केदारनाथ : तबाही के बाद अब जिदंगी की जंग, केदाघाटी में आपदा के बाद 68 दिन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 25 अगस्त 2013

केदारनाथ : तबाही के बाद अब जिदंगी की जंग, केदाघाटी में आपदा के बाद 68 दिन

  • पलायन अब बन चुकी है नीयति


देहरादून, 25 अगस्त। केदारनाथ जलप्रलय के 68 दिन बाद केदारघाटी मेें आपदा और तबाही की तस्वीरें नहीं बदल पाई है। आंसू , सिसकियां और लाचारी हर आपदा पीेड़ित की नियति को कोसने लगी है। न घर है, न रोजगार और न ही कोई सहारा। पुर्नवास और विस्थापन के अभाव में आपदा में सब कुछ खो चुके लोग दर दर भटकने को मजबूर हैं। मन्दाकिनी के तट पर बसे गौरी गांव से लेकर सोनप्रयाग, सीतापुर, चन्द्रापुरी, सौड़ी, बेडूबगड़, गंगानगर, जवाहरनगर, पुरानादेवल, विजयनगर, अगस्त्यमुनि, सौरगढ़, सिल्ली, चाका, तिलवाड़ा और सुमाड़ी कस्बों में तबाही के साथ मचे भारी आर्थिक और सामाजिक नुकसान से प्रभावित लोग अब मानसिक रूप से भी टूटने लगे हैं। 

पलायन ही एकमात्र विकल्प

kedarnath valley
मन्न त छेंछ एक ना एक दिन पर अपणा मुळक मा मरदा त भग्यान होंदा...... देहरादून जाने वाली जीप मैक्स में बैठे चमराणा गांव के 95 वर्षीय भोलादत्त थपलियाल की आंखों में उम्र की लाचारी और बेबसी का दर्द साफ दिखाई दे जाता है। रूंधे गले से कहते हैं बेटा अब अपनी धरती पर प्राण त्यागने की आखिरी इच्छा भी अधूरी रह जाऐगी। गांव की हालत से वो बहुत दुखी है कहते है कि जीवन में बहुत दुख देखा और सहा, कुछ वक्त बाद सब कुछ सामान्य भी हुआ लेकिन अब लगता है कि हम अनाथ हो गए, पित्रौं की बसायी धरती हमसे रूठ गई है। ब्लाक मुख्यालय अगस्त्यमुनि से सटे बनियाड़ी गांव के ठीक सामने नदी पार चमराणा गांव में लगतार दरक रही जमीन से भयभीत महेश प्रसाद, जगदंबा प्रसाद और देवी थपलियाल ने गांव के अपने पैतृक मकानों को नम आंखों से अलविदा कह दिया है। बच्चों को भाई के पास देहरादून छोड़ने जा रहे गांव के ही महेश प्रसाद कहते हैं कि मकान की हालत दयनीय है कभी भी गिर सकता है, ऐसे में यहां रहना मुनासिब नहीं है। पिता को देहरादून छोड़ने जा रहे चमराणा के ही देवी प्रसाद थपलियाल कहते हैं कि पिताजी की उम्र 95 वर्ष है, तेजी से आ जा नहीं सकते, कई बार रात को पिताजी को पीठ में रखकर जंगल की ओर भागे, अब स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। देहरादून में उनका छोटा भाई है, अब पिताजी वहीं रहेगें। हम भी विजयनगर में कमरा ले चुके हैं। विजयनगर बाजार में टेलरिंग की दुकान है, पिछले 30 सालों से वे रोजाना दो किमी पैदल चलकर विजयनगर झूलापुल के रास्ते चलकर दुकान जाते थ,े कुछ दिन से फलई होते हुए 8 किमी की दूरी तय कर विजयनगर आ रहे थे, लेकिन फलई के समीप पहाड़ी का भूस्खलन अब हिम्मत नहीं दे रहा है। उम्र की तकाजा कहंे तो अब गांव छोड़ना ही मुनासिब है। गांव में अभी 13 परिवार और हैं जिनका जीवन खतरे में है सभी लोग गांव छोड़ने का मन बना चुके हैं। गांव वाले कहते है कि साहब ! पटवारी जी आए थे, मौका मुआवना करके चले गए। उन्होंने कहा गांव छोड़ दो, तीन महीने का किराया भी मिलेगा। लेकिन फिर कोई संदेश नहीं आया। गांव में 15 परिवार है कुल चार टेंट मिले, हम कैसे  इनमें अपने दिन गुजारें कुछ समझ नहीं आता है।

