जो लोग लम्बी आयु, यशस्वी और कीर्तिमान जिन्दगी चाहते हैं, हर क्षण ताजगी और उत्साह चाहते हैं उनके लिए यह जरूरी है कि वे किसी एक स्थान या सीट अथवा क्षेत्र और एक ही तरह के काम-काज के दायरों से बंधे न रहें बल्कि जीवन में अपने हुनर और पदोन्नतियों के हिसाब से काम-काज और स्थान में बदलाव लाते रहें। काम-काज या स्थान अथवा पद में से एक का तो बदलना नितान्त जरूरी है वरना एक ही प्रकार के काम-काज से बंधे रहने के कारण उबाऊपन या बोरियत आ जाती है और जीवन में भारीपन तथा आलस्य की वजह से कई सारी मानसिक एवं शारीरिक बीमारियां घर कर लेती हैंं। जो लोग बिना किसी कैद या नज़रबंद होने के किसी एक सीट, दफ्तर या प्रतिष्ठान अथवा स्थान पर जमे रहते हैं उनकी स्थिति और कैदियों की स्थिति में ज्यादा फर्क नहीं होता। कैदी किसी और के बंधनों की वजह से एक स्थान पर रहने को विवश हैं जबकि दूसरी किस्म के लोग सीट या स्थान के मोह में अपने आपको एक जगह बाँधे हुए हैं।
कई लोगों के सामने विवशताएं होती हैं लेकिन खूब सारे लोग ऎसे होते हैं जो एक स्थान या सीट पर कुण्डली मारकर बैठ जाते हैं फिर उन्हें दूसरी सीट या जगह अच्छी लगती ही नहीं। यह मनुष्य की विराट और उदात्त सोच के अधःपतन की पराकाष्ठा है कि वह विराट विश्व और उन्मुक्त आकाश को छोड़ कर एक ही स्थल को संसार मान बैठ कर रमे रहना चाहता है। मनुष्य के जीवन में हमेशा ताजगी का बना रहना जरूरी होता है और यह ताजगी ही है तो इंसान को हमेशा तरोताजा रखते हुए मन-मस्तिष्क और स्वास्थ्य को बेहतर रखती है, दिमाग को ठण्डा रखती है और नवीन तथा सकारात्मक विचारों से भरपूर रखा करती है। जीवन में जहां ताजगी है वहां प्रसन्नता और मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम स्तर का रहता है। इस ताजगी के लिए व्यक्ति की सोच, रोजाना के काम-काज, स्थान व परिवेश आदि का समय-समय पर परिवर्तन होते रहना जरूरी होता है और ऎसा होने पर ही आदमी प्रफुल्लित रह सकता है तथा उसकी आयु व स्वास्थ्य लंबे समय तक टिके हुए रह सकते हैं। एक ही जगह जमे रहकर एक ही प्रकार के काम-काज में रमने वाले आदमी के जीवन से ताजगी गायब हो जाती है और उसका स्थान ले लेती हैं जड़ता, अंधकार और आत्मकेन्दि्रत कार्यशैली। पानी भी एक ही जगह ठहर जाता है तो उसमें सडांध आ ही जाती है।
तभी कहा गया है - बहता पानी और रमता जोगी। इसी सिद्धांत को जो लोग अपना लेते हैं वे ही अपनी व्यापक और वैश्विक छवि का निर्माण कर सकने में समर्थ हो पाते हैं। इसलिए जीवन में श्रेष्ठता, उत्तरोत्तर बहुआयामी तरक्की, ताजगी, प्रसन्नता और आनंद के साथ ही आत्मसंतोष चाहें तो परिवर्तन को सहजतापूर्वक स्वीकारें और उनके अनुरूप अपने व्यवहार, कर्मयोग, कार्यशैली तथा आचरणों में बदलाव लाएं ताकि जीवन में हमेशा नित नूतनता बनी रहे और मनुष्य के रूप में हमारा जीवन निरन्तर मौज-मस्ती के साथ सफलता को सोपानों को तय करता हुआ आगे बढ़ता ही रहे और व्यक्तित्व की कीर्तिपताका फहरती रहे। जो लोग पद, प्रतिष्ठा, स्थानीयता, संबंधों, सीट विशेष या स्थान विशेष के मोह में बंधे रहते हैं उनके लिए कई समस्याएं अपने आप पैदा हो जाती हैं जिनका असर उनके मन-मस्तिष्क और शरीर पर पड़े बिना नहीं रह सकता। इस परिवर्तन के लिए ही व्यक्ति के जीवन, परिवार, समुदाय और क्षेत्र में आए दिन तीज-त्योहार, पर्व-उत्सव और मेले-ठेले, शुभाशुभ कर्म आदि होते हैं वहीं रोजमर्रा की सामान्य जिन्दगी में काम-धंधों या नौकरियों में पदोन्नतियाें का भी प्रावधान है।
ये सब भी परिवर्तन देकर आदमी को हमेशा ऊर्जित और उत्साही बनाने के लिए हुआ करते हैं। लेकिन खूब सारे लोग ऎसे होते हैं जो स्थान और सीट का मोह त्याग नहीं पाते, अपने क्षेत्र को छोड़ना उनके लिए भारी पड़ता है। ऎसे सामान्य जीवन जीने वाले लोग भले ही किन्हीं असामान्य और विलक्षण सेवाओं या काम-धंधों में हों, इनकी जिन्दगी का त्रासदायी पक्ष यही होता है कि ये बरसों से एक ही तरह के कामों को कर-करके बोर हो जाते हैं और इनका मन-मस्तिष्क और शरीर एक ही तरह के कामों और विचारों का ऎसा अभ्यस्त हो जाता है जैसे कोई नशा ही हो। यह यथास्थितिवादी एवं मोहांध मानसिकता ऎसे लोगों में मानसिक और शारीरिक विकारों को जन्म देती है और इसका सीधा असर ये होता है कि व्यक्ति में बेवजह तनाव व चिड़चिड़ापन पैदा हो जाता है, शरीर की ज्ञानेन्दि्रयां और कर्मेन्दि्रयां थक जाती हैं और ऎसे लोग हृदय रोग, मधुमेह, स्नायु दौर्बल्य, मनोरोगों, स्मृति लोप तथा ब्लडप्रेशर आदि विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं और अधिकांश मामलों में ऎसे लोगों की मृत्यु भी समय से पहले ही हो जाया करती है।
इस मानसिकता के खूब लोग हमारे आस-पास हैं जो एक ही स्थान पर जमे हुए हैं और कई तो ऎसे हैं जिन्होंने स्थान विशेष या सीट विशेष का मोह नहीं छोड़ते हुए पदोन्नतियां त्याग दी हैं अथवा अपने ही क्षेत्रों में पुरानी जगहों पर नए पदों के नाम से पुराना काम-काज ही करने को विवश हैं। ऎसे लोगों को उत्साही, इन्द्रधनुषी और सुख-समृद्धिदायी जीवन की अपेक्षाओं को त्याग देना चाहिए। पैसा ऎसे लोगों के पास जरूर हो सकता है लेकिन समय आने पर यह किसी काम नहीं आता क्योंकि तब इनका समय भी इन्हीं की तरह ठहर कर बगावत पर उतर जाता है। इसलिए लम्बी आयु, बेहतर सेहत और यशस्वी जीवन चाहें तो हर परिवर्तन को सहजता से स्वीकार कर नए-नए कामों के साथ ताजगी का अनुभव करें। अन्यथा ऎसे लोगों की संख्या खूब है जो सीट, पद या स्थान विशेष के मोह में अंधे बने रहे और अन्ततः बेवक्त ऊपर चले गए।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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