिक बढ़ता तथा व्यापक होता जा रहा है। लोगों की जिन्दगी और अधिक विषमताओं से घिरने लगी है और इस वजह से मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों तथा बेवजह के तनावों का दौर भी बढ़ता जा रहा है। ऎसे में इन सभी बातोें का सीधा और बुरा प्रभाव हमारी निजी जिन्दगी से लेकर सामुदायिक जीवन तक पर पड़ रहा है। यही कारण है कि आजकल जन जीवन पर चौतरफा प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और हमारी नई पीढ़ी तक भी इससे प्रभावित है। संस्कारहीनता के दौर ने हमारी सारी दिनचर्या को बिगाड़ कर रख दिया है तथा इसका खामियाजा यह हो रहा है कि हमारी नई पीढ़ी ऊर्जा हीन होती जा रही है और इससे समाज और राष्ट्र की जड़ें कमजोर होती जा रही हैं। यह शाश्वत सत्य है कि जो व्यक्ति या समुदाय प्रकृति से जितना दूर जाएगा उतना ही दुःखी होगा तथा उसकी समस्याएं बढ़ती चली जाएंगी।  आजकल देश-दुनिया में सन सेट देखने का शौक परवान पर है। इसके लिए विभिन्न शहरों और क्षेत्रों में ढलते हुए सूरज को देखने के लिए विशिष्ट स्थल बने हुए हैं। इन सन सेट प्वाइंटों पर लोगों की भीड़ लगातार बढ़ती ही जा रही है और लोगों को ढलते हुए सूरज को देखने जितना आनंद आता है उतना किसी में नहीं।

जो लोग सन सेट देखकर आनंद लेने के आदी होते हैं उनकी जिन्दगी को हसीन बनाने की तमन्ना हो तो इन्हें सन राईज देखने की दिलचस्पी पैदा करनी होगी और ऎसा होने पर ही जीवन का असली आनंद मिल सकता है। उगते हुए सूरज को देखना अपने आप में ऊर्जाओं के महा भण्डार का सान्निध्य पाने जैसा है। प्रभात की भरपूर ऊर्जाओं वाली बयारों और परिवेश से झरता है अमृत, जो हवाओं से लेकर परिवेश तक में ऎसी ताजगी भर देता है जिसका आनंद वे ही जान सकते हैं जो भोर में जागरण की परंपरा को अपना लिया करते हैं। उदित होते सूर्य की एक झलक पाना ही दिन भर की कई समस्याओं  से हमें मुक्त रखने को काफी है। जिन लोगों को अपना पूरा जीवन सुनहरा बनाने की तमन्ना हो उन्हें चाहिए कि वे सूर्योदय का नज़ारा देखने की आदत डालें और अपने जीवन में रोशनी का आवाहन करें। जीवनचर्या के ग्लोब को थोड़ा पुरानी दिशा में घुमायें और दिनचर्या में बदलाव लाने की कोशिश करें तो सब कुछ संभव है। सन सेट की बजाय सन राईज की दिशा में कदम बढ़ाये बगैर हमारे तन-मन और जीवन का आनंद प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए यह तय करें कि जीवन को सुन्दर बनाना हो तो उगते सूरज का आवाहन करने में रुचि लें और सन राईज से आनंद पाएं। सन राईज की एक झलक ही हर किसी के जीवन को आनंद से सराबोर करने को काफी है।




---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं: