स्थानीय लोगों का कहना है कि उत्तराखण्ड वक्फ बोर्ड दून दरगाह के एक निरीक्षक द्वारा कमेटी वालों से मिलकर कई तरह के घपले व बोर्ड के निरक्षक द्वारा जो तकरीबन पंाच साल से ज्यादा एक ही जगह पर तैनात है और वक्फ की जायदादों में पार्टी से मिलकर बराबर वक्फ बोर्ड की प्रोपर्टी में लाखों करोड़ों की हेरा-फेरी करवा रहा है को हटाकर नए निरीक्षक की तैनाती की जाएग। ताकी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति को बचाया जा सके और भविष्य में इस तरह की घपलेबाजी न हो सके।
देहरादून, 1 अप्रैल। यूं तो राजधानी दून में अतिक्रमण हमेशा से ही चलता रहता है, वहीं इस अतिक्रमण से मंदिर से लेकर मस्जिद भी अछूते नहीं है। इसका एक उदाहरण राजधानी दून की जामा मस्जिद धामावाला व इससे सटा मुसाफिर खाना (धर्मशाला) है, जो कि मुस्लिम वक्फ बोर्ड की करोड़ों की जायदाद है, जिस पर नाजायज कब्जे किए जा रहे हैं, जबकि यह प्रोपर्टी दान में दी गई। इन वक्फ बोर्ड की संम्पत्तियों पर वक्फ बोर्ड के अधिकारियों की मिलीभगत से वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियों को खुर्द-बुर्द भी किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। 12 कमरों व बड़े हॉफ वाले मुसाफिर खाने (धर्मशाला) जो कि बिल्कुल मेन बाजार में है और जिसकी कीमत आज करोड़ों रूपये में है, ये जगह मस्जिद और मुसाफिर खाने की स्वामित्व से है। इस मुसाफिर खाने में सभी मुसाफिरों के लिए सारा फ्री रहने का प्रावधान है, लेकिन कमेटी द्वारा यहां पर मुसाफिरों से मनमाने पैसे वसूल किए जाते हैं, जबकि मुसाफिर खाने में व्यवस्थाएं चौपट हैं तो साफ-सफाई का भी कोई विशेष प्रबंध नहीं है। वहीं दिन प्रतिदिन इस मुसाफिर खाने की कीमत आसमान छू रही है और तमाम लोगों का नाजायज उस पर कब्जा बढ़ता जा रहा है। वहीं क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि अगर इन पुरानी बोशिदा ईमारतों को गिराकर इसकी जगह पर मार्केट या मॉल बना दिया जाए तो, इससे जहां मस्जिद को लाखों रूपये की आमदनी होगी, वहीं मुसाफिर खाने को भी फायदा पहुंचेगा। मगर वर्तमान कमेटी की इस तरफ कोई रूची नहीं है, इस कमेटी में कुछ राजनैतिक लोग घुसकर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने में लगे हैं, ये लोग वक्फ की जायदाद से अपना निजी स्वार्थ साध रहे हैं और इसका नाजायज इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं इस प्रोपर्टी पर कानूनन या शहरी कानून के मुताबिक किसी का हक नहीं बनता है। यहां यह बात भी देखने में आई है कि जो लोग वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति में किराएदार हैं उनको भी कार्यकारिणी में रखा गया है। वहीं अगर किसी के बाप या दादा ने ये जगह मस्जिद को दान कर दी, तो अब उनके परिवार में किसी का भी उस जमीन पर कोई अधिकार नहीं रहता है, लेकिन ऐसे लोग भी वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियों पर अपना अधिकार जमाने हुए उसके खुर्द-बुर्द में लगे हैं। वहीं स्थानीय बुजुर्गाें का कहना है कि हकीकत में वक्फ र्बो की प्रोपर्टी की पूरी जिम्मेदारी जनता की बनती है। कोई भी नागरिक इससे बरी नहीं है। इसलिए सरकार को चाहिए कि इसकी तमाम जायदाद को नाजायज लोगों के कब्जे के हाथों से वापस लेकर एक नई कमेटी गठित कर इसकी जिम्मेदारी उस कमेटी को सौंपी जाए ताकि वह मस्जिद व मुसाफिर खाने की प्रोपर्टी की हिफाजत पूरी ईमानदारी से कर सके। वहीं बुजुर्गाें का कहना है कि क्योंकि ये सम्पत्ति ईश्वर की अमानत है, इसलिए इसकी हिफाजत हम सबका फर्ज बनता है।
(राजेन्द्र जोशी)

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