भारतीय अंतरिक्ष यान चंद्रयान-1 के उपकरणों द्वारा प्राप्त आंकड़ों की मदद से वैज्ञानिकों को चंद्रमा की सतह पर भूमिगत जल के अज्ञात स्रोत के सबूत हासिल करने में कामयाबी मिली है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अंतरिक्ष यान पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मून मिनरलॉजी मैपर (एम3) उपकरण के माध्यम से वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के सतह पर भूमिगत जल के स्रोत का पता लगाया।
एजेंसी के मुताबिक शोध पत्रिका नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित नासा प्रायोजित अनुसंधान की रिपोर्ट में चंद्रमा के सतह पर भूमिगत जल के संकेत मिलने की जानकारी दी गई है। एम3 ने चंद्रमा के विषुवतीय भाग में स्थित एक बुलियाल्डस क्रेटर की तस्वीर ली है। इसका मध्य हिस्सा एक तरह की चट्टानों से निर्मित है, जो चंद्रमा की सतह के नीचे मैग्मा के एकत्र होने से बनता है।
मेरीलैंड के लॉरेल में स्थित जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी अपलाइड फिजिक्स लैबोरेट्री (एपीएल) की ग्रह भूविज्ञानी रेचल क्लिमा ने कहा कि हमने पाया कि इस क्रेटर के बीच में हाइड्रोक्साइल अच्छी खासी मात्रा मौजूद है। हाइड्रोक्साइल के प्रत्येक अणु में ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के एक एक परमाणु मौजूद होते हैं, जिसका मतलब है कि इस क्रेटर में स्थित चट्टानों में जल मौजूद है। ये चट्टान सतह के नीचे पाए जाते हैं।
साल 2009 में एम3 ने चंद्रमा की सतह का पहला मिनरलॉजिकल नक्शा उपलब्ध कराया था, जिसमें चंद्रमा के ध्रुवों पर जल के कण की मौजूदगी का पता चला था। चंद्रमा की सतह पर जल के अस्तित्व का संकेत मिलने का मतलब है कि वैज्ञानिक अब अध्ययन से प्राप्त नमूनों का वृहद स्तर पर परीक्षण शुरू कर सकते हैं।
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