लोक प्रचलित कहावत के साथ ही किसी फिल्म का बड़ा ही मजेदार गीत है - बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना....। यह अपने आप में जाने कितने रहस्यों से भरा हुआ तो है ही, सीख भी देता है। आजकल हमारे चारों तरफ लगभग ऎसी ही स्थितियाँ बनी हुई हैं। हर तरफ यह कहावत उन सभी लोगों पर एकदम सटीक बैठती है जो हर किसी प्रकार के आयोजनों में अपनी गौरवशाली उपस्थिति दर्ज करा कर गर्व का अनुभव करने को ही जिन्दगी समझ बैठे हैं। बात अपने इलाके की हो या देश के किसी और क्षेत्र की, हर तरफ कुछ लोग ऎसे जरूर पाए जाते हैं जो हर प्रकार के आयोजन में दिख ही जाते हैं। सिर्फ दिखते भर नहीं, बल्कि इस प्रकार का व्यवहार करते रहते हैं जैसे कि ये ही आयोजक हों अथवा सक्रिय सहभागी। इनका एकमेव मकसद यही होता है कि जितने समय वे वहाँ बने रहें, ज्यादा से ज्यादा लोगों की निगाह में आते रहें और अपने आपको लोकप्रिय एवं हर दिल अजीज सिद्ध करते रहें।
इस किस्म के लोगों का आयोजनों अथवा आयोजकों तक किसी से कोई संबंध नहीं होता बल्कि ये खुद-ब-खुद ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की तर्ज पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा ही देते हैं। फिर आयोजन खाने-पीने का हो, तब तो बात ही कुछ अलग होती है। इलाके भर के ऎसे लोग गंध पाकर बिना बुलाये जमा हो जाना अपना जन्मसिद्ध और मृत्युपर्यन्त अधिकार समझते ही हैं। आयोजकों से कहीं ज्यादा तमाम प्रकार के आयोजनों की विशिष्टताओं और इनमें भागीदारी निभाने में सफलता हासिल करने वाले सभी हथकण्डों और हुनरों में माहिर इन लोगों को अच्छी तरह पता होता है किस प्रकार के कार्यक्रम में कौनसी वेशभूषा और व्यवहार जरूरी होता है।
बड़े-बड़े आयोजनों में ऎसे लोग सफारी, जींस, सूटेड-बूटेड़ या उत्सवी परिधानों में फबकर ऎसे जमा हो जाते हैं जैसे कि अतिथियों से कहीं कोई कम नहीं हैं। जैसा आयोजन, वैसा भेस। ऎसे लोगों का आयोजनों से कोई लेन-देन नहीं होता, न श्रद्धा होती है, न आवश्यकता। फिर भी सक्रिय भूमिका में दिखाई देने का फोबिया इन पर इस कदर सवार होता है कि ये अपने क्षेत्र का कोई सा आयोजन कभी नहीं छोड़ते। ऎसे लोगों की पावन मौजूदगी हर जगह अनिवार्य रूप से होती ही है। किसी वीआईपी और मेहमान की तरह चेहरा-मोहरा और हुलिया बनाकर आने वाले इन लोगों की असलियत वे ही समझ सकते हैं जो इन्हें अच्छी तरह जानते हैं, वरना इनसे अपरिचित लोगों के लिए तो इनका स्वाँगिया व्यवहार खूब कमाल ढा देने वाला ही होता है। ऎसे लोगों की सबसे बड़ी ख़ासियत यह होती है कि ये हर छोटे-मोटे आयोजन के लिए समय निकाल देते हैं और सर्वत्र दूसरों से पहले हाजिर रहते हैं।
इस किस्म में साठ साला और पांच साला दोनों तरह के बाड़ों के लोग शामिल हैं वहीं हर क्षेत्र में कुछ लोग ऎसे होते ही हैं जो और कुछ नहीं तो कम से कम भीड़ के रूप में सहयोग जरूर देते रहे हैं। इन लोगों को न आयोजन से कोई सरोकार होता है, न आयोजकों से, और न ही अतिथियों से। इन्हें सिर्फ एक ही फोबिया होता है कि कोई सा कार्यक्रम उनके बगैर हो जाए, यह उन्हें कभी पसंद नहीं आता। इसीलिये ये लोग हर तरह के कार्यक्रम में बिना बुलावे के पहुंच जाना अपना धर्म मानते हैं और इस आतिथ्य धर्म का पालन वे तब तक करते रहते हैं जब तक जिन्दा रहते हैं या अधमरे होकर आने की स्थिति में नहीं होते।
ऎसे मुफतिया रखडैल लोग प्रत्येक क्षेत्र में हर बार अपनी मौजूदगी की वजह से लोकप्रिय होते हैं और आयोजकों की अघोषित गिनती में इनके नाम जरूर शुमार होते ही हैं। आयोजकों का स्पष्ट सोच रहता है कि ये लोग तो बिन बुलाये आ ही जाएंगे, इसलिए इन्हें भीड़ में पहले ही शामिल कर लिया जाता है। ऎसे लोग हर युग में रहे हैं और आगे भी रहने वाले हैं। अपने इलाके की ओर नज़र दौड़ाएं और देखें कि कितने सारे लोग ऎसे हैं जो बिना किसी कारण या संबंधों के हर कहीं घुसपैठ कर लेते हैं और भीड़ के रूप में सक्रिय होकर अपने आपको भाग्यशाली एवं सफल मान रहे हैं। विभिन्न प्रकार के सार्वजनिक आयोजन न होते, तो इन बेचारों के लिए कहाँ प्रबन्ध हो पाता चरागाह या अभयारण्य का। इसी सोच के साथ जीवदया के मर्म को आत्मसात करें।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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