ब्लेकमेलिंग से कम नहीं है, औरों पर बेवजह निगाह रखना - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 14 अगस्त 2013

ब्लेकमेलिंग से कम नहीं है, औरों पर बेवजह निगाह रखना

अपने काम में रमे रहकर आनंद पाना सच्चे मनुष्य का लक्षण है लेकिन दूसरों के कामों पर निगाह रखना, जमाने भर की बुराइयों का टोकरा अपने पास जमा करते हुए औरों को भयभीत करते हुए अपने उल्लू सीधे करना तथा दूसरों की मजबूरियों का फायदा उठाना इंसानियत नहीं कहा जा सकता है। यह सीधे-सीधे तौर पर ब्लेकमेलिंग ही है, तरीका कोई भी हो सकता है। जिन लोगों को ईश्वर तथा अपने हुनर या भाग्य पर भरोसा नहीं होता, संस्कारहीनता हावी है, वंश का गौरव नहीं है, संकर किस्मों का धान खा-खाकर अपनी वृत्तियों को संकर बना चुके हैं, वे अपने आपको चलाने और मानवी प्रवाह की मुख्य धारा में बने रहने, अपने भविष्य को सुरक्षित करने तथा बिना कोई मेहनत किए औरों के माल पर मौज उड़ाने को ही जिन्दगी समझ बैठे हैं।

ऎसे लोगों की भीड़ आजकल हमारे आस-पास भी खूब है। यों ऎसे लोग देश का कोई सा कोना हो, दुनिया के तमाम धु्रवों तक में मिल ही जाते हैं जो अपनी षड़यंत्रकारी हरकतों और नापाक इरादों के साथ दिन-रात इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि औरों की कौनसी कमजोरी कब पकड़ में आ जाए और वे इसका जायज-नाजायज इस्तेमाल अपने हक़ में कर सकें। जो लोग लम्बे समय तक किसी स्थान या पद या पदवी पर बने रहने चाहते हैं, बिना परिश्रम के रातों रात धनी-मानी और महान लोकप्रिय हो जाने के स्वप्न देखने के आदी हैं, हुनर नहीं होते हुए भी अपने हिंसक व्यवहार और चातुर्य से परिपूर्ण नकारात्मक मानसिकता का पर्याय बने हुए हैं, ऎसे लोग कोई अच्छा काम भले न कर पाएं, लेकिन औरों पर निगाह रखने और औरों के बारे में जानकारी जमा करने के सारे हथकण्डों में माहिर होते हैं जैसे कि जमाने भर में ये ही सार्वजनिक कूड़ाघर हैं जिन्हें औरों की जिन्दगी का पूरा हिसाब-किताब रखने का काम धर्मराज ने दे डाला हो।

समाज-जीवन का कोई सा क्षेत्र हो, ऎसे लोग सभी स्थानों पर न्यूनाधिक रूप में पाए जात हैं। मजेदार तथ्य यह है कि  औरों पर निगाह रखते हुए सामने वालों की कमजोरियों को भुनाने वाले लोग खुद चोर-उचक्कों, बेईमानों, भ्रष्टाचारियों और व्यभिचारियों से कम नहीं हैं, इनके भीतर मनुष्यता को तलाशा जाए तो शायद ही हाथ लग पाए।कुटिल चरित्र वाले ऎसे लोगों की सभी जगह भरमार है जिनके लिए औरों को फाँदने या फँसाने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाने के सिवा और कोई काम है ही नहीं। ये लोग इसी फिराक में रहते हैं कि किस तरह लोगों को फँसा कर उनका इस्तेमाल अपने स्वार्थ पूरे करने में कर लिया जाए।

इस मंशा के लिए अब लोगों ने अत्याधुनिक संचार सुविधाओं को आजमाना शुरू कर दिया है। ये लोग मोबाइल पर लच्छेदार बातें करते हुए सामने वालों के विचारों और प्रतिक्रियाओं को रिकार्ड कर लेते हैं और फिर दूसरों को सुनाकर आपस में लड़ाई-झगड़ों और वैमनस्यता के बीज बो देते हैं। मोबाइल या कैमरों से फोटो खींचकर दूसरों को डराना-धमकाना शुरू कर देते हैं। कई सारे लोग तो ऎसे हैं जिनके दफ्तरों और दुकानों तथा डेरों पर गुप्त कैमरे हर दिशा में लगे हुए होते हैं जहाँ वीडियो और आवाज दोनों का अपने आप रिकार्ड होता रहता है। इनके वहाँ जो कोई आता है उसे बातों ही बातों में उलझाकर उसके मुँह से ऎसी बातें उगलवा लेते हैं जिनका इस्तेमाल ये अपने स्वार्थ के लिए कर सकें।

कई सारे लोग औरों के बारे में छद्म नामों से शिकायतें लिख-लिख कर भिजवाने और फाईलें बनाकर डराने के आदी हो गए हैं। कई ऎसे हैं जो जब किसी से मिलेंगे, किसी न किसी के बारे में हमेशा शिकायतें करते ही रहेंगे। शिकायत करना इनके खून में होता है। खूब सारे ऎसे हैं जिन्हें अपने घर-परिवार के बारे में भले ही कुछ पता न हो, जमाने भर में कहाँ क्या चल रहा है, क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है, कौन कर रहा है.... इन सारे प्रश्नों के जवाब तैयार हैं। इन सभी लोगों को लगता है कि इस प्रकार के हथकण्डों से वे लोगों को डरा-धमका कर स्वार्थ पूरे कर लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं, यह उनका भ्रम ही है। असल में यह मनुष्य की अभिव्यक्ति पर पहरा है, साफ-साफ ब्लेकमेलिंग है जो विभिन्न रूपों में हमारे सामने है।

जो लोग ऎसी नापाक हरकतें करते हैं उनके चेहरों से उनके मलीन और जहर भरे हृदय की थाह पायी जा सकती है फिर ऎसे लोगों की बॉड़ी लैंग्वेज भी अपने आप इनका चरित्र प्रकटा ही देती है। ऎसे माफियाओं  की शक्ल से ओज गायब हो जाता है, औरों से आँखें नहीं मिला सकने की स्थिति में इन्हें धूप न होते हुए भी सुनहरी फ्रेम वाला काला चश्मा हमेशा लगाये रखना पड़ता है। ऎसे लोगों का जिस्म भी हमेशा मैला दिखता है और आकार में श्वान, लोमड़, घड़ियाल, गैंडा, सूअर, भैंसा, गिद्ध  जैसे किसी भी जानवर का रूप-रंग अनुभव किया जा सकता है। फिर जो लोग ब्लेकमेलिंग करते हैं उन सभी का इतिहास खंगाला जाए तो साफ पता चलेगा कि इनका अंत बरसों तक सड़-सड़ कर हुआ है अथवा उसी तरह हुआ है जैसे सड़क पर पड़ी व्हीसलरी की बोतलों को अजीब सी आवाज के साथ कोई सा वाहन कैसे कुचल देता है।

कई सारे ऎसे लोगों के जीवन का उत्तराद्र्ध ऎसा होता है जिसमें इनका पूरा व्यवहार विक्षिप्तों से कम नहीं होता, इनके श्वेत-श्याम इतिहास से वाफिक लोग उनसे किनारा कर ही लिया करते हैं। अपने इंसान होने पर गौरव करें और अंधेरों को छोड़ कर उजालों को हमसफर बनाएँ।







---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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