रुपया बाद में पहले खुदरा तो संभालें..!! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 24 अगस्त 2013

रुपया बाद में पहले खुदरा तो संभालें..!!

  • इसके लिए जिम्मेदार हम नहीं , ब ल्कि सरकार है। सरकार हमें मजबूर करती हैं कि हम चीजों की कीमतें बढ़ा दें...। 


currency
महंगाई और अर्थशास्त्र जैसे गूढ़ विषय पर समाज के सबसे  निचले पायदान के लोगों की ऐसी दलीलें सुन कर मैं हैरान रह गया। रुपये में गिरावट पर जहां बड़े - बड़े अर्थशास्त्री व बुद्धिजीवी हैरान -परेशान हैं, वहां एक छोटे से कस्बे में फुटपाथ पर चाय - पान का ठेला लगाने वालों की यह बतकही काफी अर्थपूर्ण लग रही थी।यह एक तरह से यह नासमझों की समझदारी भरी बात कही जा सकती थी। दरअसल मसला खुदरा पैसों की समस्या को लेकर था। जिससे क्रेता व दुकानकार के बीच कहासुनी हो रही थी। महानगरों की तो नहीं जानता, लेकिन गांव व कस्बों में अभी भी एक - दो व पांच रुपयों के सिक्कों का महत्व कायम है। साधारणतः चाय - पान व बस - आटो के किराए में इसका उपयोग होता है। अक्सर दवाओं की खरीद में भी खुदरा पैसों की जरूरत पड़ जाती है। लेकिन खुदरा पैसों की समस्या पिछले कई सालों से बदस्तूर जारी है। जिस पर समाज व सरकार में कभी बहस नहीं हुई। मुद्रा संकुचन व रुपये का अवमूल्यन जैसे गूढ़ विषय न समझने वाले खुदरा पैसों की समस्या को अच्छी तरह से समझते हैं। क्योंकि यह उनकी जिंदगी को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। होटल मालिक व उसके ग्राहक के बीच का बातचीत भी इसी संदर्भ में था। चाय पीनी हो या नाश्ता करना हो, या बस व आटो का किराया ही चुकाना हो, खुदरा पैसों की जरूरत सहज पड़ती है, लेकिन इसकी किल्लत ऐसी कि दूर होने का नाम ही नहीं लेती। सरकार का तो पता नहीं, लेकिन लोगों में कुछ साल पहले तक ऐसी धारणा थी कि देश के खुदरा पैसे तस्करी के जरिए बंगलादेश चले जाते हैं। कहा जाता है कि वहां इन पैसों का ब्लेड तैयार किया जाता है। सरकार व प्रशासन ने न तो कभी इन अटकलों को स्वीकार किया, न खारिज। इससे लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।  इस तथ्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि खुदरा पैसों की कमी के चलते कई चीजों की कीमतें बेवजह बढ़ी या बढ़ा दी गई। वहीं कई चीजें अनावश्यक रूप से लोगों को खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है। बतकही के बीच ओड़िशा के अत्यंत पिछड़े माने जाने वाले ढेंकानल जिले के एक चाय विक्रेता ने दलील दी कि खुदरा पैसों की वजह से ही उसके गांव में एक कप चाय की कीमत चार रुपए हो गई है, जबकि शहर पहुंचते ही यह बढ़ कर पांच रुपए का हो जाती है। रुपए में गिरावट की चर्चा के बीच सरकार व प्रशासन को ऐसी खुदरा समस्याओं पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए, साथ ही स्पष्टीकरण भी जारी होनी चाहिए कि यह समस्या आखिर क्यों है। 




तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं। 

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