भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) मुद्दाविहीन, जात-पात और सांप्रदायिकता पर आधारित राजनीति के दुर्ग को तोड़कर मुद्दों व कार्यक्रमों पर आधारित राजनीति को आगे बढ़ाना चाहती है। पार्टी दरअसल, खुद को लोकतांत्रिक विकल्प बनाना चाहती है। वामपंथी दल एक जुलाई को दिल्ली के मावलंकर हाल में एक संयुक्त अधिवेशन आयोजित करने जा रहे हैं। इस अधिवेशन को वामदलों के शीर्षस्थ नेता संबोधित करेंगे।
भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं राज्य सचिव डॉ.गिरीश ने बताया, "अधिवेशन में वामदल एक जन कार्यक्रम पेश करेंगे। यह कार्यक्रम आर्थिक नव उदारवाद की उन नीतियों का विकल्प होगा जिनके चलते विकासदर घटकर 5 के अंक के नीचे पहुंच गई है।" उन्होंने कहा कि डॉलर के मुकाबले रुपया 60 के ऊपर पहुंच चुका है, रोजगारों में भारी कटौती हुई है, महंगाई ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं, गरीबी और अमीरी के बीच खाई लगातार चौड़ी हो रही है और भ्रष्टाचार सारी सीमाएं लांघ चुका है। जनता के हित में बने इस कार्यक्रम को लेकर आंदोलन खड़े किए जाएंगे और आंदोलनों में अधिक से अधिक जनवादी शक्तियों को भागीदार बनाने का प्रयास किया जाएगा।
डॉ.गिरीश ने कहा, "लोकसभा चुनाव ज्यों-ज्यों निकट आ रहे हैं पूंजीवादी दलों में नए-नए मोर्चे खड़े करने की आतुरता दिखाई दे रही है। लेकिन पूर्व में ऐसे सभी मोर्चे इसलिए विफल हो गए क्योंकि वे नीतियों तथा कार्यक्रमों पर आधारित न होकर कांग्रेस और भाजपा के विरोध के नाम पर बने थे।" भाकपा और वामदल ऐसे किसी नीतिविहीन जमावड़े के पक्ष में नहीं हैं। भाकपा वामपंथी लोकतांत्रिक विकल्प बनाना चाहती है और उसकी स्पष्ट राय है कि यह विकल्प जनमुद्दों पर छोटे-बड़े तमाम संघर्षो के आधार पर ही विकसित होगा। उन्होंने कहा कि 'दिल्ली कन्वेंशन' इस दिशा में एक ठोस पहल साबित होगा।

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