नेपाल में एक समूह ने गुरुवार को काठमांडू स्थित भारतीय दूतावा के सामने प्रदर्शन कर नई दिल्ली से 57,000 वर्ग किलोमीटर भूमि नेपाल को लौटाने की मांग की। यह जमीन 1816 में नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच हुए सुगौली समझौते में नेपाल को तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को देनी पड़ी थी। सिन्हुआ के मुताबिक ग्रेटर नेपाल नेशनलिस्ट फ्रंट ने भारत के 67वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आयोजित किया था।
मोर्चा के अध्यक्ष फनींद्र नेपाल ने सिन्हुआ से कहा, "चूंकि भारत इसी दिन आजाद हुआ था, इसलिए हम उन्हें यह याद दिलाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं कि वे अभी तक नेपाल के कुछ हिस्से को दखल किए हुए और उपनिवेश बनाए हुए हैं।" उन्होंने कहा, "1947 में जब ब्रितानियों ने भारत छोड़ा तब नेपाल की भूमि नेपाल को वापस की जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कानूनी आधार से ये इलाके अभी भी नेपाल के हैं और उन्हें वापस किया ही जाना चाहिए।"
मोर्चा ने कहा है भारत का उत्तराखंड और सिक्किम और पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला नेपाल के हैं। मोर्चा के उपाध्यक्ष बी. एन. शर्मा ने कहा, "पूर्व में तीस्ता और पश्चिम में सतलुज नदी नेपाल की वास्तविक सीमाएं हैं। पूर्व में मेछी नदी और पश्चिम में महाकाली तक ही सीमा नहीं हैं।" प्रदर्शनकारियों ने उस प्रोमो की प्रतियां भी जलाने का प्रयास किया जिसमें पोखरा नेपाल स्थित मच्छपुच्छरे पर्वत को कथित रूप से भारतीय पर्वत दर्शाया गया है। बाद में दोनों नेताओं को भारतीय दूतावास को स्मार पत्र सौंपने की अनुमति दी गई।

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