शून्य पलायन को भी देख चुके है आपदा से बर्बाद गांव

1979 में कोन्था गांव, और जखोली, 1992 में कालीमठ घाटी के जग्गी बेडूला, 1998 में मद्महेश्वर घाटी का राऊ गांव, पिलौज, सरूणा, गिररिया, गैड़, बुरवा, रांसी, उनियाणा, कुणजेटी, कविल्टा, कोटमा, कालीमठ, 1998 में पौंडार गांव, 2001 में व्यूंग गांव, 2003 फाटा, 2005 विजयनगर, 2010 जैली कण्डाली, 2012 चुन्नी, मंगोली, बामणखोली, प्रेमनगर, जुआ, किमाणा, गिरिया, सरूणा, पाली, सलामी, और बड़मा पट्टी के किरोड़ा मल्ला, तिमली गांवों को भारी नुकसान पहुंचा था। इन सब में मद्महेश्वर घाटी का राऊ और पौंडार गांव फिर से वहा नहीं बस पाए। सरकार वास्तव में गंभीर है तो इन गांवों के लिए आज तक भी मदद की दरकार क्यों नहीं पूरी कर पाई ?

हम मर जाएंगे क्या तब सुध लेगी सरकार!

आपदा के 68 दिन बाद तक बड़मा, सिलगढ़, फुटगढ़, पंच सिल्ला और बांगर क्षेत्र के साठ से भी अधिक गांव और तोकों को पैदल और सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए सरकारी तौर पर काई कार्यवाही शुरू नहीं हो पाई है। ब्लाक मुख्यालय के समीप मन्दाकिनी नदी के दांये छोर पर बसे इन गांवों में अब खाद्यान संकट गहराने लगा है। 16 जून की आपदा के बाद क्षतिग्रस्त विजयनगर तिमली एवं विजयनगर पठालीधार-सिद्धसौड़ मोटर मार्ग के कारण मरघट, झटगढ़, चमराणा, अमरापुरी, सिल्ला, जैंटा, मौलकठ्ा, चाका, गदनू, पाटियों, थरगला, ल्वण्यापाणी, जखन्यालगांव, स्वाड़ा, घणतगांव, नौगांव, कोटी, सेम, मरोड़ा, डोबल्या, नैरा, बश्टा, तिमली, बड़मा, डंगवालगांव, समेत 60 से अधिक गांव तोकों का जीवन संकट में आ चुका है। क्षेत्र में माचिस की डिब्बी तक के लिए दस से पन्द्रह किमी तक का जोखिम भरा सफर तय करना पड़ रहा है। 68 वर्षीय बलदेव सिंह राणा कहते है कि हम बुजुर्गो की नहीं तो बच्चों की हालात पर तो दया करो। दो माह से स्कूली बच्चे गांवों में कैद हो कर रह गए है। यहां न दवा है न मरहम क्या बहरी सरकार मरने के बाद हमारी सुध लेगी? 

