हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में व्यवस्था दी है कि मंदिरों के चढ़ावे श्रद्धालुओं की बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के लिए होते हैं न कि मंदिर के अधिकारियों के वाहन खरीने के लिए। अदालत ने राज्य के ऊना जिले में स्थित मशहूर हिंदू शक्ति पीठ चिंतपूर्णी मंदिर के कर्ताधर्ताओं को मंदिर के कोष से खरीदे गए वाहन का इस्तेमाल करने से मना कर दिया है। मंदिर के अधिकारी सुभाष चंद ने अदालत को सूचित किया कि मंदिर के कोष से पांच वाहन खरीदे गए। उन्होंने कहा कि एक वाहन उनके पास है जबकि अन्य उपायुक्त के पास हैं। उपायुक्त ही मंदिर के आयुक्त भी हैं।
न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने 25 जून को दिए गए अपने आदेश में कहा, "मंदिर का कोष मंदिर में बेहतर सुविधा मुहैया कराने के लिए होता है।" उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं न्यासी धर्मदाय अधिनियम 1984 के तहत अधिकारी श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए चढ़ावे के न्यासी हैं। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि कोष का इस्तेमाल बेहतर सुविधा मुहैया कराने और मंदिर के रखरखाव के लिए होता है। मंदिर के कोष को दूसरे काम में नहीं इस्तेमाल किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि मंदिर और उसके मामले को सरकार के कार्यालय की तरह नहीं चलाया जा सकता। पिछले वर्ष नवंबर में उच्च न्यायालय ने सरकार को बाबा बालकनाथ मंदिर न्यास के कोष का उपयोग विज्ञापन के लिए करने पर रोक लगा दी थी।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें