मैथिली एवं हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार मायानंद मिश्र का निधन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 31 अगस्त 2013

मैथिली एवं हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार मायानंद मिश्र का निधन


mayanand mishra
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता मैथिली एवं हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार मायानंद मिश्र का शनिवार तड़के 4.30 बजे पटना स्थित इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान में निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। मैथिली उपन्यास 'मंत्रपुत्र' के लिए उन्हें वर्ष 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हिंदी उपन्यास 'सोने की नैया, माटी के लोग' से आंचलिक कथाकार के रूप में उनकी पहचान बनी। मायानंद मिश्र का जन्म बिहार के सहरसा (अब सुपौल) जिले के बनैनियां गांव में 17 अगस्त, 1934 को हुआ था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी मायानंद ने सन् 1950 के दशक में लेखन की शुरुआत की थी। प्रारंभिक दिनों में वह आकाशवाणी पटना से जुड़े रहे। बाद में सहरसा के विद्यापति नगर में रहते हुए वर्षो तक उन्होंने अध्यापन कार्य किया।

मायानंद मैथिली कथा साहित्य को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाले त्रिमूर्ति में से एक थे। त्रिमूर्ति यानी ललित, राजकमल, मायानंद। सुरीली आवाज के धनी मायानंद युवावस्था में कीर्तन मंडलियों में भजन गायक के रूप में जाने जाते थे। बाद में वह रंगकर्म से भी जुड़े। प्रो. हरिमोहन झा के हास्य-व्यंग्य मूलक कथाओं से प्रभावित मायानंद ने शुरुआत में हास्य-व्यंग्य रचनाएं कीं। उनका पहला कथा संग्रह 'भांगक लोटा' वर्ष 1951 में प्रकाशित हुआ था। आधुनिक मैथिली साहित्य को विश्वस्तरीय कथाएं देने वाले कथाकार ललित और राजकमल चौधरी के संपर्क में आने के बाद मायानंद ने स्वयं को गंभीर कथा लेखन की ओर मोड़ लिया।

'भांगक लोटा' के अलावा उनके प्रकाशित मैथिली कथा संग्रह हैं- आगि मोम आ पाथर, खोंता आ चिड़ै और चंद्रबिंदु। मायानंद मैथिली के कवि एवं गीतकार भी थे। उनके काव्य संग्रह 'दिशांतर' और 'अवांतर' प्रकाशित हैं। उन्होंने गजलें भी लिखीं, जिन्हें उन्होंने गीतल नाम दिया। मैथिली में मायानंद के उपन्यास हैं 'मंत्रपुत्र', 'प्रथमं शैल पुत्री च', 'स्त्रीधन', 'सूर्यास्त' और 'ठकनी'। हिंदी में 'सोने की नैया, माटी के लोग' के अलावा उन्होंने वैदिक काल को जीवंत करता उपन्यास 'पुरोहित' लिखा। राजकमल प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित उनका यह ऐतिहासिक उपन्यास काफी चर्चित रहा है।

मायानंद को वर्ष 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2002 में प्रबोध साहित्य सम्मान मिला।

विद्यापति स्मृति पर्व मनाने की परंपरा की शुरुआत करने वाले संस्कृति-कर्मियों में शुमार मायानंद मिश्र ने उत्कृष्ट उद्घोषक के रूप में भी अपनी पहचान बनाई थी। उनके परिवार में उनकी पत्नी, तीन पुत्र और एक पुत्री हैं। उन्हें जानने वाले लोग निदा फाजली की तरह पान से रंगे होंठों पर उनकी मीठी मुस्कान को शायद ही भूल पाएं।

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