इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने आज आतंकवाद के आरोपियों पर चल रहे मुकदमों को वापस लेने संबंधी फैसले को निरस्त कर उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार को करारा झटका दिया। लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद की कचहरियों में 23 नवम्बर 2007 को हुए सिलसिलेवार विस्फोटों के आरोप में 19 लोग बंद हैं और राज्य सरकार ने इन पर चल रहे मुकदमों को वापस लेने के लिए कहा था। न्यायालय ने अखिलेश यादव सरकार के उस निर्णय को निरस्त कर दिया है।
न्यायालय की पूर्ण पीठ ने कहा कि आतंकवाद के सिलसिले में बंद लोगों के बारे में केन्द्र सरकार फैसला ले सकती है, क्योंकि यह अधिनियम केन्द्र का है, राज्य सरकार इसमें कोई निर्णय ले ही नही सकती।
न्यायमूर्ति डी पी सिंह, न्यायमूर्ति अजय लाम्बा और न्यायमूर्ति अशोक पाल ने यह आदेश इससे पहले दो न्यायमूर्तियों की पीठ से राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ आये स्थगनादेश पर सुनवाई पूर्ण कर दिया। राज्य सरकार ने वाराणसी, गोरखपुर, लखनऊ, रामपुर और फैजाबाद में हुए सिलसिलेवार विस्फोटों के संदिग्ध आरोपियों पर से मुकदमा वापस लेने का फैसला किया था। इससे पहले बाराबंकी जिले की एक स्थानीय अदालत ने भी आरोपियों पर से मुकदमा वापस लेने सम्बन्धी राज्य सरकार के निर्णय को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय का निर्णय समाजवादी पार्टी सरकार के लिए झटका माना जा रहा है। सन 2012 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की घोषणापत्र में सपा ने कहा था कि जेल में बंद निर्दोष मुस्लिम युवकों को छोड़ा जायेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें