नोवार्टिस कैंसर की दवाई का पेटैंट मामले में हारी. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 3 अप्रैल 2013

नोवार्टिस कैंसर की दवाई का पेटैंट मामले में हारी.



पिछले लंबे समय से ब्लड कैंसर की दवाई का पेटैंट करवाने के लिए लड़ाई लड़ रही विदेशी कंपनी नोवार्टिस आखिरकार यह लड़ाई हार गई जिससे देश के करीब 28 लाख ब्लड कैंसर के मरीजों को लाभ मिलेगा। यदि नोवार्टिस पेटैंट की इस लड़ाई में जीत हासिल कर लेती तो यह देश के कैंसर मरीजों पर पहाड़ टूटने से कम न होता। ब्लड कैंसर की दवाई बनाने वाली यह कंपनी इस दवाई को करीब 1 लाख 20 हजार रुपए में एक मरीज को बेचती और कंपनी इसे अगले 2 दशकों तक कोर्ट के माध्यम से पेटैंट के दायरे में लाना चाहती थी।


लंबे समय तक चली इस लड़ाई में आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनते हुए इस दवाई को पेटैंट करने के अधिकार के दावे को खारिज कर लगभग 28 लाख कैंसर रोगियों व उनके अभिभावकों के चेहरों पर मुस्कान लाने का काम किया है। यह फैसला ही इन रोगियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसके अतिरिक्त कई और विदेशी कंपनियां भी ऐसी हैं जो अपनी दवाई को पेटैंट करने के लिए लड़ाई लड़ रही है। 

उन कंपनियों के लिए भी यह फैसला किसी झटके से कम नहीं है। न्यायालय के इस फैसले से चाहे नोवार्टिस को झटका लगा हो लेकिन विदेशी कंपनियों के लिए यह राहत की बात है। अब ब्लड कैंसर की इस दवाई को दूसरी कंपनियां भी बनाकर बेच सकेंगी और वह भी नोवार्टिस की अपेक्षा बेहद कम दामों में। जहां नोवार्टिस कंपनी की ब्लड कैंसर की दवाई ग्लीवैक 1 लाख 20 हजार रुपए में महीने के लिए मिलती, वहीं देसी कंपनियों की यही दवाई करीब 8 हजार रुपए में मरीजों को उपलब्ध है।

यदि देशभर के कैंसर मरीजों की बात की जाए तो देश में मरीजों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है और आंकड़ों के अनुसार देश में इस समय करीब 28 लाख मरीज ब्लड कैंसर से जूझ रहे है। यदि यमुनानगर जिले की बात की जाए तो मिली जानकारी के अनुसार यहां भी ब्लड कैंसर के मरीजों की संख्या लगभग 200 है। जिले के इन मरीजों को नोवार्टिस कंपनी के हारने से 1 लाख 20 हजार की दवाई केवल 8 हजार में उपलब्ध रहेगी। 

जानकारों का कहना है कि कैंसर के मरीजों के संख्या देश के बदलते लाइफ स्टाइल के चलते बढ़ती जा रही है। आने वाले समय में भी इस बीमारी पर अंकुश लगता दिखाई नहीं देता बल्कि इसके बढऩे की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। पंजाब के लंबी क्षेत्र में तो कोई घर ही शायद ऐसा बचा हो जहां कैंसर के मरीज न हों। इसी प्रकार कई अन्य क्षेत्र भी ऐसे है जहां कैंसर के मरीजों की संख्या बदलते लाइफ स्टाइल के साथ बढ़ती जा रही है। बदलते खानपान व आराम देय जीवन तथा दिनभर का तनाव भी इसका मुख्य कारण है। जानकारों का कहना है कि कैंसर जैसे रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है लेकिन इसके लिए सावधानियों की व लाइफ स्टाइल बदलने की आवश्यकता है।

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