क्वालिटी बनाम क्वांटिटी ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 19 मार्च 2013

क्वालिटी बनाम क्वांटिटी !


  • - भले ही इन संस्थानों में क्वालिटी एजूकेषन हो या न हो लेकिन हर गली मोहल्ले में कोचिंग संस्थान के बैनर व बोर्ड टंगे जरुर दिख जाते हैं
  • - कारोबार से जुड़े ऐसे लोग पहले घर घर जाकर ट्यूषन पढ़ाते हैं और अपनी पहचान बनाते हैं। तगड़ा नेटवर्क बनने के बाद कारोबारी ट्यूषन सेंटर में क्लास लगाते हैें


: मैनेजमेंट का एक फंडा है...जो दिखता है वही बिकता है। मतलब साफ है यदि आपको भी प्रतिस्पद्र्धा के रेस में टिके रहना है तो एडवरटाइजमेंट यानी प्रचार प्रसार जरुरी हैै। जाहिर सी बात है यह फंडा व्यवसाय का रुप ले चुके षिक्षा जगत पर भी लागू होता है और सूबे के अमूमन हरेक जिलों के साथ साथ कोसी क्षेत्र में भी आपाधापी का दौर तेज हो चुका है। भले ही इन संस्थानों में क्वालिटी एजूकेषन मसलन फैकल्टी मेंबर हो या न हो, लेकिन हर गली मोहल्ले में कोचिंग संस्थान के बैनर व बोर्ड टंगे जरुर दिख जाते हैं। कारोबार से जुड़े ऐसे लोग पहले घर घर जाकर ट्यूषन पढ़ाते हैं और अपनी पहचान बनाते हैं। तगड़ा नेटवर्क बनने के बाद कारोबारी ट्यूषन सेंटर में क्लास लगाते हैें। आल इंडिया काउंसिल फाॅर टेक्निकल एजूकेषन यानी एआईसीटीई का भी मानना है कि क्वालिटी के बजाए क्वांटिटी का नकारात्मक असर अब देखने को मिल रहा है। आंकड़े गवाह हैं कि 2011-12 में 146 नए बिजनेस स्कूल तो षुरु हुए, लेकिन क्वालिटी के अभाव में 124 संस्थान बंद हो गए। वर्श 2012 में 101 मैनेजमेंट कालेज बंद हो चुके हैं और 82 नए कालेज खुले हैं। उधर, सूबे की राजधानी में भी कमोबेष यही स्थिति है। 5,500 कोचिंग संस्थानों का सालाना टर्नओवर एक हजार करोड़ रुपए का है। इन कोचिंग संस्थानों में करीब साढ़े तीन लाख बैंकिंग, रेलवे, कर्मचारी चयन आयोग समेत अन्य परीक्षाओं के छात्र हैं। जबकि डेढ़ लाख मेडिकल व इंजीनियरिंग के छात्र कोचिंग क्लास ले रहे हैं। 60,000 हैं प्रषासनिक और मैनेजमेंट परीक्षा के छात्र। तो, यह है पटना के कोचिंग संस्थानों का तगड़ा नेटवर्क। इसी कड़ी में हम आपको बताते हैं कि गत वर्श फरवरी 2010 को कोचिंग संस्थानों की मनमानी के खिलाफ पटना में छात्रों का गुस्सा फूटा था। यह गुस्सा कोई अचानक पैदा नहीं हुआ था बल्कि सालों से पनप रहा था। ज्यादातर कोचिंग संस्थानों में छात्रों को सवाल पूछने की इजाजत नहीं मिलती है। पढ़ाने वालों ने जो भी पढ़ाया उसे बच्चे समझे या न समझे इससे कोचिंग क्लास चलाने वालों को कोई मतलब नहीं है। कोचिंग संस्थान की मनमानी के मद्देनजर मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा नई नीति बनाने की घोशणा कर दी गई, लेकिन नीति को सही तरीके से धरातल पर उतारा नहीं जा सका है। तभी तो बड़े शहरों की तर्ज पर अब कोसी क्षेत्र के सहरसा, सुपौल व मधेपुरा में छोटे बड़े कोचिंग संस्थान खुल चुके हैं। कुछेक को छोड़ दे ंतो बाकी संस्थान न तो रजिस्टर्ड हैं और न ही किसी नियमों की पालना ही करते हैं। सुबह हो या फिर षाम बच्चों की लंबी कतार इन कोचिंग संस्थानों में दिखने लगती है जबकि स्कूल कालेजों में इनकी संख्या आमतौर पर नदारद ही रहती है। इस बाबत षिक्षा पदाधिकारियों की लापरवाही भी उभरकर सामने अक्सर आती है। कार्रवाई के नाम पर महज आनन फानन का दौर ही जारी है। लिहाजा, मनमानी जारी है और जेब पर ऐसी षैक्षणिक व्यवस्था भारी पड़ रही है। 



कुमार गौरव, 
सहरसा

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