हमें दिलासा नहीं घर चाहिए

यन बचिक क्या कन्न, तीस साल बटि ज्वोण्यू घर संसार बोगीग्ये, कुछ बी नी बची पर ज्यूंदा छा त ज्यूंदी छ्वी त कन पड़ली, सरकार सुरक्षित स्थान पर जागा जमीन द्यो त फेर शुरू करला जिदंगी (ऐसे बच के क्या करें, तीस साल से जोड़ा घर संसार बह गया, कुछ भी नहीं बचा फिर भी जिंदा है तो जिदंगी की उम्मीद रखनी पड़ेगी, सरकार सुरक्षित स्थान पर जमीन दे तो हम फिर से जिदंगी शुरू करेंगे).... 55 वर्षीय कल्पेश्वरी देवी थपलियाल को अपने बेघर हो चुके परिवार को फिर से बसाने की चिंता सताने लगी है। वो रूघे गले से कहती है हम कहाँ जाएं, सरकार हमें सुरक्षित स्थान पर जमीन देती तो कर्ज पात करके सर छुपाने का एक आसरा तो बनता। केदारघाटी के आपदा पीड़ीतों ने केदारघाटी आपदा प्रभावित पुर्नवास एवं विस्थापन समिति नाम से एक पंजीकृत संगठन बनाया है जिसके बैनर तले अब पुनर्वास और विस्थापन की लड़ाई लड़ने को लोग एकजुट होने लगे है। संगठन के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय कहते है कि हमारे जीवन की नैया अब संशय के भंवर में डोल रही है, न घर के रहे न बाहर के, आपदा में क्या राजा क्या रंक सब भिखारी बन गए, हकीकत बहुत कड़वी है लेकिन जीवन को फिर से पटरी पर लाना भी जरूरी है। बावजूद  झूठे दिलासे देकर हमारे दुख को और अधिक न बड़ाए। बार बार घड़ियाली आंसू बहाकर संवेदनशीलता की दुहाई देती सरकार को उनके पुर्नवास की एक सूत्रीय मांग पर जल्द से जल्द अमल षुरू करना चाहिए ताकि उनका जीवन फिर से पटरी पर लौट आए।

आसुओं के बीच राहत को तरसे लोग

पुल, सड़क, पैदल माग सब बदहाल है। केदारघाटी में मन्दाकिनी गंगा के दोनों छोरों को जोड़ने वाले बह चुके अधिकांष पुलों के पुर्ननिर्माण और वैकल्पिक रोप वे/ट्राली लगाने की व्यवस्था आपदा के 68 दिन बाद भी अधर में है। बड़मा व सिलगढ़ पट्टी के 33 गांवों को जोड़ने वाले विजयनगर झूलापुल चिंतित सरकार की संवेदनहीनता का जीता जागता उदाहरण है। गांवों के पैदल व सड़क सम्पर्क मार्ग अभी तक बंद है। रूद्रप्रयाग से कुण्ड के बीच नौलापानी, सिल्ली, पुरानादेवल, चन्द्रापुरी, भीरी में सड़क की हालत गंभीर है बार बार यातायात बाधित हो जाता है। पैदल और वाहनों की अदला बदली कर लोग अपनी आवाजाही को जारी रखते है। ब्लाक मुख्यालय से महज आधा किमी की दूरी पर बसे बगर गांव के लिए भी रास्ता बनाने का काम भी सरकार नही कर पाई। नीचे उफनती मन्दाकिनी और गांव के बीचों बीच गरजता बगर गदेरा, अगस्त्य मुनि नगरपंचायत के बगर तोक में अनुसूति जाति के 34 परिवारों का जीवन अधर की स्थिति में है। आपदा के इन 68 दिनों में सूबे के बड़े बड़े माननीय इस गांव पहुंचे लेकिन रास्ते को लेकर सबकी संवेदना गायब दिखी। दुख विपदा की घड़ी में एक अदद रास्ते की दरकार को जब सरकार सुन न सकी तो खुद के आंसू पोछकर गांव के युवाओं जानजाखिम में रखकर कर रास्ता बनाने की कवायद में जुटे गए। बेतरतीब पत्थरों को रास्तें की षक्ल में चिनते हुए गांव के महावीर, धीरज, गुड्डू, शूरवीर, दिनेष, परवल, सुंदर, संजय, और रघुवीर की हिम्मत की दाद देनी होगी। ऐसा ही कुछ ब्लाक मुख्यालय के ठीक सामने मन्दाकिनी नदी के पार चाका गदनू और झटगढ़ के ग्रामीणो ने भी किया है। ग्रामीणों ने भूस्खलन के कारण समाप्त हो चुके विजयनगर तिमली सड़क क्षेत्र में मिट्टी को काटकर रास्ता तैयार किया है। सौड़ी गांव के नजदीक नदी तट के दूसरे छोर पर बसे हाट के ग्रामीणं भी खुद चट्टान को काटकर गांव के लिए रास्ता बनाने में जुटे है। गांव के पूर्व प्रधान रामचन्द्र गोस्वामी कहते है कि सरकार के भरोस सर्वे हो सकते है काम नहीं, हम कब तक गांव में कैद होकर रहते, लिखित और मौखिक अनुरोध पर भी रास्ते के निर्माण के लिए सरकार और शासन ने कोई संवेदना नहीं दिखाई। गांव के लोग मिलकर श्रमदान कर रहे है, रास्ता बनकर तैयार है। यह रास्ता न केवल हमारे हाट गांव के लिए बल्कि पूरे बसुकेदार क्षेत्र के लिए ब्लाक मुख्यालय तक पहुंचने का सबसे सरल विकल्प बन जायेगा।

