आजकल आदमियों के बारे में बहुत कुछ बदलाव की बयार देखने को मिल रही है। आदमी को आदमी होना चाहिए लेकिन आदमी आदमी होने के सिवा सब कुछ होता जा रहा है। ईश्वर ने आदमी को अपने ही स्वरूप और शक्तियों के अंश के साथ भेजा हुआ है लेकिन आदमी अपने सामथ्र्य, वजूद और लक्ष्यों से भटक कर उन हरकतों, हलचलों में जुटा हुआ है जिन्हें आदमीयत की परिधियों में नहीं देखा जाता। शक्ल और सूरत से आदमी लगने वाले लोग भी उन गतिविधियों में जुटे हुए हैं जो आदमी के स्वाभिमान और वजूद को बनाए रखने में न सहायक हैं, न उत्प्रेरक। बल्कि आदमी के आदमी होने के सवाल पर भी ये हरकतें कहुत बड़ा प्रश्न चिह्न लगाने लगती हैं। जो लोग खुद के बूते न अस्मिता की रक्षा कर सकते हैं, न जीवन में तरक्की और यश-प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं, जिनमें न कोई हुनर हैं, न संस्कार और न ही कोई प्रतिभा, इस किस्म के लोग इंसानियत को गिरवी रखकर उन गोरखधंधों में लगे हुए हैं जो इंसान के नाम पर शर्मनाक कलंक है और इससे आदमी का आभामण्डल और प्रभाव कमजोर हुआ है।
बहुत से लोग हम ऎसे देखते हैं जो अपने आप में कुछ नहीं हैं लेकिन किसी के इर्द-गिर्द इस तरह छाये रहने लगे हैं कि इन्हें उनका आदमी कहा जाता है। किसी भी दुकानदारी और तमाम प्रकार के सम सामयिक धंधों में बड़े कहे जाने वाले लोगों के आस-पास ऎसे लोगों की खूब भीड़ आजकल छायी रहने लगी है जिन्हें औरों का आदमी कहा जाता है। आजकल ऎसे लोगों की जबर्दस्त भीड़ है जो इंसानियत को शर्मसार करने लगी है। अपने भविष्य को सुरक्षित बनाए रखने, उल्टे-सीधे ध्ांधों को संरक्षण देने, अच्छे-बुरे सभी प्रकार के स्वार्थों को पूरा करने, कम समय में ज्यादा से ज्यादा माल बनाने और सात पुश्तों तक के लिए पूरा इंतजाम करने के लक्ष्यों को लेकर जो लोग हाथ-पांव मार रहे हैं उनमें कुछ पुरुषार्थियों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर लोग औरों के आदमी कहे जाते हैं। इन लोगों को भी इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें किसका आदमी कहा जा रहा है। बल्कि ऎसे लोग इसी में गर्व और गौरव का अहसास करते हैं कि उन्हें कम से कम किसी का आदमी तो बताया जा रहा है।
यही उनके जीवन की सबसे बड़ी कामना होती है और औरों का आदमी होने का यह भाव ही है जो उन्हें जीने का अहसास देता है। खुद के बूते कुछ नहीं कर पाने वाले सारे के सारे लोग ऎसे हैं जिन्हें अपनी जिन्दगी की गाड़ी को चलाने के लिए औरों का आदमी होना पड़ता है। ऎसा वे न करें तो उनकी अज्ञानता और प्रतिभाशून्यता की पोल खुल जाने का भयंकर डर हमेशा सताता रहता है और इसलिए उनके जीवन का सर्वोपरि ध्येय यही रहता है कि किसी न किसी आदमी के आभामण्डल में अपने आपको बनाए रखें ताकि उनका भविष्य सुरक्षित रहने का अहसास हमेशा बना रहे। ऎसे असुरक्षित और प्रतिभाहीन लोगों को हमेशा किसी न किसी ऎसे आश्रय की आवश्यकता बनी रहती है ताकि वे सुरक्षित माँद में दुबके रहते हुए अपनी कारगुजारियों को अंजाम देते रहें और वे सारे काम करते रहें जिनसे उन्हें कुछ न कुछ प्राप्ति होती रहे। जो लोग असल में अपने आदमी होने पर गर्व तथा गौरव भाव रखना चाहते हैं उन्हें चाहिए कि औरों की चापलुसी, परिक्रमाएं और मिथ्या जयगान करने की बजाय सत्य और ईमान का पक्ष लेते हुए ऎसे काम करें कि जिनसे आदमी के भीतर की गंध बनी रहे और अमिट पहचान कायम बनी रह सके।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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