बिहार : अपने नाम के ही अनुरूप वीरहरण मांझी काम को अंजाम देते - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


सोमवार, 25 नवंबर 2013

बिहार : अपने नाम के ही अनुरूप वीरहरण मांझी काम को अंजाम देते

अभी शादी नहीं हुई है। मैं विकलांगता को मजबूरी नहीं मानता हूं। बल्कि चुनौती मानता हूं। भगवान ने सिर्फ पैर से ही अफाहिज बना दिये हैं। शरीर और हाथ तन्दुरूस्त है। शरीर और दिमाग से कार्य करने लायक हैं। इसी के बल पर कार्य कर रहे हैं। अन्य अफाहिज मित्रों से कहा कि किसी तरह के अवसाद के शिकार नहीं पड़े।

handicap farmer
दानापुर। अपने नाम के ही अनुरूप वीरहरण मांझी काम को अंजाम देता है। उसका अजीत दोस्त लाठी है। अपने दोस्त के बिना पलभर भी चल नहीं सकता। उसे हरदम साथ में रखता है। आप सुधि पाठक जरूर ही समझ गये होंगे। कोई विकलांग की  वीर गाथा है। जी हां एक विकलांग वीरहरण मांझी की ही वीर गाथा है। जो मेहनत करते देखा जा सकता है। 

पटना जिले के दानापुर प्रखंड में कोथवां ग्राम पंचायत है। इस पंचायत में ही कोथवां मुसहरी है। इस मुसहरी में 100 की संख्या में घर है। यहां के अधिकांश घर जर्जर हो गया है। मकान की छत गिर गयी है। निर्मित मकान खंडहर में तब्दील हो गया है। फिर भी किसी तरह से सरकार के महादलित मुसहर समुदाय के लोग रहते हैं। यहीं पर करीबन मांझी भी रहते हैं। इनका एक पुत्र का नाम वीरहरण मांझी है। जो विकलांग हैं। 

handicap farmer biharविकलांग नौजवान वीरहरण मांझी कहते हैं कि बाल्यावस्था में स्वस्थ थे। कोई 10 वर्ष की अवस्था में घाव हो गया था। गरीबी के कारण घाव का इलाज ठीक ढंग से नहीं किया गया। इसका नतीजा सामने है। 10 साल से हाथी मेरा साथी नहीं लाठी मेरा साथी हो गया है। उसने कहा कि जरूर ही सरकार के द्वारा निःषक्ता सामाजिक सुरक्षा पेंशन स्वीकृत की गयी है। इससे क्या होता है? यह तो पूर्णिमा का चांद है। माहभर में केवल 2 सौ रू.ही मिलता है। इससे क्या होगा? 

घर से निकलकर काम करना पड़ता है। आप खेत में काम करते देख रहे हैं। घर से निकलकर लाठी के सहारे खेत में पहुंचे हैं। इस समय धान कटनी कर रहे हैं। धन कटनी से लेकर मालिक के घर तक पहुंचौनी में 15 दिनों का समय लग जाता है। मजदूरी के रूप में बहुत ही कम धान मिलता है। फिर भी धान कटनी से सालभर भात खाने लायक चावल हो जाता है। 

कार्य को महत्व देने वाले वाले विकलांग वीरहरण मांझी कहते हैं कि अभी बीस साल का हूं। अभी शादी नहीं हुई है। मैं विकलांगता को मजबूरी नहीं मानता हूं। बल्कि चुनौती मानता हूं। भगवान ने सिर्फ पैर से ही अफाहिज बना दिये हैं। शरीर और हाथ तन्दुरूस्त है। शरीर और दिमाग से कार्य करने लायक हैं। इसी के बल पर कार्य कर रहे हैं। अन्य अफाहिज मित्रों से कहा कि किसी तरह के अवसाद के शिकार नहीं पड़े।




आलोक कुमार
बिहार 

कोई टिप्पणी नहीं: