व्यंग्य : बाजार का देवलोक ...!! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

व्यंग्य : बाजार का देवलोक ...!!

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मुझे खासा अचंभा हुआ था जब पहली बार  सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान घोषत किया गया। 80 के दशक में कालेज में पढ़ने के दौरान मैने क्रिकेट को जानना - समझना शुरू किया। तब  क्रिकेट में कपिल देव व सुनील गावस्कर का जलवा आज के सचिन तेंदुलकर से किसी भी मायने में कम नहीं था। भारत को विश्व कप दिलवाने के चलते  कपिल देव युवाओं के हीरो थे। वहीं दुनिया में  सबसे ज्यादा शतक बनाने के लिए सुनील गावस्कर के लिए हम लिटिल मास्टर का विशेषण ही सुनते आए थे। 

उस दौर में इंग्लैड के ला्र्डस को क्रिकेट का मक्का जरूर कहा जाता था। लेकिन सपने में भी नहीं सोचा था कि अप्रत्याशित सफलता के लिए कालांतर में किसी खिलाड़ी को उस खेल का भगवान ही घोषित कर दिया जाएगा।  आगे रहने की होड़ में संभवतः पहली बार किसी प्रचार माध्यम ने सचिन तेंदुलकर को यह संज्ञा दी होगी। लगा होगा कि तमाम सफल खिलाडि़यों के लिए तरह - तरह के संबोधन पहले से प्रचलित है। सचिन असाधारण सफलता की ओर बढ़ रहे हैं, तो उनके लिए संबोधन भी असाधारण होना चाहिए।  मीडिया व नागरिक समाज में विपरीत प्रतिक्रिया न होने पर सचिन देखते ही देखते सचमुच क्रिकेट के भगवान बन गए। अब एक और महान खिलाड़ी ध्यानचंद को हाकी प्रेमी हाकी का भगवान घोषित कर चुके हैं। 
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राजनीति में कांग्रेसियों के लिए गांधी परिवार के सदस्य तो भाजपाईयों के लिए अटल - आडवाणी भी किसी भगवान से कम नहीं है। आसाराम व रामदेव पहले से अपने - अपने भक्तों के भगवान हैं। ऐसे में जीवन व समाज के दूसरे क्षेत्रों के सफल हस्ती संबंधित क्षेत्रों  के भगवान स्वतः ही बन जाएंगे।  इस रुख से तो यही प्रतीत होता है कि भविष्य में बाजार की जरूरत से कई और नए भगवान तैयार होंगे। जो एक तरह से बाजार का देवलोक जैसा होगा। यानी एक पूरी की पूरी भगवानों की कालोनियां ही  बस जाएंगी।



तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं। 

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