देहरादून, 1 अप्रैल। सचिवालय के सामान्य प्रशासन की मेहरबानी से उत्तराख्ंाड के सूचना आयुक्तों को गनर के लालबत्ती तक का निर्णय लेना पड़ा है । सूचना आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण पद पर स्थापित न्यायमूर्तियों के निर्णयों से कई बार असहजता होती है । इसका प्रत्यक्ष उदारण सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा का वह निर्णय है । जिसके तहत उन्होने स्वाथ्य विभाग के एनएचआरएम घोटाले के तहत लोगों को दण्डित करने का प्रावधान किया था। जिसके चलते श्री शर्मा को कई बार धमकियां भी मिल चुकी है ।यह स्थिति लगभग अन्य सूचना आयुक्तों की भी है । जिनके निर्णय से अधिकारी या अन्य लोग नाराज हो सकते है । नाराजगी का परिणाम कई न कई हाथापाई या गाली गलौच भी हो सकता है पर ऐसे पदों पर स्थापित गनर हटा लिया जाना और माननीय सूचना आयुक्तों द्वारा स्वयं लालबत्ती हटा देना किसी गंभीर घटना की ओर इशारा करता है । जिसकी जवाब देही से सरकार भी नही बच सकती हैं। 12 मार्च से लालबत्ती हटा कर चल रहे सुरक्षा विहीन सूचना आयुक्त किसी भी असुविधा का शिकार हो सकते है। इसकी न तो सरकार को चिंता है न ही राजभवन को । सूचना आयुक्तों को चाहिए की अपनी ओर से ही सही सुरक्षा तथा लालबत्ती दोनों का उपयोग जरूर करें।
इसी संदर्भ में 12 मार्च को एक बैठक हुई थी। जिसमें मुख्य सूचना आयुक्त नृप सिंह नपलच्याल, सूचना आयुक्त विनोद नौटियाल, अनिल कुमार शर्मा, प्रभात डबराल आदि उपस्थित थे। इसी बैठक में यह निर्णय लिया गया कि तत्काल प्रभाव से मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वाहनों पर लाल बत्ती का प्रयोग नही किया जाएगा । इस निर्णय के पीछे सामान्य प्रशासन विभाग की हठधर्मिता है। जहां कांग्रेस-भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों के विधायकों और नेताओं को गनर दिए गए है, वही सूचना आयुक्तों के गनर हटा दिए गए हैं । सूचना आयुक्त पद मुख्य सचिव स्तर का पद है। इसक बावजूद उनके गनर वापस ले लिए गये है। इसे सामान्य प्रशासन विभाग की अज्ञानता ही कहेगें कि सामान्य प्रशासन विभाग को सूचना आयुक्त पद का स्तर ही नही पता है। भूपेन्द कुमार सूचना के अधिकार में सामान्य प्रशासन से मुख्य सूचना आयुक्त का स्तर पूछा तो सामान्य प्रशासन ने उन्हें मुख्य सचिव स्तर का बता दिया। मुख्य सूचना आयुक्त का स्तर केन्द्रीय चुनाव आयुक्त अथवा सचिव के स्तर का होता । सामान्य प्रशासन विभाग लम्बें अर्से से सूचना आयोग को कमजोर करने और उसकी गरिमा गिराने का काम कर रहा है । गनर हटाना भी इन्ही में से एक हैं।
वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त नृप सिंह नपलच्याल प्रदेश के मुख्य सचिव है जबकि विनोद नौटियाल उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता होने के साथ बद्री केदार समिति के अध्यक्ष रहे हैं । दूसरे आयुक्त अनिल कुमार शर्मा वरिष्ठतम अधिवक्ताओ में है। तृतीय आयुक्त प्रभात डबराल वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ-साथ सूचना आयुक्त हैं। अनिल शर्मा को स्वास्थ्य विभाग के एनएचआरएम घोटाले को पर्दापाश करने के कारण कई धमकिया मिल चुकी हैं । इसके बाद भी इनका गनर हटा दिया गया।
सूचना आयुक्तों ने विधानसभा के दौरान जो दरियादिली दिखाई थी। वह सरकार को बचाने के लिए काफी थी। यदि सूचना आयुक्तों ने एक भी बयान दिया होता तो सरकार विधानसभा में गिर जाती। अब तक इस मामले में सरकार अथवा महामहिम राज्यपाल की ओर से ऐसी कोई पहल नही हुई जिसके तहत सूचना आयुक्तों से ये बातचीत की जाए । गौरतलब हो कि मुख्य आयुक्त का पद केन्दीय चुनाव आयुक्त एवं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश के समकक्ष है एवं राज्य सूचना आयुक्त का पद मुख्य सचिव का पद मा. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर माना गया है। लेकिन राज्य सरकार के द्वारा उनसे गनर वापिस लेने का निर्णय लेकर उच्चस्थ पदों का गरिमा गिराई गई हैं । सूत्रों की मानें तो शीघ्र ही सूचना आयुक्तों की एक बैठक में कोई और महत्वपूर्ण निर्णय लिया जा सकता है।
(राजेन्द्र जोशी)

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