जवाबदेही से बचेगा लोकतंत्र का आस्तित्व : मुखर्जी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 14 अगस्त 2013

जवाबदेही से बचेगा लोकतंत्र का आस्तित्व : मुखर्जी


president pranav mukherjee
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को कहा कि लोकतंत्र केवल हर पांच साल में मत देने के अधिकार से कहीं बढ़कर है। इसका मूल है जनता की आकांक्षा, इसका जज्बा नेताओं के उत्तरदायित्व तथा नागरिकों के दायित्वों में हर समय दिखाई देना चाहिए।  भारत के 67वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि लोकतंत्र, एक जीवंत संसद, एक स्वतंत्र न्यायपालिका, एक जिम्मेदार मीडिया, जागरूक नागरिक समाज तथा सत्यनिष्ठा और कठोर परिश्रम के प्रति समर्पित नौकरशाही के माध्यम से ही सांस लेता है। इसका अस्तित्व जवाबदेही के माध्यम से ही बना रह सकता है न कि मनमानी से। 

उन्होंने कहा कि इसके बावजूद, हम बेलगाम व्यक्तिगत संपन्नता, विषयासक्ति, असहिष्णुता, व्यवहार में उच्छृंखलता तथा प्राधिकारियों के प्रति असम्मान के द्वारा अपनी कार्य संस्कृति को नष्ट होने की छूट दे रखे हैं। हमारे समाज के नैतिक ताने-बाने के कमजोर होने का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव युवाओं और निर्धनों की उम्मीदों पर तथा उनकी आकांक्षाओं पर पड़ता है। 

मुखर्जी ने कहा कि महात्मा गांधी ने हमें सलाह दी थी कि हमें "सिद्धांत के बिना राजनीति, श्रम के बिना धन, विवेक के बिना सुख, चरित्र के बिना ज्ञान, नैतिकता के बिना व्यापार, मानवीयता के बिना विज्ञान तथा त्याग के बिना पूजा" से बचना चाहिए। 

उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे हम आधुनिक लोकतंत्र का निर्माण करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं, हमें उनकी सलाह पर ध्यान देना होगा। हमें देशभक्ति, दयालुता, सहिष्णुता, आत्म-संयम, ईमानदारी, अनुशासन तथा महिलाओं के प्रति सम्मान जैसे आदशरें को एक जीती-जागती ताकत में बदलना होगा।

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