राहत और बचाव के नाम पर ठगी

राहत और बचाव में बड़े बड़े बैनरों के साथ जुटी कई गैर सरकारी संस्थाए यानि एनजीओ भी सर्वे के नाम पर जनता को बरगलाने पर जुटे है। लोगों को मदद का भरोसा देकर उनकी आपदा ग्रस्त तस्वीरों को खींचकर फडिंग इकठ्ठा करने का गोरखधंधा भी तेजी से बड़ रहा है। देश के बड़े बड़े मीडिया घराने और संगठन मदद के नाम पर करोड़ों अरबों रूपये बटोर चुके है। लेकिन केदारघाटी में आपदा के 68 दिन बाद आपदा प्रभावित गांवों में इन बड़े घरानों और तथकथित एनजीओं की मदद नदारद है। गोद  लेने के बड़े बड़े दावों की हकीकत केदारघाटी में आकर साफ देखी जा सकती है। लोगों टेंटों में है और स्कूल पंचायत भवनों पर। राहत के कार्यो को सर्वत्र और संगठित रूप में करने के लिए गठित आई ए जी की बैठक में विभिन्न संस्थाओं ने विद्यालयों को पठन पाठन सामग्री देने की जिम्मेदारी ली थी लेकिन आपदा के 68 दिन बाद भी बह चुके अधिकांष विद्यालयों में यह सामग्री नहीं पहुंच पाई है।

कमजोर और बुजदिल नेता

सरकार के लचर आपदा प्रबधंन और माननीयों की गैर जिम्मेदाराना नीति का खामियाजा भी केदारघाटी की जनता भुगतना पड़ रहा है, तब जबकि जनपद में दोनों विधायक सरकार में मौजूद है। विडंबना ही कहे कि केदारघाटी में दुख विपदा की इस घड़ी में मानसिक रूप से टूट चुके आपदा पीड़ितों को जहां राहत बचाव कार्यो के साथ धैर्य और दिलासे की सख्त जरूरत थी वही उनके जनप्रतिनिधियों ने उनसे दूरी बनाकर रखी। दुख में डूबी जनता ने जब बार बार मंचों पर इन माननीयों को फफक फफक कर रोते हुए भी देखा तो उन्हें ये तारणहार कम और नाटकीय ज्यादा लगे। उनकी आंखों के ये सूखे आंसू आपदा के प्रति उनकी कमजोर इच्छाशक्ति और बुजदिली को ही बयां करते है। चुनाव के वक्त दिन हो या रात घाटी के चप्पे चप्पे और गांव गलियों तक ये हाथ जोड़ते नजर आए थे लेकिन इन 68 दिनों में सिवाय हेलीकाप्टरों के दौरों और चैक वितरण जैसे खबरी शोहरत के कार्यक्रमों में ही ये अपनी न्यूनतम उपस्थिति दर्ज करा पाए।

