लिव इन रिलेशनशिप कितना सफल है ??? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 30 जून 2013

लिव इन रिलेशनशिप कितना सफल है ???

लिव इन की सार्थकता पर हम जब विचार करते है , तब हमारे मस्तिष्क में अजीव से सवाल उठने लगते हैं ,,,
क्या लिव इन पश्चात संस्कृति का स्वरुप है , या स्वेछाचारिता का दूसरा रूप ,, यह हमारी भारतीय संस्कृति तो नहीं हो सकती ,, विदेश से आयात किया गया कोई नया फार्मूला है , जो दुर्भाग्य से भारत में आ गया है ,, वक्त बदला , रिश्ते बदले , रिश्तेदार बदले ,,, नारी के बेस्ट हाफ यानी ५०-५ ० के अधिकार को उनकी स्वतंत्रता और समानता के अधिकार के तहत उनका जन्मसिद्ध अधिकार है ,, जिसे हमें उन्हें सहजता से प्रदान करना न्यायोचित है ,,,

नारी कोई पुरुषों की जागीर नहीं है ,,,
बदलते हुए भारत की तस्वीर यही है ,,,,
तस्वीर का आशय न समझिये इसको ,,
संवेदनाओं से निकली हुई तस्वीर यही है ,,,/////
युवा अवस्था झंझावत तूफानों की तरह होती है,,
जब डूबती है किश्ती ,,,
माझीं न साथ देती है ,,,
नारी श्रद्धा विश्वास की प्रतिमूर्ति होती है ,,
माँ , बहन ,बेटी , पत्नी आदि का स्वरुप होती है ,,
भावनाओं के जज्वातों जब रिश्ते बनते हैं ,
कुछ ही मीठे ,, ज्यादातर खट्टे होते हैं ,,,,
हे नारी , तू नर पर भारी ,

बदलते हुए वक्त में नारी भी आधुनिकीकरण से आँख -मिचोली करते हुए अनुबंधित विवाह प्रणाली को तिलांजलि देकर स्वच्छ ,और आत्मनिर्भर समाज की स्थापना के लिए आतुर सी प्रतीत हो रही है ,,उनकी नजरों में पुरुष वर्चस्व उनकी मार्ग का अवरोधक है , , आज बहुत सी जागरूक लड़कियां शादी अभिशाप अनुबंध समझती है ,, उनकी नजर में शादी दासता से कम नहीं ,,, उसी विकल्प का दूसरा रूप है ,, लिव इन रीलेशन ,,, जो दोनों पक्षों की इच्क्षाओं का अहम् रूप है ,,, यह शादी नहीं बल्कि एक समझौता है ,, सहमति पर आधारित ऐसे रिश्ते ,, लम्बे समय तक जीवित नहीं रह सकते ,,, युवा अवस्था की दह्लील पर ही ऐसे रिश्ते ,-=, रिश्ते रहते है ,बाद में जिन्दगी भर रिसते रहते हैं ,,, जिस प्रकार सूर्य की प्रातः कालीन किरणे हमें शक्ति औरस्फूर्ति प्रदान करती है ,, दोपहर में वही किरणें ताप से व्यथित कर देतीं हैं ,,, शाम के ढालन पर उन्हीं किरणें के ताप क्षीण हो जाते है ,,, ठीक उसी प्रकार लिव इन, की पश्चात व्यवस्था की पंखुडियां वक्त के वेग को बदल नहीं सकतीं ,, उनकी जिन्दगी जिन्दगी का अवसाद बन जाती है ,,,

तलाशो इक मंजिल , जो मंजिल ही नजर आये ,,,
खुदा से कर तू आरजू ,, मझधार न आये ,,,,,
मझधार में न जाने कितनी किश्ती समायी है,
किश्तीयों से पूछों ,,, माझी न काम आयी है ,,,,

प्रिय पाठकों के विचारों का तहेदिल से स्वागत है ,, आपकी नजर में लिव इन कहाँ तक जायज है ,,आपका कमेंट के पक्ष -विपक्ष दोनों विचारों का स्वागत है 






---राज किशोर मिश्र---

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