इंसानियत के बगैर जीने का कोई अर्थ नहीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 10 अप्रैल 2013

इंसानियत के बगैर जीने का कोई अर्थ नहीं


यश, प्रतिष्ठा और लोकप्रियता का ग्राफ सीधा जुड़ा होता है मानवीय मूल्यों से। जिन लोगों के भीतर मानवीय संवेदनाएं, आदर्श और लोक कल्याण तथा क्षेत्रीय उत्थान की मौलिक और सहज स्वाभाविक प्रवृत्तियों का समावेश होता है वस्तुतः उन्हीं लोगों की कीर्ति ज्यादा प्रभावी, टिकाऊ और कालजयी होती है और ऎसे व्यक्तित्वों को युगों तक याद किया जाता है।

पीढ़ियां याद रखें, ऎसे काम करें

यश और प्रतिष्ठा किसी कद या पद की मोहताज नहीं होती बल्कि व्यक्तित्व की विलक्षणताएं और औरों के लिए जीने तथा देश के लिए मर मिटने की भावनाओं का ही परिणाम है कि उन लोगों को पीढ़ियाँ याद करती हैं जो लोग समाज और देश के लिए कुछ कर गुजरने का माद्दा रखते हैं। किसी भी आदमी के व्यक्तित्व की ऊँचाइयों का मूल्यांकन करना हो तो उसके पद और विरासती प्रभावों या परंपरागत मोहपाश से ऊपर उठकर सोचना चाहिए तभी किसी भी व्यक्ति का स्वस्थ मूल्यांकन हो सकता है।

मानवीय धरातल देता है मजबूत नींव

ऎसे लोगों के लिए उनके अपने पद खूब बौने होते हैं जिनका व्यक्तित्व मानवीय संवेदनाओं और मनुष्य के लक्ष्यों से भरा होता है क्योंकि जो लोग मानवीय धरातल पर जीते हुए काम करते हैं, अपने आस-पास और क्षेत्र के लोगों के प्रति गहन संवेदनाएं रखते हैं, आदर्शों भरे कर्मयोग के साथ जीते हैं उन्हीं को दुनिया हृदय से स्वीकारती है, बाकी लोगों को सिर्फ स्वार्थों और ऎषणाओं अथवा भय-प्रलोभन से ही स्वीकारा जाता है, भीतर से कभी नहीं। अपने आस-पास से लेकर दूर-दूर तक के लोगों के बारे में जन-मन की थाह पायी जाए तो साफ पता चलेगा कि उन लोगों के प्रति किसी में राई भर भी श्रद्धा और विश्वास नहीं होता जिनमें मानवीय संवेदनाओं का अभाव रहता है, आम लोगों के प्रति जिनके मन में आदर और सम्मान नहीं होता, स्वाभिमान की बजाय समझौतों और स्वार्थ की मनोवृत्ति होती है, भ्रष्ट, बेईमान, व्यभिचारी और कुटिल मानसिकता तथा नकारात्मक भावों के होते हैं, शोषक की भूमिका में नज़र आते हैं और हमेशा अपने लोभ-लालच तथा लाभ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

आडम्बर ही है बिना श्रद्धा के मिलने वाला सम्मान

ऎसे लोगाें के प्रति जो भी श्रद्धा और आदर व्यक्त किया जाता है वह सब कुछ दिखावटी और ऊपर से होता है और इसमें न गंध होती है न भावना का कोई अंश। कुछ लोग अपने भविष्य को सुरक्षित बनाए रखने के लिए ऎसा करते हैं, कुछ इसलिए कि उनका कभी कोई काम पड़ जाए तो रूके नहीं। और बहुत सारे लोग भय और आशंकाओं तथा आत्महीनता की वजह से श्रद्धा और आदर का स्वाँग रचने को मजबूर होते हैं।
खूब सारे ऎसे हैं जिनको पता है कि ऎसे श्रद्धेयों और लोकप्रियों को सिर्फ मालिश करने वाले, जयगान करने वाले और परिक्रमा करने वाले ही जिन्दगी की पहली पसंद होते हैं।

भ्रम में न जीएं, यथार्थ जानने दड़बों से बाहर निकलें

दोनों पक्षों के लोग भ्रम में जीने के आदी हैं इसलिए एक दूसरे को भ्रमित करते हुए आगे बढ़ना या साथ-साथ चलना सभी की मजबूरी है और यह मजबूरी अपने लक्ष्य संधान या स्वार्थ सिद्धि तक के लिए ही अनुबंधित होती है उसके बाद संबंधों का राम नाम सत्य हो जाता है अथवा संबंधों को एक-दूसरे की शर्तों पर निर्वाह करने का बोझ सामने आ जाता है। जिन लोगों को बड़े या महान होने का भ्रम हो उन्हें अपने परंपरागत दड़बों से थोड़ा बाहर निकल कर उन लोगों की बातों को सुनना चाहिए जिन्हें आम आदमी कहा जाता है।

आम आदमी की आवाज को सुनें

लेकिन आम आदमी की आवाज को सुनना अन्तर आत्मा की आवाज सुनने की ही तरह है। इसके लिए चापलुसों, अपने होने का मोह पाले ठेकेदारों, इंतजामियों, पहरेदारों और उन लोगों के घेरों से बाहर निकलना होगा जिनके लिए हम उनके बंधक होने से ज्यादा कुछ हैसियत नहीं रखते। आज हम सच को सुन पाने या अपने बारे में जान पाने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि हम भी अपने स्वार्थों और स्तुतिगान से व्योम गुंजा देने वाले लोगों की चिकनी चुपड़ी और कुटिलताओं भरी बातों में जमाने की हवाओं को भूल चुके हैं और नज़रबंदियों जैसी स्थिति में रहने को ही अपनी लोकप्रियता का किलेबंदी मान चुके हैं। यह भ्रम और असत्य का माहौल धीरे-धीरे ताण्डव का रूप धारण कर लेता है और अन्ततोगत्वा जमाने की हवाओं से बेखबर रहते हुए वे दिन आ ही जाते हैं जब हम औंधे मुँह धरातल पर गिर पड़ते हैं।

जीवन बेकार है मानवता के बगैर

जिन लोगों में मानवीय मूल्यों और आदर्शों का अभाव रहता है उनका न कोई भविष्य होता है न भूत, और न ही वर्तमान। आदमी होकर भी ऎसे लोग यंत्रों की तरह जीवनयापन करते हैं। हमारे आस-पास खूब सारे बड़े-बड़े लोग हैं जो शो केस में रखने लायक ही होकर रह गए हैं। अपने पद और मद में बेभान हो चुके ऎसे लोगों को आज कौन पूछ रहा है? लोग उन्हीं को याद करते हैं जो समाज के लिए कुछ करते हैं। अपने लिए जीने वालों को तो अपने लोग भी भुला देते हैं।

कर्मयोग को लोकोन्मुखी बनाएँ

जीवन में यदि ऊँचाइयां पाने की तमन्ना हो तो कर्मयोग और व्यक्तित्व ऎसा होना चाहिए कि इसके लिए पदों और प्रतिष्ठा की बैसाखियों पर अपने जीवन व्यवहार के आदर्श भारी होने चाहिएं तभी हमें प्राप्त होने वाली कीर्ति स्थायी, असली और कालजयी बनी रह सकती है। लेकिन इन सभी के लिए जरूरी है मानवता का अवलंबन। जो लोग अच्छे कार्य करते हैं उन्हें समाज कभी भुला नहीं पाता। हो सकता है हम अपने ही कहे जाने वाले भ्रष्ट, कुटिल, चापलुस और मूर्खों से कुछ समय के लिए प्रताड़ित या परेशान रहें मगर आने वाला समय सुनहरे भविष्य की आहट सुनाने लगता है।





---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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