बुद्ध की जन्मस्थली पर खुदाई कर रहे पुरातत्वविदों ने अब तक ज्ञात सबसे पुराने बौद्ध धर्मस्थल की खोज की है. नेपाल के लुंबिनी में स्थित माया देवी मंदिर में खुदाई के दौरान मिली शहतीर ईसा से 600 वर्ष पूर्व है. ऐसा लगता है कि बौद्ध विहार में एक पेड़ था. यह खोज उस किवंदति की पुष्टि करती है जिसमें कहा जाता है कि बुद्ध के जन्म से समय मां ने पेड़ की एक शाखा को पकड़ रखा था. पुरातत्वविदों की टीम द्वारा जर्नल एंटीक्विटी को दी गई सूचना में कहा गया है कि यह खोज बुद्ध के जन्म की तारीख के बारे में विवाद का पटाक्षेप कर सकती है.
हर वर्ष हजारों की संख्या में बौद्ध श्रद्धालु लुंबिनी की धार्मिक यात्रा पर जाते हैं. बहुत पहले से माना जाता है कि यह सिद्धार्थ गौतम की जन्म स्थली रही है. बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर बहुत कुछ लिखे जाने के बावजूद अभी तक उनके जीवन काल के बारे में बहुत स्पष्ट नहीं है. जो अनुमान लगाए गए हैं उसमें बुद्ध के काल को 630 वर्ष ईसा पूर्व तक माना गया है लेकिन, बहुत से विद्वान 390 से 340 वर्ष ईसा पूर्व के समय काल को ज्यादा सही मानते हैं.
लुंबिनी भारतीय सीमा के नजदीक काठमांडू से 300 किमी दूर स्थित है. सिद्धार्थ गौतम की जन्म स्थली है, जो बाद में बुद्ध बने. 1997 में यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट में जगह दी. इसके चारो ओर एक बड़े इलाके में व्यावसायिक निर्माण निषिद्ध है. इस इलाके में केवल मठ-विहार ही बनाए जा सकते हैं. यहां प्राचीन मठों के अवशेष, बो वृक्ष और एक स्नानागार है.
लुंबिनी में अभी तक की बौद्ध संरचनाएं 300 वर्ष ईसा पूर्व से पुरानी नहीं हैं, जो सम्राट अशोक का युग माना जाता है. मामले की तह तक जाने के लिए पुरातत्वविदों ने मंदिर के अंदर खुदाई शुरू की. खुदाई के दौरान बिना छत वाला लकड़ी का एक स्थान मिला. शहतीरों के ऊपर बाद में ईंट का मंदिर बना था. आज की तारीख में इस इमारत के अवषेशों- लकड़ी, चारकोल, बालू के दाने की कार्बन डेटिंग व अन्य अत्याधुनिक तकनीक से उनकी उम्र का बता लगाया गया है.
नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी से सहयोग प्राप्त एक अंतरराष्ट्रीय टीम का नेतृत्व करने वाले डरहम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रोबिन कोनिंघम ने कहा, ''पहली बार हमने लुंबिनी में पुरातात्वविक कड़ियों को जोड़ने में सफलता हासिल की है.'' पुरातत्वविदों को उम्मीद है कि इस खोज से स्थल के संरक्षण में मदद मिलेगी. ''हमें पता चला है कि यह इमारत 600 वर्ष ईसा पूर्व की है. यह दुनिया में ज्ञात सबसे पुरातन बौद्ध धर्मस्थल है.''
बौद्ध परम्परा और शिक्षा में अंतर को लेकर लंबे समय से चली आ रही बहस पर यह प्रकाश डालता है.
साक्ष्य बताते हैं कि अशोक के संरक्षण में बने इस धर्मस्थल के रूप में मौजूद लुंबिनी की संरचना में अवश्य सुधार हुआ होगा. स्पष्ट है कि यह स्थल सदियों पहले नीचे चला गया था. खुदाई में खुली संरचना के मध्य एक पेड़ की जड़ें मिली हैं. इससे संकेत मिलता है कि यह पेड़ के नीचे उपदेश वाला स्थल रहा होगा. परम्पराओं के मुताबिक ये माना जाता है कि बुद्ध को जन्म देते समय रानी माया देवी ने पेड़ की शाखा को पकड़ रखा था. इस खोज से यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल बौद्ध जन्म स्थल को संरक्षित करने में मदद मिलेगी.

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