चीन ने तिब्बत की स्वायत्ता की लंबे समय से मांग कर रहे धर्मगुरू दलाई लामा की शनिवार को कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि उनकी यह मांग तिब्बत की स्वतंत्नता की मांग करने जैसी ही है। चीन की जातीय और धार्मिक मामलों की सर्वोच्च सलाहकार संसदीय समिति के प्रमुख झू वीकुन ने संकेत दिए कि तिब्बतियों के निर्वासित धर्मगरू की इस लंबित मांग को चीन स्वीकार नहीं करेगा।
श्री वीकुन ने स्थानीय मीडिया के साथ बातचीत में कहा कि बुनियादी तौर पर कहा कि लामा की उच्च स्तरीय स्वायत्ता का दूसरा नाम तिब्बत की आजादी ही है। उन्होंने कहा कि इस मांग के दो पहलू हैं और उन्हें स्पष्ट करना होगा कि क्या वह तिब्बत की तथा कथित स्वायत्ता की मांग कर रहे हैं या फिर वास्तविक स्वतंत्रता की। उन्होंने कहा कि दलाई लामा जिस तरह की स्वायत्ता की मांग कर रहे हैं वह चीन में स्वायत्ता का जो तंत्र है उसके खिलाफ है। उनकी इस मांग से चीन के क्षेत्नीय जातीय स्वायत्ता कानून में अलगाववादी तत्वों को ही और उभार मिलेगा।
तिब्बत पर चीन के कब्ज़े के विरोध में हुए विद्रोह के 1959 में कुचले जाने के बाद तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने देश छोड़ दिया था। भारत से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलाने वाले दलाई लामा का कहना है कि वह तिब्बत के लिए अधिक स्वायत्ता चाहते हैं। दलाई लामा की इस मांग को तिब्बत की समस्या से उबरने का 'मध्य मार्ग' माना जा रहा है जिसमें दलाई लामा तिब्बत के लिए हांगकांग के जैसी स्वायत्ता की मांग करते हैं। जिसमें तिब्बती अपनी जमीन पर चीन की संप्रभुता का सम्मान करेंगे लेकिन उन्हें धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में और अधिक स्वायत्ता दी जाएगी।
दलाई लामा की इस मांग को लेकर तिब्बतियों के बीच भी मत एक नहीं है। कुछ तिब्बती 'मध्य मार्ग' की जगह पूर्ण स्वतंत्नता की मांग का समर्थन करते हैं। इतना ही नहीं पिछले कुछ वर्षों में तिब्बतियों के आत्मदाह की घटनाएं भी काफी अधिक बढ़ गयी हैं। चीन के सिचुआन, गांसू और किंघई प्रांतों में 2009 में 120 से अधिक तिब्बतियों ने आत्मदाह किया जिनमें से अधिकतर की मौत हो गयी है।
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