हकीकत से मुंह न मोड़े सरकार

सरकार से ज्यादा उम्मीद करना भी बेईमानी है। सरकार द्वारा बह चुके मकानों के मुआवजे के रूप में मिले दो लाख रूपयों में न नया घर बन सकता है और न मकान बनाने के लिए जमीन। दो माह बीत चुके हैं लेकिन पुर्नवास और विस्थापन के लिए चिन्हित केदारघाटी में आपदा से प्रभावित 48 में से महज सात गांवों का ही अभी तक सर्वे हो पाया है। बरसों से पलायन की मार झेल रहे केदारघाटी के सैंकड़ों गांवों में आपदा के बाद हालात और भी सोचनीय हो गए है। अगस्त्यमुनि से लगते मन्दाकिनी के पार बड़मा सिलगढ़ पट्टी के 33 गांव, चन्द्रापुरी नदी पार कालीफाट के 29, कालीमठ के 26 और मद्महेश्वर घाटी के 18 छोटे बड़े गांवों में संपर्क रस्सी की एक डोरी पर ही सिमट गया है। लोग मीलों चलकर अपनी जरूरत जुटा रहे है। गांवों तक रसद पहुंचाना और आवाजाही करना जोखिम भरा है। ऐसे में ग्रामीणों के सामने शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार के लिए पलायन करना ही सबसे सुरक्षित विकल्प सामने है। केदारघाटी में जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़े ब्लाक मुख्यालय अगस्तयमुनि में 46 प्रतिषत लोग देहरादून व अन्य सुरक्षित स्थानों पर पलायन कर चुके है। रूद्रप्रयाग के ऐजुकेशन हब के रूप में पिछले कई सालों से अगस्त्यमुनि तेजी से विकसित होने वाले कस्बे के रूप में उभर रहा था। आपदा के बाद नगर की चार स्कूलों के बह जाने से यहा पड़ने वाले 1600 से अधिक बच्चों का भविष्य अधर में है। हालांकि टेंटों में स्कूलों को चलाया जा रहा है, बावजूद स्कूलों में बच्चों की संख्या दिनों दिन गिरती जा रही है। केदारघाटी के कालीमठ और मद्महेश्वर घाटी में स्थिति जस की तस है। आपदा के प्रति सरकारी दावों की पोल एक साल पूर्व तहस नहस हो चुकी ऊखीमठ घाटी की हालत देख कर खुल जाती है। पिछले साल 14 सितम्बर को ऊखीमठ में बादल फटने के कारण एक दर्जन से अधिक गांवों में 61 लोगों की जान चली गई थी और 74 मकान जमीदोंज हो गए थे, 166 मकानों को गम्भीर क्षति पहुंची और 200 मकान खतरे की जद में थे। लेकिन इन्हें आज तक पुर्नवासित और विस्थापित नहीं किया गया। हैरानी की बात है कि लाखों रूपये आपदा के नाम पर स्वीकृत होने के बाद भी कुण्ड से ऊखीमठ को जोड़ने वाली सड़क तक नहीं बन सुधर पाई। आज भी कुण्ड से ऊखीमठ जाने वाली सड़क क्षतिग्रस्त है।

भगवान के साथ भक्त को बचाने की भी सोचे

केदारपुरी में सेना का राहत और बचाव मिशन समाप्त हो चुका है। शमशान बन चुकी केदारपुरी में धर्माचार्यो और पुरोहितों के बीच पूजा को लेकर वाद विवाद अभी ठण्डा नहीं हुआ था कि केदारपुरी को फिर से बसाने की कवायद पर राजनीति गरमाने लगी है। हालांकि प्रदेश सरकार 11 सितम्बर को मंदिर में पूजा कराने को लेकर आमदा है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि सरकार आखिर किसके लिए पूजा करवाना चाहती है वह तब जबकि अभी तक गौरीकुण्ड से  केदारनाथ तक न तो पैदल मार्ग ही सुचारू हो पाया है और न गौरीकुण्ड तक मोटर मार्ग । हाईप्रोफाईल रूप ले चुकी केदारनाथ महायोजना को लेकर स्थानीय तीर्थपुरोहित और सरकार की लड़ाई खुलकर सामने आने लगी है। त्रासदी की गंभीरता और प्रकृति के संदेशों की अनेदेखी से दोनों पक्ष बेखबर होकर अपनी अपनी दलीलों को सही साबित करने में जुटेे है। केदारनाथ धाम को दोबारा बसाने के लिए सरकार द्वारा 450 करोड़ रूपये की योजना तैयार की गई है। जिसमें 200 करोड़ रूपये में मदिर परिसर के साथ टाउनशिप और नए मार्ग का निर्माण किया जाने का प्रस्ताव है। धाम बसेगा तो केदारघाटी में रौनक फिर से लौट उठेगी लेकिन केदारघाटी में बसे उन सैकड़ों हजारों लोगों का क्या होगा जो पूरी तरह बरबाद और बेघर हो चुके है। उनके लिए भी योजनाए तैयार होती तो उम्मीदों के सहारे वो भी जी उठते। वास्तव में सरकार मानवीय कम और दिखावटी ज्यादा दिखती है। केदारपुरी की दुर्गम और दुरूह स्थिति में इस वक्त वहाँ किया जा रहा निर्माण कार्य नए हादसों का पर्याय बन सकता है, ऐसे में भारी और आर्थिक श्रम को बचाकर केदार की निचली घाटी में आवाजाही और लोगों को सुरक्षित बसाने के कार्य कों प्राथमिकता से किया जाना चाहिए।

