बिहार की राजधानी पटना में प्रतिवर्ष लगने वाला पुस्तक मेला अब राज्य की सांस्कृतिक पहचान बन गया है। पुस्तक प्रेमी और प्रकाशक प्रत्येक वर्ष लगने वाले इस पुस्तक मेला का इंतजार करते हैं। कहा जाता है कि देश में कोलकाता के बाद पटना में लगने वाला पुस्तक मेला सबसे बड़ा होता है। इस पुस्तक मेले में न केवल पुस्तकों की बिक्री होती है बल्कि यह स्थानीय साहित्यकारों और रंगकर्मियों को एक मंच भी प्रदान करता है।
इस पुस्तक मेला की स्वीकार्यता केवल लेखकों और प्रकाशकों के बीच ही नहीं है। छात्र, बुद्धीजीवी और शिक्षकों के लिए भी यह मेला अहम मंच साबित हुआ है। पटना महिला कॉलेज की छात्रा और बैंकिंग की तैयारी कर रही निशा कहती हैं, ''पटना पुस्तक मेले का इंतजार मुझे काफी दिनों से रहता है। यह मेला ज्ञान के दायरे को बढ़ाने का सशक्त माध्यम है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए जो पुस्तकें दुकानों में नहीं मिल पाती हैं, वे यहां आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं तथा यहां पुस्तकों के चयन की भी आजादी होती है।''
प्रकाशक भी इस मेले को अनुभव या प्रयोगशाला के रूप में लेते हैं। प्रकाशक भी मानते हैं कि पटना पुस्तक मेला प्रकाशकों की उम्मीद बन कर आता है। प्रकाशक पाठकों की पसंद का इस मेले में अध्ययन करते हैं और वैसी पुस्तकें प्रकाशित करने की कोशिश करते हैं। उल्लेखनीय है कि इस मेले में नागार्जुन, प्रभाष जोशी, डॉ. कर्ण सिंह, डॉं नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, जानकी वल्लभ शास्त्री, प्रकाश झा, हेमामालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, जावेद अख्तर, गुलजार जैसी हस्तियां शिरकत कर चुके हैं जिससे इस मेले को नया आयाम मिला है। 'युवा विषय' पर आधारित इस वर्ष इस मेले में कुल 310 स्टॉल लगाए गए हैं। यहां नेशनल बुक ट्रस्ट, साहित्य अकादमी, ऑक्सफोर्ड, वाणी, राजकमल, प्रभात प्रकाशन, एकलव्य प्रकाशन के स्टॉलों पर पुस्तकों की भरमार है।
.jpg)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें