भारतीय राजनीति में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर के बाद सुब्रमण्यम स्वामी दूसरे ऐसे राजनीतिज्ञ हैं, जो बिना पार्टी के नेता कहे जा सकते हैं। भूतपूर्व प्रधानमंत्री . स्व. वीपी सिंह को अपदस्थ करने के बाद 1990 में प्रधानमंत्री बनने वाले चंद्रशेखर 1991 में प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद आजीवन उसी हालत में रहे, जिस स्थिति में अब तक स्वामी थे। यानी बड़े कद का ऐसा नेता जिसके पास कोई पार्टी नहीं है। कहने को तो चंद्रशेखर समाजवादी जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, लेकिन मुलायम, नीतिश व लालू समेत उस समय के सभी बड़े नेताओं का उनके साथ छोड़ देने से चंद्रशेखर के पास कोई ऐसा संगठन नहीं रह गया था, जिसके जरिए वे नेतृत्व या राजनीति कर पाते।
कुछ ऐसी ही हालत सुब्रमण्यम स्वामी की भी थी। स्पष्ट नीति, सोच , व विजन के बावजूद स्वामी एक ऐसे पार्टी के नेता थे, जिसका सचमुच कोई अस्तित्व नहीं था। स्वामी की सबड़े बड़ी ताकत उनकी वाकपटुता व हाजिरजवाबी है, जो राजनीति की सबसे बड़ी पूंजी मानी जाती है। लेकिन संगठन के अभाव में वे इसका लाभ नहीं उठा पा रहे थे। राजनीतिक हलकों में इसके लिए अक्सर उनका मजाक भी उड़ाया जाता था। यद्यपि देर - सबेर स्वामी ने अपनी कथित पार्टी का भारतीय जनता पार्टी में विलय कर ही दिया। वैसे देखा जाए, तो स्वामी के सामने इसके सिवा और कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी को छोड़ देश में कोई ऐसी पार्टी नहीं थी, जो उनके विचाराधारा के करीब हो। हंगामा मचाने की उनकी प्रवृति के चलते भी ज्यादातर राजनीतिक दल उनसे खौफ खाते थे। अब देखना है कि भाजपा को स्वामी और स्वामी को भाजपा का साथ कहां पहुंचाता है।
तारकेश कुमार ओझा,
खड़गपुर ( प शिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934
(लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं। )

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें