किशनगंज भूमि घोटाले में तत्कालीन दो जिलाधिकारियों सहित 12 अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया है. किशनगंज भूमि घोटाले में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने पटना व्यवहार न्यायालय में तत्कालीन दो जिलाधिकारियों सहित 12 अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया है.
निगरानी के विशेष न्यायाधीश दानपाल सिंह की अदालत में दाखिल आरोप पत्र में कहा गया है कि सभी अधिकारियों ने स्थानीय उद्योपतियों के साथ मिली भगत कर 182 एकड़ जमीन एक ही परिवार को चाय उद्योग को बढ़ावा देने के नाम पर दे दी है. अधिकारियों के इस कारनामे से सरकार को वर्ष 1997 से लेकर 1999 के बीच 52.18 लाख रुपये के राजस्व की हानि हुई है. यही नहीं सरकार को प्रति वर्ष 1.41 लाख रुपये के राजस्व की हानि हो रही है.
ब्यूरो ने कहा कि राज्य सरकार ने उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1995 में औद्योगिक नीति बनायी. इसके तहत चाय पत्ती का उत्पादन, प्रोसेंसिग और पैकेजिंक को उद्योग का दर्जा दिया गया. उद्योग लगाने के लिए पांच एकड़ तक की गैर मजरूआ खास जमीन को बंदोबस्त करने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया था.
इसको लेकर 22 नवम्बर, 1995 राजस्व भूमि सुधार विभाग ने पत्र निर्गत किया था. आरोप पत्र में कहा गया है कि अधिकारियों ने नीति और दिशा-निर्देश को तोड़ मरोड़ कर विवेचना की और अपने पद का दुरुपयोग करते हुए 44 लीज धारियों को 90 वर्षों तक के लिए 182 एकड़ भूमि की बंदोबस्ती कर दी. इनमें से अधिकतर लीजधारक एक ही परिवार के हैं. जमीन बंदोबस्ती के दौरान नियम के विरुद्ध सलामी राशि को हटा कर लगान की न्यूनतम राशि कर दी गयी. इस तरह से सरकार को घाटा पहुंचाया गया, जबकि लीजधारियों को लाभ. आरोप पत्र में कहा गया है कि अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग कर आदिवासियों की बंदोबस्त जमीन को भी लीजधारियों को दे दिया.
इस तरह से तत्कालीन जिलाधिकारी राधेश्याम बिहारी सिंह के सेवा काल में लगभग 36.12 लाख रुपये और तत्कालीन जिलाधिकारी सुबोध नाथ ठाकुर के कार्यकाल में 16.08 लाख रुपये के राजस्व की हानि हुई.
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