स्कूली बच्चों की पीठ पर लदा भारी स्कूल बैग उन्हें स्थायी या अस्थायी रूप से कूबड़ा बना सकता है। सोशल डेवलपमेंट फाउंडेषन (एसडीएफ) के तहत किये गये एसोचैम सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में पांच से 12 वर्ष के आयु वर्ग के 82 प्रतिशत से अधिक बच्चे अपनी पीठ पर ‘‘अत्यधिक भारी’’ बैग ढोते हैं जिसके कारण बच्चों में कमर दर्द जैसी समस्यायें पैदा हो रही है। रीढ़ चिकित्सा विषेशज्ञों का कहना है कि लगातार बहुत अधिक भारी बस्ते ढोने से उनमें अस्थायी अथवा स्थायी कूबड़पन भी पैदा हो सकता है। एसोसिएटेड चैम्बर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) की ओर से किये गये सवेक्षण के अनुसार दस साल से कम उम्र के करीब 58 प्रतिशत बच्चे हल्के कमर दर्द के शिकार है जो बाद में गंभीर दर्द एवं कूबड़पन का कारण बन सकता है।
कूबड़पन की चिकित्सा के विषेशज्ञ डा. शिशिर कुमार के अनुसार पूरी आबादी में करीब 4 प्रतिशत लोग इससे पीडि़त होते हैं। प्रति दो हजार बच्चों में एक बच्चे कुबड़पन का शिकार होते हैं। लड़कियों में कुबड़पन दस गुना अधिक होता है। यहां स्थित आरएलकेसी हास्प्ीटल एंड मेट्रो हार्ट इंस्टीच्यूट के अस्थि शल्य चिकित्सक डा. शिशिर कुमार के अनुसार अगर समय रहते इसका उपचार न कराया जाए तो यह शरीर में विकलांगता पैदा कर सकती है। रीढ़ की हड्डी में किसी असामान्यता के चलते या रीढ़ की हड्डी के दुर्घटना का शिकार हो जाने पर भी स्कोलियोसिस हो सकती है। कभी-कभी श्रोणि प्रदेश के झुक जाने के कारण एक पैर छोटा, एक पैर बड़ा हो जाता है। नतीजतन रीढ़ भी झुक जाती है। विशेष किस्म के आर्थोपैडिक जूतों के उपयोग करने से भी इससे बचा जा सकता है। यही नहीं, अगर रीढ़ का झुकाव लगातार होता रहे तो आर्थोपैडिक सर्जन से परामर्श करके शल्य क्रिया भी कराई जा सकती है।
डा. शिशिर कुमार के अनुसार कूबड़पन के ज्यादातर कारण वैसे तो जन्मजात हेाते हैं लेकिन लगातार अधिक वनज उठाने, गलत तरीके से बैठने आदि कारणों से भी कूबड़पन की समस्या हो सकती है। यह विकृति महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है। जिन लोगों के 10 डिग्री से ज्यादा टेढ़ापन होता है, उन्हें स्कोलियोसिस कहते हैं।
एसोचैम सर्वेक्षण से पता चलता है कि हमारे देष में करीब 82 प्रतिषत बच्चे अपनी पीठ पर अपने पूरे वजन का 35 प्रतिषत हिस्सा लेकर चलते हैं। एसोचैम स्वास्थ्य समिति के चैयरमैन डा. बी के राव के अनुसार पीठ पर अत्यधिक वनज या असामान्य वनज से पीठ की समस्या या रीढ़ में विकृति हो सकती है। अत्यधिक वनज के कारण रीढ़ पर पड़ने वाले दवाब के कारण ‘‘मस्कुलो-स्केलेटल प्रणाली’’ के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
दिल्ली, लखनउ, जयपुर, देहरादून, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूर, मुंबई, हैदराबाद, पुणे, और अहमदाबाद सहित दस बड़े षहरों में किये गये इस सर्वेक्षण से पता चला कि जिन दो हजार स्कूली बच्चों के बीच यह सर्वेक्षण किया गया उनमें से 12 साल से कम उम्र के करीब 1500 बच्चे किसी सहारे के बगैर ठीक से बैठ पाने में भी असमर्थ हैं और ये हड्डी से संबंधी समस्याओं से ग्रस्त हैं तथा 40 प्रतिषत षारीरिक तौर पर निश्क्रिय हैं।
डा. शिशिर कुमार के अनुसार लड़कों की तुलना में लड़कियों में पीठ दर्द की समस्या अधिक व्यापक है। कूबड़पन के मामले में गंभीर बात यह है कि ज्यादातर मामलों में इसका पता 25 से 30 वर्ष की उम्र में लगता है। सुबह उठते ही आपकी रीढ़ की हड्डी में कम से कम दो घंटे यदि अकडन रहती है, तो यह कूबड़पन के संकेत हैं और अगर 50 से 60 फीसदी तक कूबड़पन हो जाए तो उसका उपचार सिर्फ ऑपरेशन ही है।
---प्रियंका प्रियम---

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