चलो आस का दीप जलाए

जल प्रलय के बाद कालीमठ घाटी के अन्तिम गांव चौमासी का सज्जन सिंह, कालीमठ का आषोक, मद्महेष्वर घाटी के गैड गांव का रंजन पवंार, राउलेंक गांव प्रदीप, अनिल, देवर गांव की भावना चौहान, लमगौण्डी गांव की सुचिता षुक्ला समेत केदारघाटी के सैकड़ों नौनिहालों के सामने महाविद्यालय में प्रवेष लेना अब एक चुनौती बन चुका था। गांव के टूटे रास्ते, लगतार होता भूस्खलन और परिवारिकजनों की असमय मृत्यू घाटी के सैकड़ों युवाओं को निराष कर चुकी थी। महाविद्याय मे ंप्रवेष लेने का समय अब निकला जा रहा था लेकिन गांवो ंसे अगस्त्यमुनि पहुंचना कठिन ही नहीं नामुमकिन भी लगता था। बावजूद अचानक से छात्रसंघ द्वारा गांवों में ही प्रवेष फॉर्म भरने की बात उम्मीद को बांधने लगी।, जैसे तीन सौ से भी अधिक विद्यार्थीयों के भविश्य को बचाने के लिए जान जोखिम में रखकर गांवों में प्रवेश फार्म साधारण काम नहीं था। बावजूद अपने साथियों की दुर्गम परिस्थितियों और मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करते हुए अगस्त्यमुनि छात्र संघ का यह कार्य सराहनीय है। महाविद्यालय के पूर्व विवि प्रतिनिधि विनोद राणा, पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष सुमन नेगी और पंकज थपलियाल की टीम ने अब तक आपदा प्रभावित कालीमठ, मद्महेश्वर समेत केदारघाटी के विभिनन गांवों से अब तक 300 से भी अधिक नए विद्यार्थीयों के प्रवेष फार्म को भरवाकर इकठ्ठा कर चुकी है। इसके लिए गुप्तकाषी और ऊखीमठ में भी कलेक्षन सेंटर बनाया गया है। गांव गांव घूम रहे छात्र नेता विनोद राणा बताते है कि महाविद्यालय प्रषासन की अनुमति के बाद हमने एक सप्ताह पहले फोन द्वारा रजिस्टेषन प्रक्रिया षुरू की थी, जिसमें प्रभावित गांवों से नए छात्र छात्राओं का ब्यौरा तैयार किया गया। बाद में विभिन्न टीमों के जरिए इन गांवों से विद्यार्थीयों के प्रवेष र्फाम भरवा गए। इन सब में प्रधानाचार्य पीएस जगवाण ने हमें भरपूर मदद की, फार्म भरवाने और जमा करवाने की अनुमति के साथ हौसला भी देते रहे। राहत, आषा और उम्मीद के इन पंक्तियों के साथ अगस्त्यमुनि महाविद्यालय के छात्रसाथियों की पहल केदारघाटी के आपदा प्रभावितों गांवों में सैकड़ों विद्यार्थीयों के लिए नया जीवन लेकर आई है। 

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