शेरशाह के मकबरे की नींव कमजोर पड़ रही है. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 15 सितंबर 2013

शेरशाह के मकबरे की नींव कमजोर पड़ रही है.

बिहार की पहचान इसके गौरवशाली इतिहास और ऐतिहासिक धरोहरों से है, मगर देखरेख के अभाव में कई धरोहरें अपना वजूद खोने लगी   हैं। ऐसी ही एक धरोहर है रोहतास जिले के सासाराम स्थित शेरशाह सूरी का मकबरा जिसकी नींव अंदर से कटती जा रही है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।

अफगानी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना शेरशाह का मकबरा अपनी सुरुचिपूर्ण सौम्यता के लिए प्रसिद्ध है। अपने छोटे से शासनकाल (वर्ष 1540-1545 ईस्वी) को इतिहास के एक अहम कालखंड के रूप में स्थापित करने वाले शेरशाह सूरी को समूचे भारतीय मध्ययुग के सबसे महत्वपूर्ण शासकों में गिना जाता है।

कोलकाता से पेशावर तक ग्रैंट ट्रंक (जीटी) रोड बनवाने और भारतीय रुपये के प्रथम संस्करण 'रुपया' का चलन प्रारंभ करने, एक व्यवस्थित डाक व्यवस्था प्रारंभ करने के साथ-साथ कई ऐतिहासिक कार्य शुरू करने के लिए प्रख्यात शेरशाह सूरी ने 15वीं सदी में सासाराम में एक तालाब के बीच मकबरा बनवाया था। अफगान वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना होने के कारण संयुक्त राष्ट्र ने 1998 में इस मकबरे को विश्व धरोहरों की सूची में स्थान दिया। यह मकबरा 1130 फीट लंबे और 865 फीट चौड़े तालाब के मध्य में स्थित है। तालाब के मध्य में सैंड स्टोन के चबूतरे पर अष्टकोणीय मकबरा सैंडस्टोन तथा ईंट से बना है। इसका गोलाकार स्तूप 250 फीट चौड़ा तथा 150 फीट ऊंचा है। इसकी गुंबद की ऊंचाई ताजमहल से भी दस फीट अधिक है।

मकबरे में ऊंचाई पर बनी बड़ी-बड़ी खिड़कियां मकबरे को हवादार और रोशनीयुक्त बनाती हैं। खिड़कियों पर की गई बारीक नक्काशी बरबस पर्यटकों को उस समय की कारीगरी की दाद देने को मजबूर कर देती हैं। कहा जाता है कि इस मकबरे में शेरशाह की कब्र के अतिरिक्त 24 और कब्रें हैं, जो उनके परिवार के सदस्यों, मित्रों और अधिकारियों के हैं। सभी पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं।

मकबरे के अंदर पश्चिमी दीवार की मेहराब के ऊपर मकबरे का निर्माण कार्य शेरशाह के बेटे सलीम शाह द्वारा जुमदा के सातवें दिन हिजरी संवत 952 यानी 16 अगस्त 1945 ईस्वी को शेरशाह के देहांत के तीन महीने बाद पूरा किए जाने की बात खुदी है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस ऐतिहासिक धरोहर का सही ढंग से रखरखाव नहीं होने के कारण इसकी कारीगरी कुछ स्थानों पर खराब होने लगी है। कहा जाता है कि वर्ष 1882 में अंग्रेजों ने मकबरे की मरम्मत तथा संरक्षण का काम किया था। आज भी समय-समय पर धरोहरों से प्रेम करने वाले लोग इसे संरक्षित करने का प्रयास करते हैं।

पुरातत्वविदों की मानें तो शहर की गंदगी और खेतों से बहकर आने वाला रसायनयुक्त पानी तालाब में गिरने से मकबरे की नींव अंदर से कट रही है। रोहतास के श्रीशंकर महाविद्यालय के वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष अवधेश कुमार कहते हैं कि तालाब को स्वच्छ रखने के लिए कारगर कदम उठाने की जरूरत है, तभी इस मकबरे को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि तालाब में गाद मिट्टी का भी जमाव हो रहा है। इस धरोहर के संरक्षण की जिम्मेदारी हालांकि भारतीय पुरातत्व विभाग को मिली हुई है। सासाराम, रोहतास जिले का मुख्यालय है जो ग्रैंड ट्रंक रोड (राजमार्ग संख्या-2) पर बसा एक छोटा शहर है। यह राजधानी पटना से लगभग 160 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।



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